
बहुत तवील सफ़र रहा और काफी तकलीफदेह भी,हर कोई हैरान और परेशां,बहुत सी दास्तानें सुनाना बाक़ी है और आप सबको पिछली पोस्ट का जवाब देना भी,लेकिन आज नहीं क्योंकि आज से ठीक एक साल पहले मेरे शहर मुंबई ने आतंक और खौफ़ का ऐसा सफ़र तय किया था जिसकी वहशतनाक दास्ताँ ने न केवल हिन्दुस्तान बल्कि तमाम दुनिया को हिला कर रख दिया था आज भी शहीदान के परिवारवाले और अपनों को खोने वाले जिस कर्ब और तकलीफ़ से गुज़र रहे होंगे उसकी कल्पनामात्र से ही कलेजा मुंह को आ जाता है,अल्लाह उनकी रूह को सुकून और उनके परिवार को हौसला दे.
वक़्त बीत गया लेकिन मेरा शहर .मेरा वतन ......आह ! उनके लिए जाँ-निसार करने वालों की याद में आज तक सिसक रहा है मैं तमाम ब्लोग्गर्स की तरफ से उन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ जो ज़ात प्रांत,मज़हब,भाषा से ऊपर उठकर अपने देश और अपने देशवासियों के लिए जान पर खेल गए:
आज तमाम मुम्बईकर इसी दर्द भरी कैफियत से गुज़र रहे होंगे....
आजकल मेरा शहर आराम से सोता नहीं
हर कोई है ग़मज़दा ख़ुश,कोई भी होता नहीं
हम अगर मज़हब,सियासत को जो रखते अलहदा
फिर कोई इंसानियत को इस क़दर खोता नहीं
धर्म ने ये कब कहा रंग दो ज़मीं को खून से
कोई मज़हब बीज नफ़रत के कभी बोता नहीं
दीन,ईमां,ज़ात कब होती है दहशतगर्द की
ये किसी का बाप,शौहर,भाई और पोता नहीं
ये शहादत का भला है कौन सा रस्ता नया ?
क्यों कोई बच्चों के ज़हनों से भरम धोता नहीं
जाने कैसे संगदिल आक़ा हैं ये आतंक के
देखकर जिनका तबाही दिल कभी रोता नहीं
अस्ल सैनिक सिर्फ अपने देश का होता''हया'
वो बिहारी और बस महाराष्ट्र का होता नहीं
अल्हदा=अलग,तवील=लम्बा,कर्ब=कष्ट,
'काश' !!! दुनियां से जुर्म,आतंक,फिरकापरस्ती,सरहदें,स्वार्थ और नफरतें हमेशा-हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएं... "काश"?
