आख़िर मेरे अंगूठे का प्लास्टर उतर गया , दर्द ज़रूर बाक़ी है,ज़ख़्म भी भर चुका है मगर रह रह कर उठती कसक हादसों की याद ताज़ा कर जाती है ।
किसी ने कहा भी है ना; "मौत तो घर के अन्दर भी आ सकती है " तो बस वैसे ही मेरे साथ दो हादसे घर में ही , चलते फिरते हो गए - जैसे उन्हें तो होना ही था , जैसे कोई बिन बुलाया मेहमान ज़बरन घर में घुस आये ।
सोचती हूँ तो उलझ जाती हूँ कि ये टल भी तो सकते थे ? अगर मै ऐसा ना करती तो शायद ऐसा ना होता , वैसा ना करती तो शायद वैसा ना होता ।
इन्सान की फ़ितरत है जी पीछे मुड़ - मुड़ के देखना ,ख़ुद से उलझना लेकिन "होनी को कौन टाल सकता है '' तो बस ये "होनी" थी तो "होनी" ही थी - हड्डी टूटनी थी तो टूटी , चिन ज़ख़्मी होनी थी तो हुई ,बेशक लापरवाही मेरी भी थी , मै कम ज़िम्मेदार नहीं हूँ ? अब भला क्या ज़रूरत थी जल्दबाज़ी करने की,हाय तौबा मचाने की ; माना "वापी" कवि सम्मलेन में जाना था तो भी इतनी जल्द बाज़ी? आख़िर फिसल गयी ना? अंगूठे की हड्डी तो टूटी ही , चिन ज़ख़्मी हुई सो अलग तो बस कवि सम्मलेन तो गया तेल लेने ,अंगूठा दबाके बैठ गयी ।
वक़्त को बहुत अंगूठा दिखाते है ना हम ? भाग दौड़ कर कर के ? २४ घंटे में कभी -कभी अड़तालीस घंटे का काम करते हैं लेकिन जब वक़्त अंगूठा दिखाता है तो २४ मिनट का काम २४ घंटे में भी नहीं हो पाता और कभी - कभी तो २४ महीने भी लग सकते हैं ।जैसे कभी कभी ग़ज़ल का एक मिसरा तो हो जाता है , दूसरा हो ही नहीं पाता, होता भी है तो एक अरसे बाद ।
पहले तो यक़ीन ही नहीं हुआ कि fracture हुआ होगा लेकिन जब दर्द और सूजन ने अपना रंग दिखाना शुरू किया तो जाना पड़ा मजबूरन डॉक्टर के पास और लो चढ़ गया प्लास्टर - वैसे प्लास्टर भी बड़े advanced,fashionable हो गए हैं , फिरोज़ी color का प्लास्टर देखते ही बनता था - मेरे सैमसंग मोबाइल से बिलकुल मैच करता हुआ - कभी मेरे कपड़ों और purse से भी मैच कर जाता था तो अक्सर सब ये पूछते कि ये क्या है? प्रोग्राम में दूर से दर्शकों को वोह किसी दस्ताने का सा एहसास देता था , जब तक ख़ुद ना बताओ कि भाई मेरे ये प्लास्टर है ,लोग इसे फैशन का ही एक हिस्सा मान बैठे थे - ख़ैर , उस ख़ूबसूरत प्लास्टर के साथ कार्यक्रम तो ख़ूब किये,तक़रीबन १२-१३ - जैसे उपरवाला compensate करना चाहता हो - कहते हैं ना कि वोह इम्तहान लेता है तो हौसला मंदों को नंबर भी ख़ूब देता है -वैसे तो उसके करम से काम की कोई कमी नहीं लेकिन इस बार तो जैसे एक साथ तांता सा लग गया था - वक़्त कहाँ बीत गया पता ही ना चला । शूटिंग भी शॉल ओढ़कर करली ( इंसान चाहे तो मुश्किल घड़ी में कोई रास्ता तलाश ही लेता है )
वाक़ई इंसां दर्द को नज़र अंदाज़ करे , हालात से दोस्ती करले ,वक़्त को अपनाकर मेहनत को साथ ले ,हौसले की डगर पर चल काम में लग जाए तो हादसों को भुलाना तक़रीबन आसान हो सकता है फिर भी ख़ुदा से यही दुआ है क़ि वोह ना केवल सिर्फ़ मुझे बल्कि सबको महफूज़ रखे ठीक वैसे ही जैसे उसने मुझे अनगिनत हादसात झेलते हुए भी रखा हुआ है - यक़ीन जानिये, अगर मैंने सब का ज़िक्र करना शुरू कर दिया तो आप मुझे "राणा सांगा की बहिन" का ख़िताब दे देंगे और ये तो सिर्फ़ जिस्मानी हादसात की एक झलक मात्र थी ,औरत होने के नाते मानसिक ,रूहानी,दिली हादसात भी झेलने पड़ते हैं जिसे मेरी तमाम blogger सखियाँ , सह पाठिकाएं , लेखिकाएं ,बखूबी समझ सकती हैं । औरत की यही ख़ासियत है कि वो जितना ज़ख़्मी होती है उतना मज़बूत होती जाती है ।
कौनसा ऐसा हादसा होगा जो मैंने ना झेला होगा लेकिन मेरे मालिक का करम है कि उसने हर चोट के साथ एक मज़बूती का एहसास दिया।
कभी अपनी autobiography लिखी तो एक एक का ज़िक्र करती चलूंगी ।
कभी कभी तो सोचती हूँ "हादसे" उन्वान से एक blog ही खोल दूँ और उसमे पहली ग़ज़ल ये डालदूं :-
हादसों से मेरी वैसे तो है पहचान बहुत
फिर भी बेख़ौफ़ हूँ , ख़ुशबाश मेरी जान बहुत
इतना आसां नहीं माज़ी से बग़ावत करना
ज़लज़ले उठते हैं , आजाते हैं तूफ़ान बहुत
उसकी तजवीज़ के आँखें मेरी उसको देखें
ये वो मुश्किल है जो उसके लिए आसान बहुत
मेरा शाईस्ता ज़हन मुझको ये समझाता है
दिल की अवाज ना सुन , दिल तो है नादाँ बहुत
वक़्त के साथ फ़ना होती हैं कितनी ख़ुशियाँ
और मादूम हुए जाते हैं अरमान बहुत
ज़िन्दगी तेरी मैं तफ़सीर करूँ भी कैसे?
पढ़ ही पायी हूँ कहाँ मै तेरे फरमान बहुत?
ए " हया " लिखनी है हस्सास ग़ज़ल जो तुमको
किसी हीले से करो दिल को परेशान बहुत
- - -
हस्सास:- sensitive
हीले:- bahane
मादूम:- धुन्दला पढ़ जाना
तजवीज़:- proposal
तफसीर:- व्याख्या
और हाँ, आप सब की दुआओं ने मुझे बहुत हौसला दिया , पुरसिशे हालात का बहुत - बहुत शुक्रिया ।
THANK YOU
एक-एक हर्फ़ जो इस ग़ज़ल में ताक रहे हैं वे अपनी तर्ज़-ए-बयां से अपने समय के विकट-प्रकट यथार्थ को सामने लाते हैं।
ReplyDeleteअब तक तो नारी को मजबूती की पराकाष्ठा में पहुँच जाना चाहिये। भगवान करे कि देर सबेर यह सत्य हो जाये।
ReplyDeleteवाकई बेहद खूबसूरत रचना है!
ReplyDeleteइतना आसां नहीं माज़ी से बग़ावत करना
ReplyDeleteज़लज़ले उठते हैं , आजाते हैं तूफ़ान बहुत
--
बहुत ही बढ़िया अशआरों से आपने इस गजल को सजाया है!
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल .
ReplyDeleteशेर शेर हादसा, लफ्ज़ लफ्ज़ ज़लज़ला.
आपकी कलम को सलाम.
लता जी आपके अशआर बेहद रोचक और प्रभावशाली हैं| अपनी ग़ज़ल का एक शे'र पेशेखिदमत है:-
ReplyDeleteमेरे दिल की तसल्ली कहाँ गुम हो तुम|
जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गयी||
लता जी, अच्छा लगा यह जानकर कि अब आप पहले से बेहतर हैं। आपने कितनी सच बात लिख दी है -"वक़्त को बहुत अंगूठा दिखाते है ना हम ? भाग दौड़ कर कर के ? २४ घंटे में कभी -कभी अड़तालीस घंटे का काम करते हैं लेकिन जब वक़्त अंगूठा दिखाता है तो २४ मिनट का काम २४ घंटे में भी नहीं हो पाता और कभी - कभी तो २४ महीने भी लग सकते हैं ।"
ReplyDeleteआप की कलम में बहुत जान है। आप लिखती रहें इसी तरह। ऑटोबायोग्राफी भी लिख ही डालिए…
वक़्त के साथ फ़ना होती हैं कितनी ख़ुशियाँ
ReplyDeleteऔर मादूम हुए जाते हैं अरमान बहुत
behad khoobsurat likhtin hain aap.jaldi-jaldi likha keejeeye yahi chahti hoon.asha hai aapki oongli ab pahle se achchi hogi.
बहुत ही बढ़िया अशआरों से आपने इस गजल को सजाया है| धन्यवाद|
ReplyDeleteखूबसूरत बंदिशें हैं आपकी लता जी, आशा करता हूँ आप जल्दी से अच्छी हो जाएँ!
ReplyDeleterealy very touchy
ReplyDeletehttp://amrendra-shukla.blogspot.com
शायर विजय वाते साहब का एक शेर है:-
ReplyDeleteएक पल से एक पल का सिलसिला है ज़िन्दगी।
हादसा फिर हादसा, किर हादसा है ज़िन्दगी।
शायद ही कोई हो जिसका हादसों से पाला न पड़ा हो...लेकिन उन्हें भूल कर आगे बढ़ने का नाम ही ज़िन्दगी है...आप भी ज़िन्दगी जीना जानती हैं इसीलिए हादसे भुला कर आगे बढ़ रही हैं...
निहायत खूबसूरत ग़ज़ल, जिसका हर शेर हीरे की तरह चमक रहा है, के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं और यूँ ही हंसती मुस्कुराती आगे बढती जाएँ...
नीरज
दुर्घटनाये वस्तुतः जीना और दुनिया को जानना सिखाती हैं...
ReplyDeleteहालाँकि इसका मतलब यह नहीं कि आपके दुःख को हम सही ठहरा रहे हैं...आप स्वस्थ रहें,प्रसन्न रहें यही हमारी मनोकामना है...
बहुत सुन्दर रचना पढवाई आपने...
आभार..
उसकी तजवीज़ के आँखें मेरी उसको देखें
ReplyDeleteये वो मुश्किल है जो उसके लिए आसान बहुत
बहुत खूब! उम्दा ग़ज़ल!
पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर, अब तो बार-बार आना पड़ेगा.
सच्चाई को इतने ख़ूबसूरत अल्फ़ाज़ों में हर बार जाने कैसे पिरो लेती हैं आप और हर बार की तरह हम कह उठते हैं 'बहुत ख़ूबसूरत'...
ReplyDeleteए " हया " लिखनी है हस्सास ग़ज़ल जो तुमको
ReplyDeleteकिसी हीले से करो दिल को परेशान बहुत
क्या कहूँ ???
umda gazal , aur iska to kahna hi kya --
ReplyDeleteइतना आसां नहीं माज़ी से बग़ावत करना
ज़लज़ले उठते हैं , आजाते हैं तूफ़ान बहुत
---sahityasurbhi.blogspot.com
So you show thumb to thumb wound...
ReplyDeleteIts your style...
Haya will talk, only haya way...
Sabhee ashaar ekse badhke ek!
ReplyDeleteChaiye,aapne apne angoothe ko angootha dikhahee diya! Aur badhke kaam kiya!Dua karti hun,kamyabi aapke hardam qadam choome!
ग़ज़ल तो वाकई बेहतरीन है, आपके प्लास्टर की कपड़ों से मेचिंग और ज़िन्दगी का अंगूठा दिखाना पढ़कर होठों पर मुस्कान आ गयी, shubhkamana!
ReplyDeleteachchha laga...padh kar.!
ReplyDeleteबहुत खूब! उम्दा ग़ज़ल!
ReplyDeleteपहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर, अब तो बार-बार आना पड़ेगा.
Your blog is so nice.
ReplyDeleteइतना आसां नहीं माज़ी से बग़ावत करना
ReplyDeleteज़लज़ले उठते हैं , आजाते हैं तूफ़ान बहुत
ए " हया " लिखनी है हस्सास ग़ज़ल जो तुमको
किसी हीले से करो दिल को परेशान बहुत
ये दो शेर कुछ ज्यादा ही दिलकश लगे मुझे ...सेहत के लिए दुआएं
gr8
ReplyDeleteबुरी खबर मिली। होनी को कौन टाल सकता है लता जी। फिर भी इंसान होने के नाते मन में मलाल रहा जाता है कि ऐसा करते तो कैसा होता। प्रभु इस कठिन वक़्त में आपको साहस और शक्ति दे!
ReplyDeleteहस्सास:- sensitive(संवेदनशील)
ReplyDeleteहीले:- bahane(बहाने)
मादूम:- धुन्दला पढ़ जाना(धुंधला पड़ जाना)
तजवीज़:- proposal(प्रस्ताव
लता जी आपको कई बार देखा सुना है गोवंडी के मुशायरे से लेकर अलमा लतीफ़ी के गूंजते कमरे में पर शायद ये शब्दों की तंगी लेखन में है वाचन में नहीं।
शुभेच्छाएं
औरत की यही ख़ासियत है कि वो जितना ज़ख़्मी होती है उतना मज़बूत होती जाती है ।
ReplyDeleteसही कहा है आपने हयाजी। चलो आख़िर आपके अंगूठे का प्लास्टर तो उतर गया। कुछ हादसे याद रह जाते हैं प्लास्टर कि तरहाँ !! है ना हयाजी।
आदरणीय हया जी , सादर प्रणाम
ReplyDeleteआपके बारे में हमें "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" पर शिखा कौशिक व शालिनी कौशिक जी द्वारा लिखे गए पोस्ट के माध्यम से जानकारी मिली, जिसका लिंक है...... http://www.upkhabar.in/2011/03/jay-ho-part-2.html
इस ब्लॉग की परिकल्पना हमने एक भारतीय ब्लॉग परिवार के रूप में की है. हम चाहते है की इस परिवार से प्रत्येक वह भारतीय जुड़े जिसे अपने देश के प्रति प्रेम, समाज को एक नजरिये से देखने की चाहत, हिन्दू-मुस्लिम न होकर पहले वह भारतीय हो, जिसे खुद को हिन्दुस्तानी कहने पर गर्व हो, जो इंसानियत धर्म को मानता हो. और जो अन्याय, जुल्म की खिलाफत करना जानता हो, जो विवादित बातों से परे हो, जो दूसरी की भावनाओ का सम्मान करना जानता हो.
और इस परिवार में दोस्त, भाई,बहन, माँ, बेटी जैसे मर्यादित रिश्तो का मान रख सके.
धार्मिक विवादों से परे एक ऐसा परिवार जिसमे आत्मिक लगाव हो..........
मैं इस बृहद परिवार का एक छोटा सा सदस्य आपको निमंत्रण देने आया हूँ. आपसे अनुरोध है कि इस परिवार को अपना आशीर्वाद व सहयोग देने के लिए follower व लेखक बन कर हमारा मान बढ़ाएं...साथ ही मार्गदर्शन करें.
आपकी प्रतीक्षा में...........
हरीश सिंह
संस्थापक/संयोजक -- "भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" www.upkhabar.in/
काफ़ी दिन हो गए आपकी तरफ से कुछ आया नहीं...
ReplyDeleteऐसा हादसा मेरे साथ भी हो चुका है। उस तकलीफ का
ReplyDeleteसहसास वही कर सकता है जो उसे भोग चुका हो। मुझे
उस दर्द का अनुभव है। अब उससे उबर चुका हूँ।
प्रशंसनीय लेखन के लिए बधाई।
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"हर तरफ फागुनी कलेवर हैं।
फूल धरती के नए जेवर हैं॥
कोई कहता है, बाबा बाबा हैं-
कोई कहता है बाबा देवर है॥"
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क्या फागुन की फगुनाई है।
डाली - डाली बौराई है॥
हर ओर सृष्टि मादकता की-
कर रही मुफ़्त सप्लाई है॥
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होली के अवसर पर हार्दिक मंगलकामनाएं।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://vangaydinesh.blogspot.com/
http://pareekofindia.blogspot.com/
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
मानों मथ कर निकाला मक्खन.
ReplyDeleteBhaut he achcha likha hai aapne
ReplyDeleteVivek Jain vivj2000.blogspot.com
इतना आसां नहीं माज़ी से बग़ावत करना
ReplyDeleteज़लज़ले उठते हैं , आजाते हैं तूफ़ान बहुत
आदरणीया लता "हया" जी हया देख वैसे भी सम्मान बढ़ जाता है मेरा नारियों के प्रति -नारी मन की बातें सार्थक अभिव्यक्ति -बेबाक बातें -पुरस्कार व् समाचार ,छवियाँ सुन्दर लगीं वैसे तो उर्दू के लफ्ज हमें कुछ कम ही समझ आये लेकिन उनका भी कुछ वर्णन कर आप ने सरल बना दिया है -उपर्युक्त पंक्तियाँ खूब बन पड़ी आइये आप हमारे ब्लॉग पर भी अपने सुझाव व् समर्थन के साथ
जो बेजते थे दर्दे दिल की दवा वो अपनी दुकान बढ़ाए गए। औरत तो इस संसार की जननी है औरत का दूसरा रुप ही हिम्मत है।
ReplyDeleteकभी हमारे ब्लॉग पर दस्तखत करिए यकीन मानिए अच्छा लगेगा।
wwwkufraraja.blogspot.com
बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
ReplyDeleteयहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके.,
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.
Ek ajeeb si kashish hai aap ki kalam-e-bayani me....Dil se likhi Behad khubsurat rachana....
ReplyDeleteज़िन्दगी तेरी मैं तफ़सीर करूँ भी कैसे?
ReplyDeleteपढ़ ही पायी हूँ कहाँ मै तेरे फरमान बहुत?
बहुत ही शानदार!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
maine etv par apki ek show ko suna tha. usme aapki panktiyaan kuch yun th' "Kal raat ko sapne me aaye the raam ji de gaye savalat ki parchi" something like this.
ReplyDeleteKya aap wo post kar sakti hai yaha par
लता हया साहिबा
ReplyDeleteआदाब
अभी तक आपको सुना था अच्छा लगता था लेकिन आज आपको पढ़ने का इत्तेफाक हुआ तो और ज्यादा अच्छा लगा आपको मैंने अपने चैनल
www.youtube.com/hadijaved2006 पर कई विडियो क्लिप्स अपलोड की हुई हैं जिसमें से २ क्लिप्स आपकी वेबसाइट पैर शोभायमान हैं ये मेरी खुशनसीबी है की आपकी वेबसाइट पर लोग मेरी क्लिप्स को देख रहे हैं शुक्रिया
आप तथा आपके परिवार के लिए नववर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएं
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 02-01-2012 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
अच्छा संस्मरण ,अश्थी भंग का यादगार प्रसंग अगूंठा जो कल तक मामूली था वह देखते ही देखते इतिहासिक बन गया ,चिन भी अब मान्यता प्राप्त सहानुभूति संसिक्त हो गई और ग़ज़ल का तो हर अश आर एक ग़ज़ल है .बधाई नव वर्ष ,'हया 'आपको जो मानवीय अलंकरण है ,कीमती जेवरात है .हर साल सुबह शाम आपको .
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति…………।
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
VAH KYA KHOOB LIKHA HAI ABHAR .
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