Thursday, October 15, 2009

ये तितली

एक तरफ दीपों के त्यौहार की सजावट तो दूसरी तरफ चुनावी माहौल की गिरावट ,गोया खूबसूरत मखमल पर पैवंद लग गया हो ;ख़ुदा करे सब शांति से संपन्न हो जाये ;कहीं मेरी ग़ज़ल फिर न सिहर के कह उट्ठे ;





अंधेरों मैं जो आज इक रौशनी मालूम होती है
ये बस्ती अम्न की जलती हुई मालूम होती है

सियासत कैसे गंदे मोड़ पे लायी है इंसां को
के अब इंसानियत दम तोड़ती मालूम होती है

ख़ुदा के नाम पे इंसान की हैवानियत देखो
अजां से जंग करती आरती मालूम होती है

हम उनकी दिल्लगी को भी समझते हैं लगी दिल की
उन्हें दिल की लगी भी दिल्लगी मालूम होती है

गुलों का छोड़ कर दामन ये क्यों बैठी है काँटों पे
ये तितली तो बहुत ही दिलजली मालूम होती है

हवादिस ने मेरे चेहरे पे ऐसे नक़्श छोड़े हैं
मुझे अपनी ही सूरत अजनबी मालूम होती है

इधर दिल है,उधर दुनिया नहीं मालूम क्या होगा
"हया"अब आज़माइश की घड़ी मालूम होती है.

अजां -अजान
हवादिस -हादसे

आप सभी को दीपावली की अग्रिम शुभकामनायें

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