
कभी-कभी अनमनी सी हो उठती हूँ मैं ,कुछ करने को जी ही नहीं चाहता ,गुमसुम सी,दिल-दिमाग़ जैसे कहीं खो जाते हैं,कोई वजह भी तो नहीं होती ,न कोई ग़म , न कोई शिकायत,न कोई सदमा,न दिल टूटने जैसी कोई बात , बस अचानक ही ऐसी कैफ़ियत तारी हो जाती है ।
ये सिलसिला आज से नहीं , सालों से चला आ रहा है, उस वक़्त से जब मै शायद जज़्बातों का ,कुछ बातों का ठीक से मतलब भी नहीं समझ पाती थी । आप यक़ीन जानिए ,जब मै exam देती थी,तब भी अक्सर ऐसा हो जाता था ,जयपुर दूरदर्शन पर news reading करती थी तब भी - बस दिमाग़ ,हाथ ,आँखें अपना काम करती थीं ,"मैं " कहीं और होती थी , news editor mr.Singhvi कहा करते थे - "इसके पास कोई खड़े रहो वरना ये पता नहीं कहाँ चली जाएगी,न्यूज़ की ऐसी-तैसी हो जाएगी। क्या आपके साथ भी कभी ऐसा होता है ?
अब देखिये ना - २ october गया ,commonwealth games आये-गए ,नवरात्र गुज़र गयी ,दशहरा बीत गया लेकिन कुछ पोस्ट करने को दिल ही नहीं हुआ । पता नहीं क्यूँ ? कभी-कभी दिल का चैनल चाहता है कि तसव्वुर के स्क्रीन पर कोई पिक्चर चलाऊं तो दिमाग़ का रिमोट काम नहीं करता , दिमाग़ कुछ ख़यालात download करना चाहता है तो मूड का केबल disconnect हो जाता है - हाथ यादों के रिमोट को पकड़कर कई चैनल चलाना चाहते हैं ; यादों के,बचपन के, रिश्तों के,काम के ,महफ़िलों के,तन्हाईयों के,तकलीफों के ,मेहनतों के लेकिन जोश का ,प्रेरणा का ,दिलचस्पी का fuse उड़ जाता है , दिल सब से मुलाक़ात करना चाहता है तो रूह तन्हाई की मांग करने लगती है ,नज़र कई मौज़ुआत पे पड़ना चाहती है तो पलकें आँख पर पर्दा डाल देती हैं ; ज़िन्दगी सच्चाईयों से इश्क़ करना चाहती है तो सोचो - फिक्र ख़ुदकुशी कर लेते हैं और फिर मैं ही ग़ज़ल और शेरों का वरक़ के बीच रस्ते में ही क़त्ल कर देती हूँ --------- ये honor killing-सा मामला क्या है ? कल रात बस मै यही सोचती रही - सोचती रही - सोचती रही .......
मौज़ूअ रात भर मैं कई सोचती रही
मै थक गयी ,समझ न सकी ,सोचती रही
बेचैनियाँ पहुँच ही गयीं थीं उरूज पर
मै करवटें बदलती रही ,सोचती रही
बादल फ़लक पे आ तो रहा था नज़र मुझे
बरसेगा कब तलक ? मै यही सोचती रही
मै चाह कर भी दे न सकी बद्दुआ उसे
फिर किसकी हाय उसको लगी ,सोचती रही
यूं भी हुआ के छू न सकी मुद्दतों क़लम
लेकिन ग़ज़ल मैं फिर भी नई सोचती रही
गर मिलके बिछड़ना ही लिखा था नसीब में
फिर किस लिए मै उससे मिली ,सोचती रही
तुम ख़ुश रहो ! ये बोल के वो तो चला गया
औ मै वहीं खड़ी की खड़ी सोचती रही
क्या लाज रख सकेंगे "हया" की वो मुस्तक़िल
उसके क़रीब जब भी गयी ,सोचती रही
x-x-x