Sunday, December 12, 2010

मैं intelligent होगई हूँ




ख़ुदा गवाह ही कि जो कह रही हूँ सच कह रही हूँ :-
"देखा, मैं तेरी ख़ुशबू से intelligent होगई हूँ " ये सुनते ही मैं चौंक पड़ी , यक़ीन करना मुश्किल हो रहा था कि ये जुमला मेरी उस बुज़ुर्ग माँ की ज़बान से निकला था जो दस दिन पहले जब मेरे सुपुर्द की गयी थी(भाई ऑस्ट्रेलिया गया था),ना ठीक से चल पाती थी , ना समझ पाती थी ,जिनकी आँखों की रौशनी और याददाश्त उम्र कि वजह से कमज़ोर हो चली है और जिसने आते ही ये सवाल किया था कि तू पिंकी ही है ना?(my nickname) ,उसकी ज़बान से ये जुमला !
तक़रीबन दोपहर ४ बजे का वक़्त था , etv urdu पर mushaira आ रहा था , मुझे १४ नवम्बर को नेहरु रत्न अवार्ड मिलने वाला था , मैं वहां जाने के लिए तैयार हो रही थी , मम्मी को उस दिन सुब्ह तैयार नहीं कर पायी थी ,इन दिनों वो सारे फ़र्ज़ मुझे अदा करने पड़ रहे है जो बचपन में माँ हमारे लिए किया करती थी तो मैंने मम्मी से कहा कि चलो आपको ग़ुस्ल करवा दूं , फिर मुझे जाना है ; उधर mushaire में शेर पढ़ा जा रहा था "मोहब्बत नहीं है आसान मामू " माँ बड़े गौर से सुन रही थी , इधर मेरी गुहार , उधर अशआर , तो बस यूं लगा जैसे मेरी माँ में किसी शायर की रूह घुस आई हो , अचानक शुरू हो गयीं , "मुश्किल है अब इन्कार सरला( उनका नाम),होगई है तू ...... रुक गयीं, बोलीं "बता ना आगे क्या होगा? ",मैंने कहा " हो गयी है तू लाचार सरला " , तो ख़ुश हो गयीं "हाँ " फिर दूसरा मिसरा लगाना शुरू किया , "बेटी का है फरमान सरला" और यक़ीन जानिये कि क्या-क्या बोलती गयीं - मैं हैरान और परेशान और जब उन्होंने ये कहा " अब तो पड़ेगा ही नहाना , आगे नहीं आता है बनाना " तो मेरी ज़बान से निकला कि , वाह ! अरे मम्मी आप तो शायरी कर रहीं हैं और फिर .............. उनकी ज़बान से ये जुमला निकला " देखा? तेरी खुशबू से मैं intelligent होगयी हूँ"और ये कह कर उन्होंने मेरा गाल चूम लिया .

उनकी ज़बान से निकली हुई ये बात मुझे छू गयी । विरासत में हमें उनसे बहुत कुछ मिला है । राजस्थान के cheif minister की steno रह चुकी हैं लेकिन बुढ़ापा इंसान को जिस मरहले पे ले आता है , वहाँ हमें ये सोचना चाहिए कि हमारे parents सिर्फ़ बुज़ुर्ग हुए हैं ,मरीज़ नहीं जबकि हम उनके बुढ़ापे को एक लाइलाज रोग समझकर घर के एक कोने में 'रख' देते हैं ; ख़ुशनुमा माहौल के बगैर तने तन्हा पड़े पड़े ये माँ बाप वक़्त से पहले ही चल देते हैं ।
जिस तरह मशीनों को तेल की, गाड़ियों को पैट्रोल की , पेड़-पौधों को खाद की ज़रूरत होती है , उसी तरह बुज़ुर्गों को रौनक़ की, साथ की , देखभाल और प्यार की ज़रूरत होती है ।

मेरी माँ की ये तस्वीर चीख़-चीख़ कर कह रही है कि children day सिर्फ़ parents द्वारा बच्चों को प्यार बाँटने का दिन नहीं बल्कि बच्चों द्वारा भी parents की केयर करने का दिन होना चाहिए
हम कितने भी बड़े हो जायें उनके लिए बच्चे ही रहेंगे और जब वो बच्चे की तरह हो जायें तब हमें भी उनके साथ बच्चों जैसा प्यार बाँटना चाहिए .............बाल दिवस पर ये matra - ratna award एक बेटी के लिए नेहरु ratna award से किसी भी तरह कम ना था .

यही सोचते - सोचते जब मैं function में पहुंची और जब मेरे हाथ में mike थमाया गया तो यक- ब -यक मैं ये घटना सुना बैठी , सब गौर से सुन रहे थे , महसूस कर रहे थे .........

उस दिन मुझे इस बात का और यक़ीन हो गया कि सिर्फ़ संगीत की ताक़त ही किसी रोग का इलाज नहीं करती बल्कि शब्द की शक्ति ,अल्फाज़ की ताक़त , अदब का असर और शायरी की ख़ुशबू भी दवाई सा काम करती है .......... वो ख़ुशबू मेरी नहीं,उर्दू की थी , ज़बान की थी,शायरी की थी जिसने मेरी माँ को चंद लम्हों के लिए "intelligent" बना दिया था ।
आज उनको ये घटना याद भी नहीं है ,वो भूल चुकी हैं कि मैंने ऐसा भी कुछ कहा था लेकिन मैंने सोच लिया है कि मैं अब उनके आस पास शायरी को ज़िंदा रखूंगी और सिर्फ़ 'पिंकी' बन कर नहीं , उर्दू और शायरी बनकर रहूंगी ;


मेरी तो ज़ात-पात, धर्म, दीन शायरी
ये घर ,मकां ,जहां ,फ़लक ,ज़मीन शायरी

देखा जो तुमने प्यार से तो यूं लगा मूझे
जैसे कि हो गयी हूँ मैं हसीन शायरी

ख्वाहिश की तितलियाँ बड़ी कमसिन है, शोख़ हें
इनके तुफ़ैल होगयी रंगीन शायरी

सरज़द हुई हैं ऐसी भी दिल पर हक़ीक़तें
रिश्तों
का लिख गयी नया आईन शायरी

ग़ैरत की लाश हाथ में लेकर ग़ज़ल कहूं
तेरी
कर सकूंगी यूं तौहीन शायरी

लैला -- शायरी हूँ मेरा क़ैस है सुख़न
ये
जुर्म है तो दे सज़ा , ना छीन शायरी

इक लम्स है ये शायरी मेरे लिए ' हया '
उनकी
नज़र में लाम , मीम , सीन, शायरी

- x - x - x -



ग़ुस्ल करना = नहाना
तने तन्हा =बिल्कुल अकेला
तुफैल = वजह
आईन= संविधान
सरज़द = घटित
क़ैस = मजनू का नाम
लाम मीम सीन = means l ,m, s( in urdu)

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