ज़िन्दगी में भला और क्या चाहिए
उसकी रहमत तुम्हारी दुआ चाहिए
चाहती हूँ दिलूँ में महकती रहूँ
मैं हूँ खुशबू वफ़ा की हवा चाहिए
मैं ग़ज़ल तो कहूँगी मगर शर्त है
सुनने वाला कोई आपसा चाहिए
हादसों से तो मिलना बहुत हो चुका
आपसे भी तो मिलना ज़रा चाहिए
आपने जब दुआ दी तो ऐसा लगा
आपको भी अदब में "हया "चाहिए .
शुक्रिया
मुझे तुलसी भाई पटेल जी के बच्चों की तरफ से एक बहुत प्यारा मेल मिला था ,,इस ग़ज़ल का तीसरा शेर ख़ास तौर से उन बच्चों के नाम ;जो के छोटे हैं मगर शेर खूब समझते हैं इस दुआ के साथ
सभी को समझे तू अपना कोई बुरा ना लगे
ख़ुदा करे तुझे इस दौर की हवा ना लगे
हादसों से तो मिलना बहुत हो चुका
ReplyDeleteआपसे भी तो मिलना ज़रा चाहिए
बहुत खूब
चरण स्पर्श
ReplyDeleteवाह जी क्या बात हैं आपकी हर अंदाज ही निराली है। शुक्रिया भी अदा तो इस अदा से कि सब कह देते हैं वाह-वाह। हमारा साथ आपके साथ यूँ ही सदा बना रहे और अपनी रचनाओं के माध्यम से हमे यूँ ही सराबोर करतीं रहें आप बस यही दुआ है ऊपर वाले से।
आप हमें ऐसे लाजवाब शेर पढ़वाती है इसके लिए आपको भी सुक्रिया
ReplyDeleteमैं ग़ज़ल तो कहूँगी मगर शर्त है
ReplyDeleteसुनने वाला कोई आपसा चाहिए
हादसों से तो मिलना बहुत हो चुका
आपसे भी तो मिलना ज़रा चाहिए
आपने जब दुआ दी तो ऐसा लगा
आपको भी अदब में "हया "चाहिए .
jee haan! gazal sunne ke liye ....koi aisa to chahiye hi..... jo usko samajh sake......
aur adab mein to haya hoti hi hai......
both adab and haya are complementary to each other......
very gr8 n beautiful gazal.....
Regards..............
हादसों से तो मिलना बहुत हो चुका
ReplyDeleteआपसे भी तो मिलना ज़रा चाहिए
अजी हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं
मैं ग़ज़ल तो कहूँगी मगर शर्त है
सुनने वाला कोई आपसा चाहिए
आपको बता दें कि आप कहती कहती थक जायेंगी मगर हम सुनने से नहीं हटेंगे पहले ही बताये देते हैं बहुत सुन्दर गज़ल है बधाई
लाजवाब ग़ज़ल...सुभान अल्लाह ...
ReplyDeleteनीरज
हयाजी
ReplyDeleteमैं ग़ज़ल तो कहूँगी मगर शर्त है
सुनने वाला कोई आपसा चाहिए
हम आपकी गजलो के कायल है, बस सुनाते रहे हम सुनते रहेगे।
दिल तो था ही , फ़िर मिला दर्द भी,
ReplyDeleteअब तो बस दर्दे दिल की दवा चाहिये,
मैं जिसे रहा था तलाश, वो खुदा तेरा मुरीद निकला,
अब मुझको मेरे लिये तुझ सा ही खुदा चाहिये..
तुझ में लता सी लचक, और हया भी है,
हम तो कायल हैं इतने के ही, तुझको और क्या चाहिये..
लता जी ..आपकी सुंदर पंक्तिय़ों के साथ जो मन में आया जोड दिया...आपने बेहद खूबसूरती से उकेरा है शब्दों को
दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )
" dil ko mila sukun aapke yahaan aaker "
ReplyDelete" mere baccho ki farmaish ko puri karne ke liye aapka tahe dil se sukrguzar hu. MERE BACCHO KE CHAHERE PER THIRAKTI KHUSI AAP KE NAAM HAI...BUS AAPKE HI BADOLAT HAI ....."
" khuda kare ki aap yu hi likhati rahe ."
" MERE DONO BACCHEY aapko salam bhijava rahe hai ise kubul karana .vo kahete hai thanx DIDI ."
" KHUDA AAPKO LAMBI UMR DE "
aapka sukrgujar,
----- eksacchai {AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
http://hindimasti4u.blogspot.com
" A BUNCH OF THANX FROM TULSHIBHAI'S FAMILY "
Har dua saath hai...! Aapka andaze bayaan gazab hai!
ReplyDeleteमैं गज़ल तो कहूँगी मगर शर्त है
ReplyDeleteसुनने वाला कोई आपसा चाहिए...
-आप तो बस सुनाते चलें, सुन रहे हैं. शर्त मंजूर. :)
बहुत उम्दा गज़ल कही है, बधाई.
मैं ग़ज़ल तो कहूँगी मगर शर्त है
ReplyDeleteसुनने वाला कोई आपसा चाहिए
हादसों से तो मिलना बहुत हो चुका
आपसे भी तो मिलना ज़रा चाहिए
अरे हम तो आपसे रु-ब-रु होना चाहते है .....पास से सुनना चाहते है.... कभी लखनऊ आये तो जरूर बताइयेगा .
umda khayalaat.
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
मैं ग़ज़ल तो कहूँगी मगर शर्त है
ReplyDeleteसुनने वाला कोई आपसा चाहिए
सुनते रहेंगे यूँ ही सदा आपको 'हया'
सुनाने वाला कोई आपस चाहिए
मैं ग़ज़ल तो कहूँगी मगर शर्त है
ReplyDeleteसुनने वाला कोई आपसा चाहिए
हादसों से तो मिलना बहुत हो चुका
आपसे भी तो मिलना ज़रा चाहिए
बहुत सुन्दर लिखा है .......... पूरी ग़ज़ल लाजवाब है .......... सब शेर एक से बढ़ कर एक ...... सुभान अल्ला .....
वाक़ई!!आपकी गजल आपके दिल की तरहां ही ख़ूबसुत है।
ReplyDeleteओह, थैंक्यू जी, थैंक्यू !
ReplyDelete:D
bahut sundar rachana hai
ReplyDeleteमैं ग़ज़ल तो कहूँगी मगर शर्त है
ReplyDeleteसुनने वाला कोई आपसा चाहिए
Ultimate
हया जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
आप ने और एक बहुत उम्दा ग़ज़ल पेश किया है.....धन्यवाद.मैं तो यही बस कहूंगा....
आप सुनाती जायेंगी हम सुनते जायेंगे।
क्या-क्या उन ग़ज़लों में है ये गुनते जायेंगे।
हादसों से तो मिलना बहुत हो चुका
ReplyDeleteआपसे भी तो मिलना ज़रा चाहिए
बह्त खूब.
आपकी पूरी ग़ज़ल बेहतरीन शेरों से युक्त है.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
ek achhee aur lubhaavni gzl....
ReplyDeleteek-ek sher aapke nafees khayaalaat ki tarjumaani
kar rahaa hai
aur...tasveereiN khud bol ke keh rahi haiN
k khaaliq ko salaam kahaa jaye
lafz dil-ksh haiN , lehjaa bhalaa aapka
ab ghazal meiN bhalaa aur kyaa chahiye
mubaarakbaad
---MUFLIS---
इस चित्र को देख एक मिसरा याद आया 'उठते नही हैं हाथ मेरे इस दुआ के बाद " आप ने मेरे ब्लोग पर समकालीन कवयित्रियों की कवितायें पढ़ी इसके लिये धन्यवाद ।
ReplyDeleteहया जी,
ReplyDeleteपहले भी कई बार आपके ब्लॉग पर विज़िट कर चुका हूँ परन्तु कमेन्ट देने की हिमाकत नहीं कर पाया। अब चूँकि आपने हुक्म दिया है तो लीजिए............,
आपके ब्लॉग की खासियत है कि आप इसके ज़रिए हर लफ्ज़ से, हर लाइन से, हर शेर से, हर बात से हमसे रूबरू हैं, इस वजह से ब्लॉग में गज़ब की ज़िन्दादिली है। आपकी यह अदा खूब भाई।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
aap aise hi likhte rahiye.. hum zaroor sunte rahenge.. aur hamein haadson se alag category me rakhne ka shukriya... 1 sawaal - har daur me log 'is daur ki hawa' ke khilaf kyon rehte hain?... hum is daur ke hi insaan hain...
ReplyDeleteवाह ! वाह ! वाह ! लाजवाब ! बहुत बहुत सुन्दर ग़ज़ल !!
ReplyDeleteआप बस इसी तरह हमें अपने रचनाओं के पठन का सौभाग्य देती रहें...और क्या चाहिए...
बहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteज़िन्दगी में भला और क्या चाहिए
ReplyDeleteउसकी रहमत तुम्हारी दुआ चाहिए
wah
lata
wah
aapki kavita bahut sunder ..wah
Phir ekbaar apnee dua us ek pasandadeeda dua ke saath dohrane aayee hun...
ReplyDelete' lab pe aatee hai dua ban ke tamnna meree
zindagee shamm kee soorat ho 'haya' teree..'
मैं ग़ज़ल तो कहूँगी मगर शर्त है
ReplyDeleteसुनने वाला कोई आपसा चाहिए
हादसों से तो मिलना बहुत हो चुका
आपसे भी तो मिलना ज़रा चाहिए
haya ke saath hi bahut kuch kah dala aapne
ReplyDeletebahut khoob mohtarma
bahut sundar...
ReplyDeleteaapka samay nikaal kar mere blog pe comment bahut achcha laga didi...Thanks...
sujhav diziyega...
गज़ल - यकीं किस पर करूँ ?
यकीं किस पर करूँ मै आइना भी झूठ कहता है।
दिखाता उल्टे को सीधा व सीधा उल्टा लगता है ॥
दिये हैं जख्म उसने इतने गहरे भर न पाएंगे,
भरोसा उठ गया अब आदमी हैवान दिखता है ।
शिकायत करते हैं तारे जमीं पर आके अब मुझसे,
है मुश्किल देखना इंसां को नंगा नाच करता है ।
वजह है दोस्ती और दुश्मनी की अब तो बस पैसा,
जरूरत पड़ने पर यह दोस्त भी अपने बदलता है ।
है बदले में वही पाता जो इसने था कभी बोया,
इसे जब सह नही पाता अकेले में सुबकता है ।
भले कितनी गुलाटी मार ले चालाक बन इंसां
न हो मरजी खुदा की तब तलक पानी ही भरता है ।
बने हैं पत्थरों के शहर जब से काट कर जंगल,
हकीकत देख लो इंसान से इंसान डरता है ।
कवि कुलवंत सिंह
bahut hi wichittr wichaar hai...bahut sunder
ReplyDeletekya baat hai!
haya ji
ReplyDeletenamaskar
gazal bahut acchi ban padhi hai ..
specially .. haadso waala sher to bus kamaal ka hai ...
meri badhai sweekar kare .
regards,
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
सभी को समझे तू अपना कोई बुरा ना लगे
ReplyDeleteख़ुदा करे तुझे इस दौर की हवा ना लगे
Kya baat hai.Bahut khub.
ज़िन्दगी में भला और क्या चाहिए
ReplyDeleteउसकी रहमत तुम्हारी दुआ चाहिए
चन्द लब्ज़ो में सारी कायनात भर दी। आपने तो कमाल की कलम पायी है। अब तारीफ़ कलम की करूं या आपकी इसमें भी खुदा की खुदाई है।
mai bhi gumnaam shayar hun
ReplyDeletemujhe bhi tera aasra chahiye
हादसों से तो मिलना बहुत हो चुका
ReplyDeleteआपसे भी तो मिलना ज़रा चाहिए
थंक्स दीदी आप मेरे ब्लॉग पर आये.आते रहिएगा अच्छा लगेगा.अपनी राय से भी जरूर नवाजें.
ReplyDeleteजिंदगी में भला और क्या चाहिए
उसकी रहमत आपकी दुआ चाहिए-
mujhe bhi
kya lajavab likhatee hai aap .
ReplyDeleteमेरे इज़हार को कमज़ोर करने की तमन्ना से
ReplyDeleteमुझे हर रास्ते पे रोककर खुशियाँ मनाते हैं ..
मेरे हर जख्म को वो क्यूँ हरा करने की ख्वाहिश में
हया करते नहीं वो बेहया बन मुस्कुराते हैं..
" दुआ " में एक गुलशन दोस्ती का तुम सजा लेना..
ReplyDeleteमेरी नाकाबिले अर्जी को तुम काबिल बना लेना..
खुदा को ढूंढता जो भी फ़रिश्ते की तरह आये,
उसी को ईद के मौके पे तुम ईदी बना लेना....
आपके इस अदब को मैं क्या नाम दूं,
मैं गजल की जुबान तो नहीं जानता..
चाँद लफ्जों में दिल की हया रंग दे
उस हया की नज़र भी न पहचानता..
यूँ महकने से खुशबु वफ़ा बन गयी,
ये तो रहमत-ऐ-खुदाया ही बस मानता..
ऐ हया तू दुआ में गजल बन के आ,
अब खुदा से यही मैं दुआ मांगता..
शायरों को पढ़ा है तो मैं ने बहुत
ReplyDeleteपर न पाया जो उन में "हया" चाहिए
चाहती हूँ दिलूँ में महकती रहूँ ....too good..
ReplyDelete