हज़रात, महिला दिवस भी क़रीब है ,इन दिनों मैं हर मौक़े पर देर से पहुंची हूँ लेकिन इस मौक़े पर सबसे पहले पहुंचना चाहती हूँ इसलिए एक ग़ज़ल और पोस्ट कर रही हूँ .वैसे तो मैं 'ये दिवस 'और 'वो दिवस ' पर यक़ीन नहीं करती क्योंकि हर दिवस हमारा है पर जैसे परीक्षा के दिनों में विद्यार्थी ज़्यादा गौर से पढ़ते हैं वैसे ही ये सब दिवस एक ख़ास दिन इन विषयों और रिश्तों पर अपनी ओर पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित कर लेते हैं ;फाएदा नहीं है तो नुक़सान भी क्या है ?अलबत्ता कुछ बहस मुबाहिसे ,प्रदर्शन ,गोष्ठियां ,सुझावों की फहरिस्त ,महिला संगठनों के औचित्य ...इन सबको देखने ,सुनने ,समझने ,चिंतन करने का एक मौक़ा और मिल जाता है और अदब को छोड़ कर हर फील्ड की नुमायन्दगी करने वाली महिलाओं को सम्मान और पुरस्कार भी मिल जाता है ,क्योंकि अदब नंगा नहीं है ,सियासी नहीं है ,मसालेदार नहीं है ,ग्लैमरस नहीं है ,बदनाम नहीं है इसलिए मीडिया का ,सरकार का ,बिग बॉस का ध्यान कम ही खींच पाता है ;फिर भी अदब अदब है ,अदीब अदीब हैं इसलिए आला हैं ,इसे मैं अपनी खुशकिस्मती समझूँ या लोगों की सोच में आ रहा बदलाव या आपकी दुआओं का असर कि इस बार महिला दिवस पर 'एक शाम ,लता हया के नाम ', जश्ने लता हया अवामी राय द्वारा आयोजित किया जा रहा है ,इस मौक़े पर एक शायेरात का मुशायेरा भी रखा गया है ,जिसकी निज़ामत भी मेरे ही ज़िम्मे है ,लोगों मुहब्बतें मुझसे ये सब करवाना चाह रही हैं
वर्ना मैं क्या हूँ ,क्या मेरी औक़ात है ? अल्लाह का करम है ,उसकी सौग़ात है ,
मैं तो इस दिन को दो सालों से 'मां और बहिन की गालियों के खिलाफ एक अभियान 'के तौर पर मना रही हूँ ,थोड़ी बहुत कामयाबी भी मिलती है जब एक भी शख्स ये गाली ना देने की क़सम खाता है .नामुमकिन है मगर हर बुराई के ख़िलाफ़ एक आवाज़ तो उठानी ही पड़ती है ,तो कोशिश जारी है ,सिर्फ इसी दिन नहीं बल्कि हर दिन मैं अपने आस-पास के गालिनुमां माहौल को मिटाने की कोशिश करती हूँ ,कॉलेज के प्रोग्राम्स में और हर कार्यक्रम में कुछ पेम्फलेट्स बाँट कर आती हूँ ;बहुत लोगों ने और बच्चों ने मुझे कागज़ पर लिख कर दिया है,क़सम खायी है की भविष्य में ये गालियाँ नहीं देंगे ,मैं जहाँ भी काम करती हूँ अपने सामने इनका इस्तेमाल करने वालों को टोक देती हूँ ,आप सबका भी समर्थन चाहती हूँ ;जब हम मां और बहिनों को गाली बनाना और समझना छोड़ देंगे ,तभी सच्चा महिला दिवस होगा .इन पाक रिश्तों और लफ़्ज़ों को गाली की तरह इस्तेमाल करना कहाँ का अदब और तहज़ीब है ?तभी तो कहती हूँ कि समाज जिस दिन सच्चे दिल से अदब और अदीबों से जुड़ेगा ,सभ्य हो जाएगा ,अच्छाई कम आकर्षित करती है लेकिन फिर भी अच्छाई अटल है,बुराई सिर्फ बुराई है ;
बुरे हैं जो शराफ़त का कभी दम ही नहीं भरते
ख़ुदा की ज़ात से भी जो कभी हरगिज़ नहीं डरते
जिन्हें हो प्यार बहिनों से औ माओं से भी निस्बत हो
ज़बां को गालियों से वो सियाह अपनी नहीं करते
पेम्फलेट्स भी आप तक पहुंचा दूँगी ,मेरा साथ दीजिये .चाहती तो ये भी हूँ कि काश आप सब मेरे सम्मान समारोह में शामिल हों और अपनी दुआओं से नवाज़ें;आप सबकी कमी भी खलेगी ;जानती हूँ नहीं आ पाएंगे मगर मैं फिर भी मुन्तज़िर रहूंगी और यही कहूँगी ;
तू अगर प्यार से सुन ले तो ग़ज़ल हो जाऊं
एक नाज़ुक सा मैं शफ्फाफ़ कँवल हो जाऊं
जब भी तू प्यार से देखे है मुसलसल मुझ को
ताज से और हसीं ताजमहल हो जाऊं
तेरे माथे कि शिकन हूँ तो मैं शर्मिंदा हूँ
बड़ी मुश्किल में हूँ हंस दे तो सहल हो जाऊं
तेरा साया जो मेरे जिस्म पे पड़ जाता है
मैं तो मीरा का कि लैला का बदल हो जाऊं
जिस घड़ी तुम को हुई थी जी मुहब्बत हम से
दिल यही चाहे है फिर से वही पल हो जाऊं
तू मुझे वक़्त के क़ानून से रख दूर ज़रा
मैं नहीं चाहती कि गुज़रा हुआ कल हो जाऊं
आईना देख के शर्माए ना तुझ से ऐ 'हया'
इतना सिंगार ना करना कि मैं छल हो जाऊं .
अपनी तमाम बहिनों को महिला दिवस पर अपने बाअदब,बाहया वुजूद के होने का एहसास हो ,इन्ही शुभकामनाओं के साथ ......
'' औरत होने पर फख्र करो ''