Thursday, January 5, 2012

कभी किरदार भी बदलो


आदाब ,आप सब को नया साल बहुत बहुत मुबारक हो .

नए साल में कई मुशायरे पढ़े .वक़्त की पाबन्दी ने इन महफिलों की रौनक़ छीन ली है , १२ बजे से पहले मुशायरे ख़त्म हो जाते हैं जबकि पहले १२ बजे मुशायरे शुरू हुआ करते थे , उस पर सितम ये के organisers (मुन्तज़मिन) को दिन दिन भर permission लेने के लिए भटकना पड़ता है . ये सवाल हर अदब नवाज़ को परेशां करता है कि ऐसा क्यूँ ?
जहां से मुहब्बत , यकजहती का पैग़ाम जाता है , उन महफिलों पर ये पाबंदी क्यूँ? पाबन्दी ही लगानी है तो बहुत से बुरे शोह्बे हैं . बहरहाल अर्ज़ किया है :-

कैलेंडर ही बदलते हो ,कभी किरदार भी बदलो
गुज़िश्ता साल के ख्वाजासरा सालार भी बदलो
जो मेहेंगाई नहीं रोके , हिफाज़त भी ना कर पाए
किसी दल की भी हो ,ऐसी लचर सरकार को बदलो

ख्वाजासरा सालार : नपुंसक सैनिक

बदलने से कभी तारीख़ क्या तक़दीर बदली है
गुज़रते वक़्त ने बस उम्र की तनवीर बदली है
ना जाने जश्न साले नौ का ये क्यों कर मनाते हैं
ये मग़रिब के असर ने हिंद की तस्वीर बदली है

तनवीर: रौनक , मगरिब: पश्चिम

इधर उर्दू की महफ़िल पर तो ये बंदिश लगाते हैं
उधर मुन्नी को सारी रात होटल में नचाते हैं
अदब को भी मुसलमाँ जान महफ़िल में पुलिस आये
उधर खुद बेहयाई से ये पीते और पिलाते हैं


मेरी उर्दू जलेबी बाई तो हो ही नहीं सकती
ओ' शीला की जवानी में कभी खो ही नहीं सकती
लगाती हूँ मै तुमसे शर्त के तुम लाख सर पीटो
क़यामत तक रहेगी, ये फ़ना हो ही नहीं सकती


तो जब हर मोड़ पर , हर जा करप्शन ही करप्शन है
तो फिर बेकार हैं नारे , अजी बेकार अनशन है
फ़क़त बिल पास होने से बुराई रुक नहीं सकती
मगर अल्हमदुल्लिल्लाह , याँ " हया" होना भी इक फ़न है
अल्हमदुल्लिल्लाह : खुदा का शुक्र है

Monday, August 15, 2011

हम सब है बस हिन्दुस्तानी,हिन्दुस्तान हमारा है



ना मै हिन्दू,न मुस्लिम और ना मै राजस्थानी हूँ ,
मैं तो हूँ इक प्रेम की बोली,बस main हिन्दुस्तानी हूँ ,
कुर्सी से नहीं रिश्ता कोई और ना सत्ता से नाता,
मंच पिता है , श्रोता भाई, सरस्वती मेरी माता
जो इंसां में फ़र्क़ करे वो धर्म नहीं मेरा भाई ,
ज़ात - पात और नफ़रत की मैं खोद सकूंगी न खाई,


इसीलिए जो भी बोलूंगी, प्रेम की वोह होगी बोली,

नहीं उठेगी दर से मेरे नफ़रत की इक भी डोली,
मंदिर - मस्जिद तुम्हें मुबारक ,हमें आदमी है प्यारा,
भारत माँ का इक इक ज़र्रा ,हमें जान से है प्यारा ,


आज यहाँ पर
यही दुआएं तुमको देने आई हूँ,
भारत माँ की जानिब से इक वादा लेने आई हूँ ,
अगर देश से प्यार है तुमको,साथ मेरा देना जमकर,
और भले कुछ कर या मत कर, प्यार कभी भी मत कम कर,
आओ मिलकर प्यार से बोलें ये एलान हमारा है,
हम सब है बस हिन्दुस्तानी,हिन्दुस्तान हमारा है


Happy Indepedence day

Monday, July 4, 2011

सॉरी मैडम , सॉरी मैडम


पहले तो मैं आप सब से सॉरी बोलती हूँ कि इतने दिनों बाद ब्लॉग पर सक्रिय हुई हूँ
मम्मी के जाने के बाद अभी तक उदासीनता की सरहद को लांघ नहीं पाई थी , जैसे diary खो जाने के बाद मैंने दूसरी किताब नहीं लिखी,वैसे ही माँ खोने के बाद तमाम गतिविधिओं से मन उचट सा गया था लेकिन एक ऐसी घटना हुई जिसने मुझे फिर से लिखने पर मजबूर किया
लीजिये,आप भी सुनिए;
" सॉरी मैडम, सॉरी मैडम "जब ऑटो वाले ने मुझसे ये कहा तो यकायक उसके लहजे पर मुझे हंसी आ गयी ,हालांकि वो आगे वाली गाड़ी को तक़रीबन ठोक चुका था लेकिन उससे माफ़ी मांगने के बजाए वो मुझसे मांगने लगा ,मैंने कुछ जवाब नहीं दिया ।
कुछ दिन पहले मै और मेरी एक सहेली किसी कार्यवश मालवानी गए थे । वहाँ से लौटते वक़्त हमने अँधेरी ओशिवरा के लिए एक ऑटो पकड़ा ,मेरी सहेली अपने पिताजी की तबियत को लेके कुछ परेशान थी इसलिए मुसलसल फ़ोन पर व्यस्त थी और मैं हमेशा की तरह कुछ खोजते हुए , सोचते हुए लोगों को observe करने के मूड में थी । बस उसी दौरान एक बार नहीं,दो बार नहीं जब तीसरी बार रिक्शा चालक किसीको ठोकते- ठोकते बचा तो मैंने उसे टोका और फिर जो गुफ़्तगू उसके और मेरे दरमियान हुई ,वो कुछ यूं थी ;

मै :- क्यों भाई,मरने का इरादा है क्या?
ऑटोवाला:- नहीं,सॉरी मैडम,सॉरी मैडम

मैं :- तो फिर ऐसे क्यूँ चला रहे हो,हमें मारना है?
: (हसंकर) नहीं नहीं,सॉरी मैडम सॉरी मैडम

मैं :- अकेले हो क्या,घर वाले नहीं हैं?
:- नहीं मैडम,सब हैं,पांच लोग हैं

मैं :- तो उनके लिए नहीं जीना चाहते?लगता है अकेले कमाने वाले हो इसलिए परेशान हो
:- नहीं मैडम,सब कमाते है

मैं:- ओह,तो फिर ये सोच रहे हो कि सब तो कमाते हैं,मै मर भी गया तो क्या
:- नहीं नहीं मैडम,ऐसा नहीं है

मैं:- तो फिर क्यों ऐसे गाड़ी चला रहे हो?
:- अरे मैडम आप नहीं जानतीं, बहुत टेंशन है

मैं:- अरे , भरा पूरा परिवार है,सब कमाते हैं ,फिर क्या टेंशन?
:- अरे मैडम,मेरी - बीवियां है

मैं:- क्या,- बीवियां? ओह ,तो ये है टेंशन(मैंने हँसते हुए आगे पूछा)क्या नाम है तुम्हारा?
:- सलीम

मैं:- बीवियों का नाम?
:- बड़ी का जास्मीन,छोटी का फ़हमीदा

मैं:- और बच्चे?
:- (शरमाते हुए) बच्चे हैं

मैं:- अरे ,बड़े खुशनसीब हो भाई,तुम तो खुद भी भरे- पूरे हो
:- अरे नहीं मैडम,आप नहीं जानतीं ,परेशान हो गया हूँ दोनों की मच- मच से ,दोनों को रोज़ के २००-२०० रूपये देता हूँ इस महंगाई के दौर में ,फिर भी.....

मैं:- तो भाई क्यों की दूसरी शादी ?
:- मैंने नहीं,घर वालों ने ज़बरदस्ती करवादी

मैं:- ऐसे कैसे करवादी,कोई जवान लड़के के साथ कैसे ज़बरदस्ती कर सकता है ?
:- अरे मैडम,दूसरी बीवी ,पहली बीवी की बेहेन इच है .

मैं:-(अब मैं फिर चौंकी)अरे बड़ी की सगी बहिन से दूसरी शादी? ये तो बिलकुल ग़लत है
:- हालात ही ऐसे हो गए थे मैडम, वो छोटी है ना किसी अब्बास नामके लड़के के साथ भाग गयी थी !
उसको पकड़ के ,ख़ूब मारे,बहुत बदनामी होगई ,कोई उससे निकाह करने को राज़ी इच नहीं ,अब्बास लफड़ा किया ,मै फंसा और फिर सबने छोटी का निकाह मेरे से करवा दिया।

मैं:- बड़ी शादी के लिए राज़ी होगई थी?
:- ख़ूब झगड़ी,अभी भी नाराज़ है

मैं:- तो सही है ना,छोटी की ग़लती की सजा बड़ी को क्यूँ?छोटी को थोडा टाइम देना चाहिए था संभलने का ,शर्मिंदा होने का,और कुछ वक़्त गुज़र जाने के बाद अच्छा लड़का देख कर उसकी शादी करवा देते,क्यों सुन्दर नहीं है क्या छोटी?
:- अरे क्या बताऊँ मैडम,बहुत खूबसूरत है ,कटरीना जैसी (इतराते हुए),आप उसको भीड़ में भी खड़ा कर देंगी ना तो अलग से दिखेंगी

मैं:- ओह,तब ही तुम तैयार होगये, शायद बड़ी ज़्यादा...
:- (जल्दी से) नहीं नहीं मैडम,बड़ी भी कुछ कम नहीं है माशा अल्लाह

मैं:- तो फिर काहेका टेंशन ? - खूबसूरत बीविओं के शौहर हो भैया, नसीब वाले हो
:- अरे मैडम,२००-२०० इनको दो,१०० रूपये मेरा ख़र्चा दिन का, २००-३०० पेट्रोल के, २००-३०० फलाना- फलाना ख़र्चा...मतलब रोज़ का १००० रूपये मांगता ना

मैं:- ऑटो किसका है?
:- मेरा ख़ुद का

मैं:- जब किराए का नहीं है तो क्या टेंशन?ऑटो तुम्हारा ख़ुद का ,बीवियां तुम्हारी ख़ुद की,बच्चे तुम्हारे ख़ुद के ,और क्या चाहिए ? ख़र्चा तो निकाल ही लेते हो
:- हाँ,वोह तो है पर बचत कहाँ..-- घर चलाना आसान है?

मैं:- तो बीवियों को बोलो , घर बैठे कुछ काम करलें जैसे पापड़ बनाना,सिलाई करना....
:-(तैश में आके ) अरे मैडम,दोनों ख़ूब पढ़ी लिखी है,चाहें तो बाहर अच्छी नौकरी करलें

मैं:- हाँ तो करवादो?
:- (और भी तैश में) नहीं नहीं,औरत से काम नहीं करवाने का,उनकी कमाई नहीं खाने का

मैं:- (अब मेरी बारी थी चौंकने की) भई वाह,बात तो तुमने मर्दों वाली की है,ये हुई ना कोई बात,अरे तुम तो बुत ख़ुद्दार हो भई वरना आज के ज़माने में तो अच्छे पढ़े लिखे, पैसे वाले लोग भी कमाऊ औरत चाहते हैं ,कुछ तो सिर्फ़ औरतों की कमाई पर ऐश करते हैं ,तुम तो बिलकुल ऐसे नहीं हो भई
:- (ख़ुशी से चहकते हुए) हाँ मैडम,thank u ,thank u


मैं:- तो बताओ,तुम उन पढ़े लिखे,अमीरज़ादों ,आराम तलब मर्दों से ज़्यादा "खुशकिस्मत ,अमीर ,ख़ुद्दार हो के नहीं" ?
:- हाँ मैडम

मैं:- तो फिर बताओ,क्यूँ टेंशन? achaaaaa.... समझ गयी,ऑटो चलाते- चलाते पक गए हो? taxi कार चलाना है?
:- अरे मैडम taxi waxi नहीं मांगता,अपन ऑटो में ही ख़ुश हैं


मैं:-अच्छा तो एक और ऑटो मांगता है?
:- (हँसते हुए) हाँ हाँ चलेंगा ..

मैं:- तो बस,मेहनत शुरू करदो ,इंशा अल्लाह अगले साल तक ऑटो भी हो jayenge
:- (ख़ुश होके) हाँ मैडम

मैं:- तो बस,- बीवियां , -- बच्चे , -- ऑटो ,हिसाब बराबर ..एक की कमाई एक बीवी को,दूसरे की दूसरी को ,और तुम तो मर्द हो ही ,अल्लाह और देगा
:- (बहुत ख़ुश होकर)हाँ हाँ मैडम,शुक्रिया शुक्रिया


मैं:- तो सलीम,अब तो गाड़ी ढंग से चलाओगे ना?कोई टेंशन तो नहीं पालोगे ,किसी को ठोकोगे तो नहीं?
:- सॉरी मैडम ,सॉरी मैडम


हमारा घर आ चुका था ,मैंने उसे पेमेंट किया और कहा ,"इंशा अल्लाह फिर कभी मुलाक़ात होगी",उसके जाते ही मेरी सहेली बोली :- " लता,तू कितनी अच्छी counselling करती है, मै इतनी परेशान थी लेकिन तू जिस तरह उसको समझा कर यहाँ तक लायी , और वोह ख़ुश ख़ुश गया ,मै सोचने लगी की counselling भी एक आर्ट है "
लेकिन मै अपनी सहेली के compliment पे ख़ुश होने के बजाए सोचने लगी कि मै सब को समझाती हूँ ,रस्ते में,घर में,शूटिंग में,महफ़िल में, गार्डेन में,लेकिन खुद की counselling नहीं कर पायी तो क्या किया? ये तो वही बात हुई " खुद गुरु जी बैंगन खाएं, दूसरों को उपदेश सुनाएं "

उस रात मैंने खुद कि counselling की, ख़ुद से गुफ़्तगू की ,सवाल जवाब किये,ख़ुद को समझाया ,ये ज़िन्दगी का दस्तूर है,जीवन की आवाजाही है..किसी के जाने से ऐसे रुका तो नहीं जाता? और बस ख़ुद से ही ये कहते हुए उठ खड़ी हुई - सॉरी मैडम,सॉरी मैडम ,और ये पोस्ट लिख डाली



कई मरहलों से गुज़रना है मुझको,
अभी तो बहुत दूर चलना है मुझको,




शुक्रिया

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