मेरे दिल पर किसी की भी हुकूमत चल नहीं सकती
मुहब्बत हूँ मेरे आँचल में नफ़रत पल नहीं सकती
करोगे इश्क़ नफ़रत से तो धोखा खाओगे इक दिन
मुहब्बत नाम की औरत कभी भी छल नहीं सकती
उन्हें हिंसा गवारा है, हमें इंसान प्यारा है
कभी इंसानियत खूनी सड़क पर चल नहीं सकती
मैं जब कुछ कर नहीं सकती तो फिर ये सोच लेती हूँ
मुक़द्दर में यही है और होनी टल नहीं सकती
न जाने कौन है जिनको बुराई रास आती है
'हया' को तो गुनाह की एक पाई फल नहीं सकती
मेरे दिल पर किसी भी हुकूमत चल नहीं सकती
ReplyDeleteयहाँ ये तो नहीं लिखना चाह रहीं थीं
मेरे दिल पर किसी की भी हुकूमत चल नहीं सकती
बहुत खूब
इश्क की हुकूमत तो चल सकती है न ?
कभी इंसानियत खूनी सड़क पर चल नहीं सकती
सबसे खूबसूरत पंक्ति
उन्हें हिंसा गवारा है, हमें इंसान प्यारा है
ReplyDeleteकभी इंसानियत खूनी सड़क पर चल नहीं सकती
क्या बात है लता जी। हर एक शेर अपने आप में खूबसूरत है। आप बहुत अच्छा लिखतीं हैं और आपको पढ़ना सुखद लगता है। मैं भी सुर मिलाने की कोशिश करता हूँ-
नई तरकीब से तुमने लगायी आग बस्ती में
मुहब्बत है मेरी चाहत कभी भी जल नहीं सकती
मेरे दिल पर किसी भी हुकूमत चल नहीं सकती
ReplyDeleteमुहब्बत हूँ मेरे आँचल में नफ़रत पल नहीं सकती
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति से लबरेज रचना धन्यवाद
मेरे दिल पर किसी भी हुकूमत चल नहीं सकती
ReplyDeleteमुहब्बत हूँ मेरे आँचल में नफ़रत पल नहीं सकती
वाह लता जी क्या लिखा है आपने। सच बाताऊं आपकी ये रचना दिल को छु गयी। लाजवाब
It takes courage to write " Haya ko gunaah ki ek paai bhi fal nahin saktee" when we are in aworld where there is so much curreption around us.
ReplyDeleteThanks
Akshaya
ReplyDeleteचलिये जी, दिल पर हुकूमत न करवाइये,
पर किसी रोज किसी की बादशाहत तो मँज़ूर ज़रूर ही करेंगी :)
सारे के सारे शेर बेहद खूबसूरत...मुझे बहुत पसंद आई ग़ज़ल
ReplyDeleteशारदा जी शुक्रगुज़ार हूँ , आपने मेरी गलती की और इशारा किया, मैंने वो गलती सुधार ली है.
ReplyDeleteहया
Wah...wah
ReplyDeletekhoob kaha hai aapne....wah
Bahut sundar kaha hai.
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
लता "हया" जी,
ReplyDeleteअच्छी रचना है, दर्शन झलकता है अश’आरों से।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete"मेरे दिल पर किसी की भी हुकूमत चल नहीं सकती
ReplyDeleteमुहब्बत हूँ मेरे आँचल में नफ़रत पल नहीं सकती "
इस गज़ल की प्रशंसा करने के लिए तो मेरे शब्द ही कम पड़ जाते है। बस यही कह सकता हूँ-
"बेहतरीन!"
Sirf ekhee lafz hai..' waah !
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDelete---
'चर्चा' पर पढ़िए: पाणिनि – व्याकरण के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार
वाह !
ReplyDeleteन जाने कौन है जिनको बुराई रास आती है
ReplyDelete'हया' को तो गुनाह की एक पाई फल नहीं सकती
स्वागत है ऐसे महँ विचारों का.
पूरी ग़ज़ल के हर शेर काबिले तारीफ हैं.
बधाई स्वीकार करें.
Lata ji, yu to gazal ke sare sher bahut hi khoobsoorat hai but 1st and 4th ko ham apne pasandida sher mein rakhna chahenge..... aap serial bhi kar rahi hai....ye to aapki post se pata chala.....T.V soap nahi dekhti.....but aap ke khatir dekhenge :-) good luck.. Priya
ReplyDeletethis is an amazing composition...
ReplyDeleteलता 'हया'जी
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करोगे इश्क़ नफ़रत से तो धोखा खाओगे इक दिन
मुहब्बत नाम की औरत कभी भी छल नहीं सकती
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सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छी गजल लिखी है।
आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी, बधाई स्वीकारें।
महावीर बी सेमलानी ''भारती''
आभार
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
मेरे दिल पर किसी की भी हुकूमत चल नहीं सकती
ReplyDeleteमुहब्बत हूँ मेरे आँचल में नफ़रत पल नहीं सकती
बहुत खूब ,बेहतरीन गजल
मतला से मक्ता तक बेहद प्रभावित करते शेर कहे आपने
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
वीनस केसरी
आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गला भी ऊपरवाले ने उतना ही सुंदर दिया है आपको। बहुत आनंद आता अगर आप अपनी आवाज में भी रिकार्ड करके यहां लगा देतीं। पूरी गज़ल सुंदर है, हर शेर पर तालियां।
ReplyDeleteउन्हें हिंसा गवारा है, हमें इंसान प्यारा है
ReplyDeleteकभी इंसानियत खूनी सड़क पर चल नहीं सकती
... बेहतरीन पंक्तियाँ...
टीवी सोप्स देखने की आदत नहीं है, पर आज पत्नी जी ने आपकी ये पोस्ट पढने के बाद ये सीरियल दिखाया मुझे.. :)
ReplyDeleteअच्छा है..
लताजी, आदाब.
ReplyDeleteबहुत खुशी हुई आप जैसी मशहूर-मारूफ हस्ती को ब्लॉग पर देख कर. यकीन हो गया कि ब्लॉग वाकई बुलंदी पर है. आप को एक जमाने तक सुना-पढा है. आज अचानक आप का ब्लॉग देख कर जो खुशी हुई, वो नाकाबिले-बयान है. आप के अशआर की तारीफ किन अल्फाज़ में करूं, अच्छी चीज़ें बोलती बंद कर देती हैं. सिर्फ इतना ही कहूँगा--मुबारकबाद.
आपके इस लाजवाब ग़ज़ल का एक एक शेर दिल पर कितने गहरे उतर अंकित हो गया अब क्या कहूँ...वाह वाह कहते मन थक नहीं रहा......वाह !!!
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत उम्दा ग़ज़ल है!
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र
करोगे इश्क़ नफ़रत से तो धोखा खाओगे इक दिन
ReplyDeleteमुहब्बत नाम की औरत कभी भी छल नहीं सकती
ahut sunder...
मेरे दिल पर किसी की भी हुकूमत चल नहीं सकती
ReplyDeleteमुहब्बत हूँ मेरे आँचल में नफ़रत पल नहीं सकती
करोगे इश्क़ नफ़रत से तो धोखा खाओगे इक दिन
मुहब्बत नाम की औरत कभी भी छल नहीं सकती
उन्हें हिंसा गवारा है, हमें इंसान प्यारा है
कभी इंसानियत खूनी सड़क पर चल नहीं सकती
मैं जब कुछ कर नहीं सकती तो फिर ये सोच लेती हूँ
मुक़द्दर में यही है और होनी टल नहीं सकती
न जाने कौन है जिनको बुराई रास आती है
'हया' को तो गुनाह की एक पाई फल नहीं सकती
देर से आता हूँ तुम्हारे शेर तक
फिर डूबा रहता हूँ बड़ी देर तक
हया है या आशियाना ए बया है
बुनतीहो ख्यालात गुलाबोके ढेरतक
हया जी आप चर्चा पर पधारीं, आपका तहे-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। आपकी प्रतिक्रिया और सुझाव यदि कोई हो तो हमें अवश्य भेजें।
ReplyDeleteधन्यवाद!
करोगे इश्क़ नफ़रत से तो धोखा खाओगे इक दिन
ReplyDeleteमुहब्बत नाम की औरत कभी भी छल नहीं सकती ....
bahut badiya haya ji...
waise to poori ghazal mukamil hai par ye sher khaas taur par accha laga...
yun hi likhte rahiyea.
bahut khoob.......
ReplyDeleteमैं जब कुछ कर नहीं सकती तो फिर ये सोच लेती हूँ
ReplyDeleteमुक़द्दर में यही है और होनी टल नहीं सकती ...bahut achha likhti hai aap....
wow you are a wonderful poet...this creation was very beautiful
ReplyDeleteन जाने कौन है जिनको बुराई रास आती है
ReplyDelete'हया' को तो गुनाह की एक पाई फल नहीं सकती
bahut hi sundar sarahneey bhav. badhai!
शानदार गज़ल
ReplyDeleteमेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ पर आप सभी मेरे ब्लोग पर पधार कर मुझे आशीश देकर प्रोत्साहित करें ।
” मेरी कलाकृतियों को आपका विश्वास मिला
बीत गया साल आप लोगों का इतना प्यार मिला”
aap ko bahut baar suna hai.. har baar ek nayi kashish ke sath aur behatar paaya hai...bahut khoob..aap ki gazal..
ReplyDeleteलता जी नमस्कार
ReplyDeleteआपका बहुँत - बहुँत शुक्रिया की आप बच्चों की ब्लॉग पर आई....
आपकी ये हौसला अफजाई निश्चय ही बच्चो को और लिखने की प्रेरणा के साथ - साथ..
उनमे उत्साह का संचार भी करेगा.....
उन्हें हिंसा गवारा है, हमें इंसान प्यारा है
कभी इंसानियत खूनी सड़क पर चल नहीं सकती ....
क्या खूब लिखा आपने... ये बात दिलको छू गई...
किसी ने सही कहा है..
एक हमारी और एक उनकी, मुल्क में है आवाजे दो...
अब तुम पर है कौन सी तुम आवाज सुनो तुम क्या मानों....
हम कहते है इंसानों में इंसानों सा प्यार रहे ...
वो कहते है हाथो में त्रिशूल रहे तलवार रहे.....
आपकी नज्म, गीत, गजल दुनिया में अम्न, साम्प्रदायिक सदभाव, मुहब्बत और भाईचारे का सन्देश फैलाती रहेंगी....
इन्ही शुभकामनाओं के साथ.....
महेश
good
ReplyDeleteलता जी, आपकी बुलन्द आवाज़,बुलन्द विचार,बुलन्द शायरी व हया पसन्द आई.
ReplyDeleteन्हें हिंसा गवारा है, हमें इंसान प्यारा है
ReplyDeleteकभी इंसानियत खूनी सड़क पर चल नहीं सकती
KHOOBSORAT SHER HAI YE ......... POORI KI POORI GAZAL KAMAAL KI HAI ... BADHAAI
आदरणीय
ReplyDeleteअभिनन्दन,
आपको देखकर तो मैं चौंक ही गया यहाँ पे, अरे! आपको तो मैं पूरे जाल पर पता नहीं कहाँ कहाँ न तलाश-तलाश कर सुनता हूँ...और अब क्या कहूं और आपके लेखन पर क्या प्रतिक्रिया दूं...शब्द कहीं खो से गए हैं...पढ़ते रहना चाहूंगा...बस...
शुभकामनाओं सहित;
AMIT K SAGAR
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आप हैं उल्टा तीर के लेखक / लेखिका? [उल्टा तीर] please visit: http://ultateer.blogspot.com
लता ‘हया’ जी ,
ReplyDeleteनमस्कार,
आप की ग़ज़लों के बारे में क्या कहूँ...एक से बढ़कर एक शेर..किस की तारीफ़ न करूँ...
उन्हें हिंसा गवारा है, हमें इंसान प्यारा है
ReplyDeleteकभी इंसानियत खूनी सड़क पर चल नहीं सकती
bahut hi sunder gajal hai !
देर से आयी हूँ मगर देर आये दुरुस्त आये बहुत् सुन्दर गज़ल है बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeletekyaa baat hai....umdaa.....khubsurat.....badhiya. ......bahut hi badhiyaa....sach....!!
ReplyDeleteउन्हें हिंसा गवारा है, हमें इंसान प्यारा है
ReplyDeleteकभी इंसानियत खूनी सड़क पर चल नहीं सकती
Lata ji ,
apke blog par pahalee bar ayee hoon.par lagata hai ab to-----
is anjuman men ana hai bar bar.....
apkee gazalon ne mera man moh liya.hardik badhai aise lekhan ke liye ..apake seeriyals bhee main dekhatee rahatee hoon.
kabhee samya mile to mere blog par bhee ek nazar daliyega.apaka hardik svagat hai.
Poonam
अदाएं आशिकों की 'जान' तो होती नहीं चम्पक,
ReplyDeleteअदाएं 'जान' ले, शम्मे-हंसी की शान होती है....
कभी कोई ग़ज़ल हालात पे शायर अगर लिख दे,
अगर शायर न हो शामिल ग़ज़ल बेजान होती है....