Saturday, August 21, 2010
माणुस से माणुस को जोड़ो
भोपाल एअरपोर्ट पर बैठी हूँ,कल B H E L द्वारा स्वतंत्रता-दिवस समारोह के उपलक्ष्य में all India Mushaira आयोजित किया गया था,उससे एक दिन पहले,धार(इंदौर) में भी सर्व धर्म सद्भाव समिति द्वारा अखिल भारतीय कवि सम्मलेन आयोजित किया गया था ; उर्दू मंच हो या हिंदी मंच,मुस्लिम हो या हिन्दू,सब ज़ोर शोर से देशभक्ति से ओतप्रोत रचनाओ को अपना समर्थन दे रहे थे,शहीदों को भीगी आँखों से याद कर रहे थे,समाज के लिए नयी नयी योजनओं को प्रारंभ करने की घोषणा कर रहे थे ; " ये है हिंदुस्तान ",देशभक्ति ,यकजहती ,धार्मिक सौहार्द्र ,मिलजुल कर ख़ुशियाँ बाँटने का प्रयास ; ये वो हिंदुस्तान था जिसके लिए शहीदों ने अपनी जान की बाज़ी लगा दी थी लेकिन हमें दिखाया जाता है वो हिंदुस्तान जो संसद में गाली गलौज करता है ,घोटाले करता है ,बुतों पर जूतों की मालाएं चढ़ाता है,दंगा करता है,धर्म को लेकर झगड़ता रहता है ;जो ग़रीब है,भ्रष्ट है,ज़ात-पात को लेकर अनेक कुंठाओं से ग्रस्त है,जिसे आप हम लोग रोज़ मीडिया की नज़र से देखते है और सियासत की ज़बां से सुनते हैं और नेताओं की बुद्धि से समझते हैं ; मैंने भी यही किया इसलिए आपको happy Independence day नहीं कहा लेकिन जब पिछले २ दिनों में हिंदुस्तान को अपनी नज़र से देखा,श्रोताओं की ज़बान से सुना और अदब के दिमाग़ से समझा तो दिल ग्लानि से भर गया ,तमाम मंज़र ही बदल गया ,यक़ीन जानिए जब हम इन तमाम बुराइयों को नज़रअंदाज़ कर मोहब्बत की नज़र से मुल्क को देखेंगे तो सब अच्छा लगेगा ; तो बस दिल चाहा कि आपको शुभकामनाएं पहुंचा ही दूं , हम क्यूँ अपनी मोहब्बतों ,दुआओं में कंजूसी और कटौती करें ? तो लीजिये देर से ही सही इस ग़ज़ल के साथ आपको स्वतंत्रता दिवस की मुबारकबाद पेश करना चाहती हूँ ;
कुर्सी का नेता क्या बनना,दिल पर राज करो तो जाने
किया शहीदों ने जो कल था,वो ही आज करो तो जाने
ज़ात-पात भाषा का झगड़ा,ये तो कोई काम नहीं है
माणुस से माणुस को जोड़ो,ऐसे काज करो तो जाने
भेद भाव का तिलक लगाकर,माथे की सज्जा करते हो
यकजहती का ख़ून बचाकर,ख़ुद की साज करो तो जाने
कितनो की रोज़ी छीनोगे ,लाशों पर रोटी सेकोगे
हाय ग़रीबो के बच्चों को,ना मोहताज करो तो जाने
अंग्रेज़ों की नीति छोड़ो ,हिन्दुस्तां को यूँ ना तोड़ो
"हिंदी हिंदी भाई भाई" को सरताज करो तो जाने
" भारतवासी भारत छोड़ो", वाह जी ये कैसा नारा है?
नफ़रत की दुनिया का ख़ुद को ,मत यमराज करो तो जाने
केवल अपने घर की रक्षा, ये सैनिक का धर्म नहीं है
हर माँ बहिना की इज्ज़त कर,ख़ुद पर नाज करो तो जाने
यही दुआ है हिन्दुस्तां की सबसे ऊँची कुर्सी पाओ
लेकिन पहले हिन्दुस्तां का ख़ुद को ताज करो तो जाने
(नाज़ की जगह नाज लिखा है स्थानीय भाषा में)
(१६ अगस्त को लिखी थी एअरपोर्ट पे पर किन्ही कारणों से आज पोस्ट कर पा रही हूँ )
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लैपटॉप की खराबी की वजह से न मैं समय पर मेल पोस्ट कर पा रही हूँ ,न किसी को जवाब दे पा रही हूँ इसलिए सब से माफ़ी चाहती हूँ ...जल्द ही इसे सुधारकर मैं आप सब से आपके ब्लॉग पर मिलूंगी ...तब तक के लिए sorry
ReplyDeleteबड़े ही सुन्दर भाव समेटी कविता पढ़वायी आपने।
ReplyDeleteकुर्सी का नेता क्या बनना,दिल पर राज करो तो जाने
ReplyDeleteकिया शहीदों ने जो कल था,वो ही आज करो तो जाने
Shuruaat hi itni badhiyaa thi ki waah!! karne ke siwa kuchh keh nahin paaye :-)
Regards
Fani Raj
यकीनन आज सब तरफ़ गड़बड़ है, बू मारता यथार्थ है, पर आपने जैसा कहा कि हमें अपनी मोहब्बतों, दुआओं में कंजूसी -कटौती नहीं करनी चाहिए। इस समाज में हम अपने तईं जो कुछ भी सकारात्मक हम कर सकते हैं,वह हमें करना चाहिए। आपकी ये पंक्तियां दिल में उतर गईं कि -
ReplyDeleteकुर्सी का नेता क्या बनना,दिल पर राज करो तो जाने
किया शहीदों ने जो कल था,वो ही आज करो तो जाने
ज़ात-पात भाषा का झगड़ा,ये तो कोई काम नहीं है
माणुस से माणुस को जोड़ो,ऐसे काज करो तो जाने
हया जी आपको बधाई !
लता जी, आदाब,
ReplyDeleteसबसे पहले आपको स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं
दोहराने की आवश्यकता नहीं है,
कि आपका लेखन हमेशा उच्च कोटि का रहा है,
जिसका हम पाठक बेताबी से इंतज़ार करते रहते हैं...
पेश की गई ग़ज़ल के लिए यही अर्ज़ है कि...
आपकी ये रचना...उन कृतियों में शामिल है, जिन्हें यादगार कहा जा सकता है.
और...
ये मिसरा...
लेकिन पहले हिन्दुस्तां का ख़ुद को ताज करो तो जाने...
कुछ कहने के लिए अल्फ़ाज़ नहीं हैं,
बस अमल की हिदायत के लिए अल्लाह से दुआ ज़रूर है.
मै ब्लोगर महाराज बोल रहा हूँ
ReplyDeleteमुझे पता चला है कि मिथिलेश भाई को महफूज भाई के खिलाफ भड़काने वाला कोई और नहीं वहीं नारी विरोधी अरविंद मिश्रा है । मुझे पता चला है कि अरविंद मिश्रा ने महफू भाई और अदा दीदी के खिलाफ ,मिथिलेश के कान भरे हैं । मिथिलेश एक अच्छा लेखक है, इस उम्र में जैसा वह लिखता है हर कोई नहीं लिख सकता , वह ऊर्जावान लेखक है जिसका अरविंद मिश्रा गलत उपयोग कर रहा हैं, आईये इस ढोंगी ब्लोगर का वहिष्कार करें , फिर मिलेंगे चलते-चलते । अभी ये मेरी पहली पोस्ट है, आगे और भी खुलासे होंगे । तब तक के लिए नमस्कार ।
वाह लता क्या बात है !काश हमारे मुल्क में सचमुच वो फजां बन सकेकाश तुम्हारा ये पैग़ाम हमारी राजनीति के गलियारे में पहुंचे और उन्हें फिर से सोचने पर मजबूर करे आमीन. जो हमारे तसव्वुर में है
ReplyDeleteबहुत दिनों से इंतज़ार में थी आपकी नयी रचना के...आज पढ़ने को मिली और सार्थक हुआ मेरा इंतज़ार. दिल तो कर रहा है डायरी कर लूँ लेकिन ये मेरे सिद्धांत के खिलाफ है. बहुत बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना. कभी हमारे घर भी आइये.आपका इंतज़ार रहेगा.
ReplyDeleteमानुस से मानुस को जोड़ो.... दी बहुत ही उम्दा ग़ज़ल...
ReplyDeleteख़ूबसूरत चुनौती है लता जी ,
ReplyDeleteसभी को फ़राएज़ याद करा दिये आप ने
ये बलंद ओ बाला तरीक़ ए शाएरी आप का अपना अंदाज़ है
बहुत ख़ूब !
"कुर्सी का नेता क्या बनना,दिल पर राज करो तो जाने
ReplyDeleteकिया शहीदों ने जो कल था,वो ही आज करो तो जाने "
जी बहुत सही कहा आपने, मैं भी ये कहता हूँ-
इससे पहले कि ये तिरंगा हो जाये तार तार
हुक्मराँ में भी शहीदों वाला असर चाहिए
कुर्सी का नेता क्या बनना,दिल पर राज करो तो जाने
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति,बधाई
सही कहा आपने ...बात तो नजर और नजरिये की ही है....नजरिया बदला नहीं की नजारा बदल जाता है..
ReplyDeleteगलत ,बुरा ,बहुत कुछ है अपने आस पास...पर बहुत कुछ बहुत अच्छा भी है..यूँ ही नहीं कहते की अच्छाई पर ही दुनिया टिकती है...
"जय हिंद "
behad khubsurat rachna
ReplyDeleteभाई-बहिन के पावन पर्व रक्षा बन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDelete--
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/255.html
बहुत सार्थक बात कही है ...राजनीति आपस में लडवा कर की जा रही है ...काश लोग इस बात को समझते
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ग़ज़ल.
ReplyDeleteकाश के हमारा हर दिन आज़ादी का दिन हो.....
ReplyDeleteबहुत उम्दा समसामयिक गजल .बेबाक अभिब्यक्ति के लिए मुबारकबाद .
ReplyDeleteरघुनाथ प्रसाद
wah. bahut hi khoobsurat.
ReplyDeleteमानुस से मानुस को जोड़ो.. sab kah gai ye pankti
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आप की सोच का, आप के हौसले का, खुदा करें की आपकी कोशिशें कामयाब हों और सचमुच एक दिन माणुस से माणुस जुड़ सकें ना ही सिर्फ हमारे देश में बल्कि सारी दुनिया में!
ReplyDeleteजन्माष्टमी की शुभकामनायें!
ReplyDeleteदेर से ही सही आते रहिए
ReplyDeleteरस्म मिलने की निभाते रहिए
हमसे मत पूछिए, जाने दीजे
ख़ैरियत अपनी बताते रहिए
देर हुई आने मे मुझको खेद प्रकट करता हूँ दिल से
ReplyDeleteमानुस से मानुस जुड़ने की आप कहें तो कौन ना माने
सादर
केवल अपने घर की रक्षा, ये सैनिक का धर्म नहीं है
ReplyDeleteहर माँ बहिना की इज्ज़त कर,ख़ुद पर नाज करो तो जाने
सत्य सत्य और सत्य के सिवा कुछ नहीं..............
कथनी- करनी , होनी- अनहोनी को परतों को उधेड़ती एक सशक्त रचना.
उम्दा ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
कुर्सी का नेता क्या बनना,दिल पर राज करो तो जाने
ReplyDeleteकिया शहीदों ने जो कल था,वो ही आज करो तो जाने
lata ji
jab bhi aapko padhta hun lab khamosh ho jate hai
wah wahi bhool kar chintan karne lagta hun
aapki shaan mein aise bhi kya kahun ...suraj ko diya bhi to nahi dikhaya jata .
bas hamari duaa hai ki aapko yun hi padhte rahen .kyuki ru-b-ru aapko sunna shayad hi ho
BAHUT HI BADHIYA LIKHA HAI ..... KHUSHI HUI YE DEKHAR KI FEMALE BHI KISI SE KAM NAHI....... GOOD MAM
ReplyDeletebahot achcha laga,hamesha ki tarah.
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आप ने ख़ास कर मुझे वो भोपाल में आयोजित स्वधीनता दिवस पर लिखा है वो मुझे बहुत पसंद आया क्यूँ कि में खुद भी भोपाल से हूँ मुझे नज़म लिखना तो नहीं आता न ही कोई किसी प्रकार कि शयर और शायरी आती है मगर फिर भी नज़मों के द्वारा जब कोई बात आम जनता तक पहुचाई जाति है या कही जाति है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है में इस हिन्दी ब्लॉग जगत में नयी हूँ किन्तु फिर भी आप से अनुरोध करती हूँ कि मैंने भी त्योहारों पर कुछ लिखा है जो बहुत लोगों ने पसंद किया है उम्मीद है आप को भी पसंद आएगा यदि समय मिले तो एक नज़र डालियेगा केवल एक उस ब्लॉग पर ही... अपितु अन्य और ब्लोग्स पर भी आप के बहुमूल्य सुज़वओं का मुझे इंतज़ार रहेगा
ReplyDeleteregards
pallavi