Friday, January 1, 2010

इबादत भी ज़रूरी है

चलो अब वार बन जाएँ ,के अब तलवार बन जाएँ
के अब तेज़ाब की बहती हुई इक धार बन जाएँ
बहुत ठंडी हवा बनकर बहे ,अब आंधियां बनकर
बग़ावत का नया इक सिलसिला ,विस्तार बन जाएँ

गुज़िश्ता कई वर्षों के हालात को मद्दे -नज़र रखते हुए आप सबको नरम तेवर वाली दुआएं देने को दिल नहीं राज़ी हुआ, लगा के महज़ इतना कहना काफ़ी नहीं के आप सबको नव वर्ष की बधाई ,....आपका चहुंमुखी विकास हो, आप स्वस्थ और सुरक्षित रहें, आप सपरिवार पूरे साल खुशियों में संलग्न रहें, वगैरह वगैरह...नहीं- नहीं बस इतना नहीं बल्कि और भी बहुत कुछ अपने वादों ,अपने इरादों ,अपनी नीयत और योजनाओं में शामिल करना "ज़रूरी है" तो क़ुबूल कीजिये नए साल में इस अज्म और हौसले के साथ मेरी ये दुआएं / सलाहें :-



ये माना कि मुक़द्दर की इजाज़त भी ज़रूरी है
मगर मंज़िल को पाना है तो मेहनत भी ज़रूरी है

हवा जब तक हवा है तब तलक ही दोस्ती रखना
बने आंधी तो फिर उससे अदावत भी ज़रूरी है

अगर हो जान को ख़तरा औ ख़ुद्दारी ख़तर में हो
पलट कर वार कर देना हिफाज़त भी ज़रूरी है

ये माना कि तअल्लुकात में कोई ग़रज़ ना हो
मगर खुदगर्ज़ रिश्तों से सियासत भी ज़रूरी है

हो बेशक़ रूबरू दुश्मन मगर इतनी सनद रखना
हो लहजा तल्ख़ प थोड़ी नफ़ासत भी ज़रूरी है

फ़क़त दौलत, मकां, रिश्ते, ज़मीं,शोहरत, ख़ुशी, दुनिया
दिये जिसने सभी उसकी इबादत भी ज़रूरी है

मैं अपनी गुफ़्तगू उर्दू बिना कर ही नहीं सकती
'हया' के वास्ते इससे सख़ावत भी ज़रूरी है

अदावत - दुश्मनी
खतर - ख़तरा
प - पर
रूबरू - सामने
तल्ख़ - कड़वा
गुफ़्तगू - बातचीत
सनद - याद
सख़ावत - दोस्ती

आप तमाम ब्लागर्स का जिन्होंने २००९ में मुझे हसीन-तरीन कमेंट्स से नवाज़ा शुक्रिया अदा करती हूँ, इस साल और भी मुहब्बतों की मुन्तज़िर हूँ और इजाज़त लेने से पूर्व ख़ास तौर पर इन अलफ़ाज़ के साथ जवाब देना चाहती हूँ

इतने प्यारे बनो हर कोई तुम्हे प्यार करे
हो ज़बां ऐसी कि हर कोई ऐतबार करे
तुमसे इक बार मुलाक़ात जो करले तो 'हया'
फिर मिले दिल यही उसका हाँ बार-बार करे

आप सबसे फिर,बार-बार मिलने की चाह में नए साल की ढेरों शुभकामनाओं के साथ


चलते चलते :-

हाज़रीन, आज रात ( दो जनवरी ) बिरला आडिटोरियम मुंबई, में मुशाइरा है .उसी की तैय्यारी करते करते इस ग़ज़ल में दो शेर और हो गये, उन पर भी नज़र डाल लीजिये,कभी कभी कलाम मुकम्मल होने के बाद भी कुछ तश्नगी बाकि रह जाती है ,ये अशआर उसी तश्नगी का नतीजा है...


फ़क़त इसके सिवा इस साल-ए-नौ मैं और क्या मांगूं
अरे अब छोड़ भी नफ़रत,मोहब्बत भी ज़रूरी है

बनो नेता, चलो दिल्ली,पकड़ कुर्सी मगर ऐ जी!
ज़रा सी इस फ़साने में शराफ़त भी ज़रूरी है

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