धर्म की कुछ ज़ात की कुछ हैसियत की सरहदें
आदमीयत की ज़मीं पर कैसी कैसी सरहदें
मुल्क को तो बाँट लें लेकिन ये सोचा है कभी
दिल को कैसे बाँट सकती हैं सियासी सरहदें
माँग भर कर उसने मेरी मांग ली आज़ादियाँ
अब क़फ़स है और मैं हूँ या सिन्दूरी सरहदें
मैं मोहब्बत की पुजारिन वो है नफरत का असीर
मेरी अपनी मुश्किलें हैं उसकी अपनी सरहदें
बस बहुत तौहीन करली आपने अब देखिये
खींचनी आती हैं मुझको भी अना की सरहदें
देख कर आँखों में उसकी छलछलाती चाहतें
सोचती हूँ तोड़ दूं शर्मो-'हया' की सरहदें
क़फ़स = कैद
अना = मान,घमंड
असीर = कैदी
मुल्क को तो बाँट लें लेकिन ये सोचा है कभी
ReplyDeleteदिल को कैसे बाँट सकती हैं सियासी सरहदें
माँग भर कर उसने मेरी मांग ली आज़ादियाँ
अब क़फ़स है और मैं हूँ या सिन्दूरी सरहदें
ya baat hai,lajawab,dua hai insaani sarhadon ki har deewar tute ekdin,aur aman ho sab taraf.
देख कर आँखों में उसकी छलछलाती चाहतें
ReplyDeleteसोचती हूँ तोड़ दूं शर्मो-'हया' की सरहदें
aisa kai baar chaahat me hota hai .......bahut hi sundar rachana .......atisundar
क्या कहने? बहुत अच्छा लिखा है आपने.
ReplyDeleteशायद अब समय आ गया है यह याद दिलाने का ....
"बस बहुत तौहीन करली आपने अब देखिये
खींचनी आती हैं मुझको भी अना की सरहदें"
मैं मोहब्बत की पुजारिन वो है नफरत का असीर
ReplyDeleteमेरी अपनी मुश्किलें हैं उसकी अपनी सरहदें
बस बहुत तौहीन करली आपने अब देखिये
खींचनी आती हैं मुझको भी अना की सरहदें
देख कर आँखों में उसकी छलछलाती चाहतें
सोचती हूँ तोड़ दूं शर्मो-'हया' की सरहदें ............
बेहद खूबसूरत रचना.
अरे वाह... क्या बात है... आप से परिचय आज की उपलब्धि रहा. बेहतरीन कहती हैं आप.... बहुत खूब.. बहुत खूब..
ReplyDeleteमेरी खामोशियां भी बोलती हैं
ReplyDeleteउन्हें भी गुनगुनाना आ गया है
मैं जब चाहूंगी पिंजरा ले उड़ूंगी
परों को आज़माना आ गया है
अभी-अभी आपका ब्लाग देखा और थोडा सा पढा भी. आपके बहुआयामी व्यक्तित्व से रूबरू होकर बहुत अच्छा लगा. आपकी ग़ज़लों में से चुनने में कठिनाई हुई कि किन किन शेरों की तारीफ़ करूं. मुशायरों को कभी-कभी सुनता हूं लेकिन वहां इतना अच्छा सुनने को नहीं मिलता. आपके गुरू कौन हैं? उन्हें सलाम
hum to aapke baare mein jaan ....aapke vyaktitva aur kalam dono ke kaayal ho gaye.....sach bahut gauranvit mahsoom karti hoon.....ek mahila ko is mukaam pe dekh kar...... gazal bahut khoobsoorat hain..... aur andaze- baya lajawaab
ReplyDeleteहया जी बहुत ख़ूबसूरत अंदाज़े-बयाँ
ReplyDelete---
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मुल्क को तो बाँट लें लेकिन ये सोचा है कभी
ReplyDeleteदिल को कैसे बाँट सकती हैं सियासी सरहदें
वाह...
धर्म की कुछ ज़ात की कुछ हैसियत की सरहदें
आदमीयत की ज़मीं पर कैसी कैसी सरहदें
वाह-वाह...
मैं मोहब्बत की पुजारिन वो है नफरत का असीर
मेरी अपनी मुश्किलें हैं उसकी अपनी सरहदें
वाह-वाह-वाह....
देख कर आँखों में उसकी छलछलाती चाहतें
सोचती हूँ तोड़ दूं शर्मो-'हया' की सरहदें
किन किन शेरों की तारीफ़ करूं.....
बस लाजवाब ही कह सकता हूँ...
माँग भर कर उसने मेरी मांग ली आज़ादियाँ
ReplyDeleteअब क़फ़स है और मैं हूँ या सिन्दूरी सरहदें
वाह ये शेर खास तौर पर पसंद आया !
मैं मोहब्बत की पुजारिन वो है नफरत का असीर
ReplyDeleteमेरी अपनी मुश्किलें हैं उसकी अपनी सरहदें
देख कर आँखों में उसकी छलछलाती चाहतें
सोचती हूँ तोड़ दूं शर्मो-'हया' की सरहदें
सरहदें रदीफ़ का बहुत सुन्दर निर्वहन किया आपने
खूबसूरत गजल कही आपने
वीनस केसरी
बेहद बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteहया जी,
ReplyDeleteलाजवाब रहा यह शे’र :-
माँग भर कर उसने मेरी मांग ली आज़ादियाँ
अब क़फ़स है और मैं हूँ या सिन्दूरी सरहदें
मुकेश कुमार तिवारी
मुल्क को तो बाँट लें लेकिन ये सोचा है कभी
ReplyDeleteदिल को कैसे बाँट सकती हैं सियासी सरहदें
बहुत ख़ूबसूरत अंदाज़े-बयाँ
बस बहुत तौहीन करली आपने अब देखिये
ReplyDeleteखींचनी आती हैं मुझको भी अना की सरहदें
बहुत धारदार शेर.
शानदार ग़ज़ल प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
मुल्क को तो बाँट लें लेकिन ये सोचा है कभी
ReplyDeleteदिल को कैसे बाँट सकती हैं सियासी सरहदें
बहुत सुंदर!आपकी गज़ल सीधे दिल में उतर गई.
माँग भर कर उसने मेरी मांग ली आज़ादियाँ
ReplyDeleteअब क़फ़स है और मैं हूँ या सिन्दूरी सरहदें
लाजवाब खूबसूरत कमाल इस शे अर की तो जितनी भी तारीफ करूँ कम ही लगती है
बस बहुत तौहीन करली आपने अब देखिये
खींचनी आती हैं मुझको भी अना की सरहदें
और इस शेअर के लिये तो निश्बद हूँ बहुत सश्क्त कलम है आपकी बहुत बहुत आशीर्वाद्
मजा आ गया ...बेहतरीन रचना
ReplyDeletebahut achcha laga apse judkar....badhai
ReplyDeletemere wahan bhi tshrif layen....
ReplyDeleteआपकी लेखनी के जादू ने तो बस मुग्ध ही कर लिया....हर शेर मन को ऐसे बाँध लेता है कि आगे बढ़ने ही नहीं देता.....क्या लाजवाब लिखती हैं आप.....बस क्या कहूँ.....सुपर्ब !!!
ReplyDeleteमाँग भर कर उसने मेरी मांग ली आज़ादियाँ
ReplyDeleteअब क़फ़स है और मैं हूँ या सिन्दूरी सरहदें....
क्या कहूँ... इन लाइनों के बाद शायद तारीफ में कुछ भी कहना.... सूरज को दिया दिखाना है...
बधाई...!!
www.nayikalam.blogspot.com
देख कर आँखों में उसकी छलछलाती चाहतें
ReplyDeleteसोचती हूँ तोड़ दूं शर्मो-'हया' की सरहदें ...kitni sadgee se apne kitna kuchh kah diya...behtreen....boht hi khoobsurt rachna....
बस बहुत तौहीन करली आपने अब देखिये
ReplyDeleteखींचनी आती हैं मुझको भी अना की सरहदें
behtareen rachna.. badhaai
माँग भर कर उसने मेरी मांग ली आज़ादियाँ
ReplyDeleteबहुत खूब --- अच्छा
रचना सरहदो से परे है
"पार कर दो हर सरहद जो दिलों में ला रही दूरियाँ ,
ReplyDeleteइन्सानसे इंसान तकसीम हो ,खुदाने कब चाहा ?"
बेहद सुंदर रचना है आपकी .. ये चंद पंक्तियाँ आपको अर्पित ..
sabhi sher main wah ya aah ya dono niklti hain...
ReplyDeleteमाँग भर कर उसने मेरी मांग ली आज़ादियाँ
अब क़फ़स है और मैं हूँ या सिन्दूरी सरहदें ....
ismein 'सिन्दूरी सरहदें' pratik behtarin laga.
antim sher ka kafiya jaanch levein.
चाहतें (first line)
सरहदें (second line)
kshama karein radeef kehna chah raha tha kafiya ho gaya....
ReplyDelete:)
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा| कुछ अश'आर वाकई अच्छे थे| मुशायरों में आपको नहीं सुन पाया था अपनी व्यस्तताओं के कारण लेकिन सुन रखा था आपके बारे में| यहाँ आकर देखा तो मन प्रसन्न हो न गया|
ReplyDeletekaisi kaisi sarhaden- bahut khubsurat gazal hai.ise jagran bhopal ke 4 oct. ke ank men prakashit bhee kiya gaya hai. aise hi likhtee rahen. diwali mubarak.
ReplyDeletelata ji aap ko surat men ek musaire me bulane ki khvaish hai kuda jane kb puri hogi.mera ek sher aap ki shan me arj kr rha hun -----
ReplyDeletevo sksh hai ykinan milne ke kabil
jo sajda krta hai ,duaa mangta nahi Dr.premdan bhartiya
प्रेम जी ,
ReplyDeleteआप इस ग़ज़ल तक पहुंचे .बहुत -बहुत शुक्रिया .आपको कहाँ जवाब दूं क्योंकि आपके
ब्लॉग पर नॉट available लिखा है .आप मुझसे जी मेल पर रब्त कर सकते हैं .सूरत ..मैं ज़रूर आने की कोशिश करुँगी ....शेर नज्र करने के लिए एक बार फिर तहे -दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ .