कुछ मेल मेरे लिए आपकी मोहब्बतों का सबूत दे गए .शुक्रिया
26 जनवरी गयी ,30 जनवरी गयी ,14 और 15 फ़रवरी गयी ,हर मौके पर चाहा की कोई ग़ज़ल पोस्ट करूँ लेकिन चूक गयी और अब जब आप सब के मुखातिब हो रही हूँ तो अफ़सोस की फिर बम ब्लास्ट कि सिहरन से मेरी ग़ज़ल कांप रही है.
26 जनवरी गयी ,30 जनवरी गयी ,14 और 15 फ़रवरी गयी ,हर मौके पर चाहा की कोई ग़ज़ल पोस्ट करूँ लेकिन चूक गयी और अब जब आप सब के मुखातिब हो रही हूँ तो अफ़सोस की फिर बम ब्लास्ट कि सिहरन से मेरी ग़ज़ल कांप रही है.
यहाँ बम है ,वहां बम है ,इधर बम है ,उधर बम है
यही पूछे है हर कोई ,फटा इस पल किधर बम है
घरों में बम ,दुकां में बम ,गली में बम ,कहाँ न बम?
लहू के रंग का अख़बार है हर इक खबर बम है
यही तो होता आ रहा है ,कुछ दिनों कि ख़ामोशी के बाद फिर कहीं बम फट पड़ता है
न जाने कब तक ये सिलसिला चलता रहेगा .इतने दिनों के अंतराल में भी हर पल, हर जगह, हर शहर, हर मौका, हर अवसर, हर मंच पर, हर शख्स के बीच मैंने यही महसूस किया :-
सब कुर्सी के खेल हैं ,सियासत का चक्कर है ,नेताओं की आपसी रंजिश है ,जिसने मासूम जनता को मोहब्बत के दिन ये खूनी तोहफा दिया है ,काश सरहदें और सियासत मोहब्बत के मानी समझ पाती !!! !
जहां जहां मुझे इन्सां दिखाई देता है
न जाने क्यूँ वो परिशां दिखाई देता है
उरूज पर है बहुत अब तो पस्ती -ऐ -इंसां
गुनाह करके भी नाज़ां दिखाई देता है
ये कैसा गुलशन -ऐ -दुनिया में इन्कलाब आया
के जो चमन है वो वीरां दिखाई देता है
कभी जफ़ाओं का शिकवा नहीं किया मैंने
वो बेसबब ही पशेमां दिखाई देता है
मुझे दुआओं की सौगात सौपने वाले
तेरा ज़मीर दरख्शां दिखाई देता है
ये इन्तहा -ऐ-जुनूं है की राहे मंजिल में
खुद अपना साया निगेहबां दिखाई देता है
उड़ा रहा था यही तो 'हया ' मजाक -ऐ -वफ़ा
जो आज सर-ब-गरीबां दिखाई देता है
उरूज = उन्नति
पस्ती -ऐ -इंसां = इंसां का पतन
नाज़ां = घमंडी
जफा = बेवफाई
पशेमां = शर्मिंदा
दरख्शां = रौशन
सर -ब -गरीबां = घुटनों तक झुका हुआ सर
क्या कहूं वेलनटाइन डे पर ?आप के बहुत मेल मिले लेकिन मैं जवाब में इसके सिवा क्या कहूं ?
खून,चीखें ,सनसनी ,मातम ,तबाही दहशतें ,
मुल्क में हथियार ,बारूदों का राशन आ गया
मंदिरों में ,रेल में ,मस्जिद में ,होटल ,मॉल में
फट रहे हैं बम ,समझ लो के इलेक्शन आ गया
सब कुर्सी के खेल हैं ,सियासत का चक्कर है ,नेताओं की आपसी रंजिश है ,जिसने मासूम जनता को मोहब्बत के दिन ये खूनी तोहफा दिया है ,काश सरहदें और सियासत मोहब्बत के मानी समझ पाती !!! !
कैसे कहूँ बी-लेटेड हैप्पी वेलनटाईन डे ?
आपका एक एक लब्ज दर्द में दुबे इंसान और देश के हालत को बयाँ कर रहा है. आप व्यस्तताओं के बीच भी ग़ज़ल से हम सबको ठंडक पहुंचा रहे हैं... बहुत शुक्रिया आपका.
ReplyDeleteये इन्तहा -ऐ-जुनूं है की राहे मंजिल में
खुद अपना साया निगेहबां दिखाई देता है
शायद हमारा कोई अब रहनुमा नहीं है. हाँ, बम का शोर बहुत है.
जहां जहां मुझे इन्सां दिखाई देता है
ReplyDeleteन जाने क्यूँ वो परिशां दिखाई देता है
दर्द में डूबा हुवा नगमा है ..... आज का सच ... सच में बहुत कड़वा है पर सच है .....
परेशानियों में कुछ सुकून मिलता है अच्छी रचनाएँ पढ़ कर ... वो भी जब दिल की बात लिखी हो ...
मोहतरमा लता ’हया’ साहिबा, आदाब
ReplyDeleteलम्बे इंतज़ार के बाद आपका कलाम पढ़ने को मिला, इसकी बहुत खुशी है...
लेकिन जिन हालात का बयान किया गया,
उसने पूरी इन्सानियत को हिला रखा है
कब बंद होगा ये बमों का सिलसिला???
ग़ज़ल का हर शेर दिल को छू गया है-
खासकर ये मतला और दो शेर-
जहां जहां मुझे इन्सां दिखाई देता है
न जाने क्यूँ वो परिशां दिखाई देता है
-उरूज पर है बहुत अब तो पस्ती -ऐ -इंसां
गुनाह करके भी नाज़ां दिखाई देता है...
-ये कैसा गुलशन -ऐ -दुनिया में इन्कलाब आया
के जो चमन है वो वीरां दिखाई देता है...
लता जी, मेहरबानी करके माह में कम से कम दो पोस्ट ज़रूर डाल दिया करें
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
उरूज पर है बहुत अब तो पस्ती -ऐ -इंसां
ReplyDeleteगुनाह करके भी नाज़ां दिखाई देता है
कभी जफ़ाओं का शिकवा नहीं किया मैंने
वो बेसबब ही पशेमां दिखाई देता है
बहुत ख़ूब....! लाज़वाब....!!
मुझे दुआओं की सौगात सौपने वाले
ReplyDeleteतेरा ज़मीर दरकशां दिखाई देता है
बहुत सटीक लिखा है और बहुत मार्मिक भी. मेरा मन तो बहुत खिन्न है इस वक़्त भी क्योंकि एक ही घर के जो दो बच्चे वहां मरे हैं, उन बच्चों के पिता मिस्टर धर और मेरे पति एक ही कम्पनी में काम करते हैं,वो अंकलेश्वर में पोस्टेड हैं और हम यहाँ दिल्ली में
क्या कहा जाय....कुछ लोगों को सुकून दहशत पहुंचा ही मिलता है...खून की होली खेले इनके रात और दिन रंगीन नहीं होते...
ReplyDeleteसचमुच आपने बहुत इतंजार करवाया अपने पाठकों को,पर आपकी व्यस्तता समझी जा सकती है...
हमेशा की तरह मन को छूती सहलाती और झकझोरती अति सुन्दर रचना...
chaliye blog aapko yad to aaya........
ReplyDeletejo hua bahut dardnaak raha ........ kab tak ye chalega ye ek sawal hai.......
aapkeehar sher gahara arth liya hai .......
ये इन्तहा -ऐ-जुनूं है की राहे मंजिल में
ReplyDeleteखुद अपना साया निगेहबां दिखाई देता है
-बहुत उम्दा गज़ल रही. दिल की गहराईयों में उतरती.
मुझे दुआओं की सौगात सौपने वाले
ReplyDeleteतेरा ज़मीर दरकशां दिखाई देता है
bahut achcha sher ........
ये इन्तहा -ऐ-जुनूं है की राहे मंजिल में
खुद अपना साया निगेहबां दिखाई देता है
bahut hi umda baat .....
bahut achchi gazal kahi hai aapne
mahoul bahut khraab ho gaya hai .....pata nahi kab aman hoga
बहुत खूबसूरत लफ़्ज़ों में.... लाजवाब ग़ज़ल...
ReplyDeleteहर-हर बम-बम!
ReplyDeleteजय बम भोले!!
मुझे दुआओं की सौगात सौपने वाले
ReplyDeleteतेरा ज़मीर दरकशां दिखाई देता है
हया जी यह शे'र मुझे खासा परेशान कर रहा है ... वेसे तो पूरी ग़ज़ल ही मुकम्मल है मगर इस शे'र आगे ठिठका सा पा रहा हूँ खुद को ... कमाल की ग़ज़ल कही आपने ...
बधाई कुबूलें...
अर्श
Idher kaafi dino se aapki koi post nahi mili....soch hi rahe they ki kisi din mail kar haal chaal le lein.....hamne thoda alas kiya aur aapki post pahuch gai.....Sach bole haya ji to ham ise padh kar bahut dukhi hue....aapke shabko ke sach ne dil ko dukh diya.....Lekin yahi mahaul hai desh ka...aaye din kuch na kuch....ham in sab se door bhaag jana chahte hai
ReplyDeleteaankhein kholne ke liye kaafi hai aapki ye rachna...
ReplyDeletebahut he umdaa....
लता जी कहते हैं इंतज़ार का फल मीठा...ये बात आज आपके ब्लॉग पर आने पर पता चली...यूँ हम रोज़ आते और खाली हाथ लौट जाते थे आपके ब्लॉग से लेकिन आज आपने झोली भर दी...खूबसूरत ग़ज़ल पढने को मिली....एक बार फिर आपकी लेखनी की ताकत से रूबरू हुए...आप के ज़ज्बे को सलाम किया..और दिल ही दिल में ढेरों दुआएं दीं...लिखती रहो ऐसे ही...हमेशा...
ReplyDeleteनीरज
आदरणीया दीदी, देर से ही सही.. दर्द में ही सही.. मगर आपकी ये संवेदना की नींद खोल देने वाली ग़ज़ल तो पढ़ने को मिली... उम्मीद है कि आपको 'अनुभूतियाँ' मिल गई होगी..
ReplyDeleteजय हिंद... जय बुंदेलखंड...
उरूज पर है बहुत अब तो पस्ती -ऐ -इंसां
ReplyDeleteगुनाह करके भी नाज़ां दिखाई देता है
कभी जफ़ाओं का शिकवा नहीं किया मैंने
वो बेसबब ही पशेमां दिखाई देता है
लाजवाब है.
जहां जहां मुझे इन्सां दिखाई देता है
ReplyDeleteन जाने क्यूँ वो परिशां दिखाई देता है
उरूज पर है बहुत अब तो पस्ती -ऐ -इंसां
गुनाह करके भी नाज़ां दिखाई देता है
lata साहेबा ,आप का आना इतने दिनों बाद हुआ वो भी ऐसे हालात और तकलीफदेह जज़्बात के साथ, पूरी ग़ज़ल ही खूबसूरत है लेकिन ये दो शेर तो दिल को छू जाते हैं इंसान की पस्ती के साथ उरूज का इस्तेमाल आप की शयेराना सलाहियतों की अक्कासी करता है .
ये कैसा गुलशन -ऐ -दुनिया में इन्कलाब आया
के जो चमन है वो वीरां दिखाई देता है
ये शेर भी इंसानियत का दर्द बयान करने में कामयाब है .
जहां जहां मुझे इन्सां ...
ReplyDeleteउरूज पर है बहुत अब तो ...
उड़ा रहा था यही तो ...
बेहतरीन अशआर।
जहां जहां मुझे इन्सां दिखाई देता है
ReplyDeleteन जाने क्यूँ वो परिशां दिखाई देता है-
hum bhi unhi insanon me shamil hain didi.ye daur hi aisa hai kya karen.
बेहतरीन !लाज़वाब!!
ReplyDeleteआपके अन्दर एक सच्चे इन्सान का दिल है। तभी तो ऐसे वाकआत देख सुनकर आपकी कलम चुप नहीं रहती। आपका कलाम इन्सानियत की जिस पक्षधरता और सरोकार की ओर इशारा करता है, उसे देखकर आपको और आपके कलाम को सलाम करने को जी करता है। हया जी, बहुत खूब लिखती हैं आप।
ReplyDeleteआज के हालात पर आपकी सच्ची और जायज सोच को बयाँ करता हुआ और "खून,चीखें .... एलक्शन आ गया" के बाद आपका ये कहना "कैसे कहूँ बी-लेटेड हैप्पी वेलनटाईन डे?" तो मानो 'पस्ती-ऐ-इंसां' की प्रतिमूर्ति बनकर सामने खड़ा है.
ReplyDeleteवाह वाह
ReplyDeleteमजा आ गया दोस्त बेहतरीन गजल
आपकी "हया" कमाल की है..लताजी हमने तो बस इसी लफ्ज़ को अपना मूलमंत्र मान लिया है..
ReplyDeleteतेरी ज़ालिम अदाओं ने मुझे हर बार मारा है..
कभी थोड़ी "हया" से तो कभी बेबाक मारा है..
मेरे आंसू तेरी आँखों के शीतल नाज़ बन जाते,
मगर उनको तेरी नफरत ने तो बिंदास मारा है..!
इस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे..
ReplyDeleteना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना..
लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है..
कोई बाहर का पक्का रंग लगाना..
के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये..
ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये..
इस बार.. ऐसा रंग लगाना...
(और आज पहली बार ब्लॉग पर बुला रहा हूँ.. शायद आपकी भी टांग खींची हो मैंने होली में..)
होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...
मोहतरमा लता हया साहिबा, आदाब
ReplyDeleteहोली की बहुत बहुत शुभकामनाएं...
BAHOOT KHOOB WALI BAAT HAI JI.......
ReplyDeletePAR DARD KO DEKH KAR KAHA NAHI JA RAHA HAI,,,,,,