Wednesday, September 22, 2010
हिन्दू हैं,मुल्क हिंद है,हिंदी परायी है !
मैं देर करती नहीं ,देर हो जाती है,हालाँकि इस बार उचित कारणों से हुई है,हिंदी पखवाड़ा,गणेश महोत्सव,ईद मिलन के कार्यक्रमों में वक़्त कहाँ गुज़र गया,पता ही नहीं चला। जैसे हम साल भर हिंदी के लिए हिंदी दिवस का इंतज़ार करते हैं ,वैसे ही मैं भी हिंदी की पोस्ट के लिए एक ख़ाली दिवस का इंतज़ार कर रही थी जो आज मिला है ।हालांकि ज़हन में कशमकश चालू थी की आपको हमको भी तो मिलना हैं- मेरी ग़ज़ल "ज़रूरी है" पर किसीने एक कमेन्ट किया था उसे ही शेर के तौर पर आप तक पहुंचा रही हूँ-
चलो माना बहुत मसरूफ है ये ज़िन्दगी लेकिन
मुहब्बत करने वालों से मुहब्बत भी ज़रूरी है
और आप सब तो (ब्लॉग जगत)net पर मेरी पहली मुहब्बत हैं और इन्सान अपनी पहली मुहब्बत को कभी नहीं भूलता,हालांकि आप सब इधर-उधर रक़ीबों के साथ भटकते-भटकते टकरा जाते हैं - कभी facebook पर,कभी ट्विटर पर तो कभी और कहीं मगर फिर लौट कर यहाँ आ जाते हैं,शायद इसी लिए मशहूर शायरा (पाकिस्तान) परवीन शाकिर साहिबा ने कहा होगा-
वो कहीं भी गया लौटा तो मेरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मेरे हरजाई की
तो जनाब यहाँ मिलने का मज़ा ही अलग है क्यूंकि ब्लॉग-जगत तो भाषा-प्रेमियों का सब से रोमांटिक स्थल (लव पॉइंट)है ; यहाँ हिंदी को propose किया जाता है,उसके साथ डेटिंग की जाती है,प्यार भरी गुफ़्तगू की जाती है,कहीं कहीं मैंने तक़रार के नज़ारे भी देखे हैं,कभी शिकायतें होती हैं,गिले-शिकवे होते हैं,रिश्ते टूटते हैं फिर जुड़ जाते है और फिर सब घुल मिलकर वापस गले मिल जाते हैं जैसे हिन्दुस्तानी अपनी महबूबा हिंदी भाषा को साल भर फरामोश करके फिर एक दिन मिल जाते हैं तो ब्रेक ऑफ़ और patch up की इस अदबी दोस्ती-दुश्मनी के मंच पर मेरी मुबारकबाद क़ुबूल करते हुए ग़ज़ल के मतले पर गौर फरमाएं :-
यूँ तो समन्दरों से मेरी आशनाई है
प मेरी प्यास में भी अजब पारसाई है
राहत की बात ये है के बेदाग़ हाथ हैं
उरयानियत की हमने हिना कब लगायी है
छोटी को निगल जाएँ बड़ी मछलियां प मैं
ज़िंदा हूँ इनके दरमियाँ,क्या कम ख़ुदाई है ?
जा मैंने इस्तफादा किया अश्क से तो क्या
तुझको नमी क्या आँख की मैंने दिखाई है ?
इससे बड़ा मज़ाक़ तो होगा भी क्या भला
हिन्दू हैं,मुल्क हिंद है,हिंदी परायी है !
हमको तमाशबीन जो कहते हैं,हैफ़ है
और वो ? दुकान जिसने सदन में लगायी है
ये सोच कर के बात बिगड़ जाये ना कहीं
मैंने लबे-"हया" पे खमोशी सजाई है
--------------
प = पर
आशनाई= जान पहचान
पारसाई = सब्र ,संयम
इस्तफादा= फायदा उठाना
उर्यानियत =नग्नता
खमोशी= ख़ामोशी
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ये सोच कर के बात बिगड़ जाये ना कहीं
ReplyDeleteमैंने लबे-"हया" पे खमोशी सजाई है
अच्छी पंक्तिया ........
पढ़े और बताये कि कैसा लगा :-
(क्या आप भी चखना चाहेंगे नई किस्म की वाइन !!)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html
Kuchh panktiyan,khaaskar ke aakharee do behad pasand aayeen...kisee karan paste nahi ho rahi hain...
ReplyDeleteAapke pyare-se aalekh pe kaun fida na ho jaye?
बहुत अच्छी लगी आज कि पोस्ट...
ReplyDelete" lataji, bahut hi khubasurat post .."
ReplyDelete----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
सच्चाई की परतों को खोलती हुई शानदार पोस्ट!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteआप की हुब्बुल्वतनी और अपनी ज़बानों से मुहब्बत के तो सभी क़ायल हैं
ReplyDeleteएक बहुत उम्दा मतले से शुरूआत ख़ूबसूरत अश’आर से गुज़र कर उतना ही उम्दा मक़ता
बहुत ख़ूब!
हिंदी का दर्द बहुत खूबसूरती से बयान हुआ है,आपकी शैली व्यंग्यात्मक हो गयी है,बहुत अच्चा लगा आपको पढना....
ReplyDeleteशुभकामनाये...
"इससे बड़ा मज़ाक़ तो होगा भी क्या भला
ReplyDeleteहिन्दू हैं,मुल्क हिंद है,हिंदी परायी है !"
"हमको तमाशबीन जो कहते हैं,हैफ़ है
और वो ? दुकान जिसने सदन में लगायी है"
बहुत खूबसूरती से करारा व्यंग किया है. हर बात अपने आप में एक मिसाल है. मेरी कविता हिंदी अंग्रेजी का प्रयोग "मिलन" भी देखें
हर शेर दिल में उतर गया...वाह !!!
ReplyDeleteलाजजवाब ग़ज़ल....
यूँ तो "हिन्दी दिवस" शब्द ही मुझे गाली सी लगती है...पर लगता है चलो इसी बहाने ही सही,इसकी अहर्निश उपेक्षा करने वाले भी इसके नाम पुकार तो जाते हैं...
Vyang shaili mein likhi lajawaab post hai aapki ...
ReplyDeleteतारीफ़ के लिए लफ्ज़ नहीं मिल रहे...आप मदद करें मोहतरमा...सिर्फ ये कहने से के बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने...कुछ अधूरा सा लग रहा है...बार बार पढ़ रहा हूँ और खुश हो रहा हूँ...और क्यूँ न होऊं ? आखिर बहन किसकी है?
ReplyDeleteनीरज
वाह...लता जी,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आएं,
और अम्नो-मुहब्बत का पैग़ाम न पाएं,
ऐसा हो ही नहीं सकता...
बहुत उम्दा कलाम...मुबारकबाद.
hamesha ki tareh yeh bhi bahut bahut sunder rachana hai
ReplyDeleteहिंदी दिवस पर आपकी शानदार पोस्ट हेतु बधाई।
ReplyDeleteइस अवसर पर मैं अपनी अवधी कविता का कुछ
अंश आपको नज़र कर रहा हूँ।
हिंदी का टेम्पो हाई है।
हिंदी का दूध मलाई है॥
हिंदी मा बड़ा चटपटापन-
हिंदी मा निरी मिठाई है॥
----+-----+------+-----
हिंदी कवयत्री हलवाइन-
हिंदी का कवि हलवाई है॥
सद्भावी--डॉ० डंडा लखनवी
बहुत बढ़िया भूमिका भी और गज़ल भी ..लाजवाब
ReplyDeletei m also very happy today is HINDI DAY
ReplyDeleteइससे बड़ा मज़ाक़ तो होगा भी क्या भला
ReplyDeleteहिन्दू हैं,मुल्क हिंद है,हिंदी परायी है ! --------------------------लता जी, आपने एकदम सच लिखा है--हम हिन्दी के साथ यह पराया व्यवहार क्यों करते हैं?
bahoot hi sunder prastuti......
ReplyDeleteछोटी को निगल जाएँ बड़ी मछलियां प मैं
ReplyDeleteज़िंदा हूँ इनके दरमियाँ,क्या कम ख़ुदाई है ?
सच कहा है? अब तो आप का शुमार भी बड़ी मछली में होने लगा है. हम जैसों का ख्याल रखिएगा.
इससे बड़ा मज़ाक़ तो होगा भी क्या भला
ReplyDeleteहिन्दू हैं,मुल्क हिंद है,हिंदी परायी है !
-यही तो बात कचोटती है...
बहुत सटीक रचना!
bahot achchi lagi
ReplyDeleteमोहतरमा हया / लता जी ,
ReplyDeleteबहुत साल पहले हमने एक मुशायरा साथ पढ़ा था, आज
"हिंदी दिवस" पर आपकी ग़ज़ल पढ़ी, बहुत अच्छी लगी.
खासतौर पर ये शेर...
छोटी को निगल जाएँ बड़ी मछलियां प मैं
ज़िंदा हूँ इनके दरमियाँ,क्या कम ख़ुदाई है
जिसमे.....आपकी ही तर्ज़ पर
"पिन्हा है दर्द जिसकी न कोई दवाई है"
कभी फिर इसी तरह मुलाकात हो जाए शायद, आखीर में
ये शेर आपकी नज्र हैं जिसमे हिंदी और उर्दू दोनों बहनों
के साथ मेरा परिचय भी मिल जाएगा..
गले मिली कभी उर्दू जहाँ पे हिंदी से
मेरे मिजाज़ में उस अंजुमन की खुशबू है
वतन से आया है ये ख़त 'रक़ीब' मेरे नाम
हर एक लफ्ज़ में गंगो - जमन की खुशबू है
--- सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
दी कितनी तारीफ़ करुँ इस ग़ज़ल की!!! जितनी भी की जाए उतनी ही कम है.. काश हर शख्स आपकी तरह ही सोचना और करना शुरू कर दे..
ReplyDeleteआप यहाँ रजिस्टर कर सकती हैं जन्मदिन की सूचना के लिए- http://janamdin.blogspot.com/
बहुत ही प्यारी सी पोस्ट...सही बात है साल भर लड़ने झगड़ने वाले प्रेमी जोड़े जिस प्रकार 14 फरवरी को प्यार से गले मिल जाते हैं उसी तरह हिन्दी दिवस के दिन हिन्दुस्तानी भी अपनी हिन्दी को, चाहे कुछ देर के लिए ही सही, गले लगा बैठते हैं...
ReplyDeleteआपकी ग़ज़ल भी हमेशा की तरह बहुत ही ख़ूबसूरत थी, ख़ासतौर पर निम्न पंक्ति...
राहत की बात ये है के बेदाग़ हाथ हैं
उरयानियत की हमने हिना कब लगायी है
बहुत ही खूबसूरत रचना लता .....वाह
ReplyDeleteऔर हिंदी परायी कैसे हो सकती है जिसकी पैरवी तुम जैसी कवियत्री कर रही है ,
जो हिंदी और उर्दू को एक ही सिंहासन पर बिठाती है ........तुम एक बार फिर बधाई की पात्र हो .
जा मैंने इस्तफादा किया अश्क से तो क्या
ReplyDeleteतुझको नमी क्या आँख की मैंने दिखाई है ?
इससे बड़ा मज़ाक़ तो होगा भी क्या भला
हिन्दू हैं,मुल्क हिंद है,हिंदी परायी है !
जब कभी भी आपकी (आपके ब्लॉग पर) गलियों में आ गए
बादल से इन शेरों को मेरे मन पे छ गए .............
दाद क़ुबूल करें ..खाकसार की
हिन्दी पर यह अपनी तरह की अभिव्यक्ति है ।
ReplyDeleteएक फ़िल्मी सॉंग आपको डेडीकेट करते हैं....वही आ गया दिमाग में...
ReplyDelete" दिल आशना है, जिगर आशना है,
तुम पर तो हमारी नज़र आशना है "
सुना है तारीफ करो तो नज़र लग जाती है.....सो नहीं करते हम
गाँधी जयंती की ढेरो शुभकामनाए ...यकीनन आज भी किसी मुशायरे में जलवा बखेर रही होंगी आप :-)
बहुत खूब कहा
ReplyDeleteसच आज हिंदी अपने ही मुल्क में परायी है
यूँ तो समन्दरों से मेरी आशनाई है
ReplyDeleteप मेरी प्यास में भी अजब पारसाई है
राहत की बात ये है के बेदाग़ हाथ हैं
उरयानियत की हमने हिना कब लगायी है
वाह! बहुत उम्दा ग़ज़ल है........
बहुत सुन्दर व सटीक रचना .........पढ़कर बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteyahi dard mera bhi hai......
ReplyDeleteरोचक! बाकी, हिन्दी का दर्द महसूस कर लोग अपने बच्चे अंग्रेजी स्कूल में दाखिल करा देते हैं। :)
ReplyDeleteکیا آپ کا بلاگ اردو میں بھی ہے؟ نہیں ہے تو ہونا چاہئے۔
ReplyDeleteWe have heard you many time in Mushairas on ETV Urdu and we all like not only the contents of your poems but also the way you recite them.
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeletesirf itna k ham hindi hain.jab kuch log ki zaban awadhi,bhojpuri................to hindi inme hain .ya ye hindi me.
ReplyDeletehi hum bhi to appkey hi hey or apka block bhi to hamara hai humay bhut khusi husi appney comment kiya wha kiya baat hai, kiya khoob likha hai
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