"शुक्रिया" "शुक्रिया" "शुक्रिया"
आप सोचेंगे किसलिए भाई?ओफ़्फोह, जब हम किसी ख़ास मौक़े पर किसी को बधाई देते हैं तो वो पलट कर शुक्रिया अदा करता है ना? तो, दास्ताने-मुख़्तसर ये है कि .....
१२ जुलाई को मेरा ब्लॉग एक साल का हो गया ; अब ज़ाहिर सी बात है ये जानने के बाद तो आप उसे जन्म-दिन की बधाई देंगे ही ना? तो बस
"शुक्रिया" - "शुक्रिया" - "शुक्रिया"
अरे अब तो इतनी ख़ुशी मुझे अपने जन्म-दिन पर भी नहीं होती जितनी आज हो रही है ; बचपन में जरूर होती थी क्योंकि तब रिटर्न गिफ्ट का चलन नहीं था ; अब तो इस उत्सव में भी गिव एंड टेक की रस्म शामिल हो गयी ; ये पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण करते-करते हम अपनी बेलौस बेग़रज़ मुहब्बतों को कहाँ छोड़ आये हैं?
अब ऐसे मासूम , पाक-साफ़, स्वार्थ हीन रिश्ते तो सिर्फ अदबी परिवारों में ही नज़र आते हैं और उन्हीं से तअल्लुक़ रखते हैं : आप और हम -
हाँ तो मैं कह रही थी कि मुझे ख़ुशी हो रही है और इस ख़ुशी के पीछे कई वजूहात हैं जैसे :-
१. अब मैं महफ़ूज़ हूँ
२. अब मुझे कोई नहीं चुरा सकता
३. अब मैं खो भी नहीं सकती
४. अब मैं जाविदाँ रहूंगी
५. जहाँ जाइएगा हमें पाइयेगा
६. अब तन्हाई भी मातम नहीं मनाती है , और
७. घर बैठे बैठे ही गोया नशस्त सी हो जाती है
अब ग़ज़ल के सात अशआर की तरह ये सातों कारण आपको ऊपरी तौर पर तो समझ आ गए होंगे लेकिन जनाब इसके पीछे छुपी है एक बहुत ही " ग़मग़ीन दास्तान" जो तमाम सबूतों के साथ मैं आपके सामने पेश करने वाली हूँ. जितना वक़्त लगा है मुझे वो सदमा भुलाने में , उस से ज्यादा वक़्त लगेगा आपको वो रुदाद सुनाने में ...लेकिन इस से क़ब्ल मैं अपनी पहली पोस्ट के पहले कमेन्ट करने वाले से लेकर मेरी अब तक की आख्रिरी पोस्ट के आखरी कमेन्ट करने वाले की तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ और उनकी भी जो :-
१. नियमित रूप से आते हैं
२. जो कभी कभी आते हैं
३. जो अब बिलकुल नहीं आते
४. जो मेल भेज कर ग़ायब हो जाते हैं , और
५. जो सोचते हैं कि वो नहीं आते तो हम भी नहीं जाते
फिर भी आप सभी ब्लॉगर मुझे बहुत बहुत हैं भाते
क्यूंकि मैं भी सबको जवाब नहीं दे पाती - किसी को शायद एक बार भी न दिया हो लेकिन ये सब मसरूफ़ियत, ग़फ़लत , लापरवाही, सुस्ती या भूल की वजह से हुआ होगा वर्ना मेरी हरचंद कोशिश रहती है कि मैं आप सबसे जुड़ी रहूँ क्यूंकि:
तो बस इस साल सबसे पहले येही काम होगा ; आप सबको कहाँ से ढूंढ - ढूंढ कर मिलूंगी- कुछ सवालात, आपत्तियों, शंकाओं...जिनका जवाब उधार रह गया था ; वो क़र्ज़ उतारूंगी और-और-और उन सबको आप सबकी तरफ से कड़ा जवाब भी दूँगी जो अक्सर पूछते हैं :-
१. अरे आपने ब्लॉग क्यूँ खोला ?
२. क्या ज़रुरत है, मंच है ना?
३. कैसे मेंटेन करती हैं ये सब?
४. वक्त मिल जाता है सबको पढने पढ़ाने का ?
तो भाई इन सबका एक ही जवाब है :-
"हैं जिनके पास अपने तो वो अपनों से झगड़ते हैं
नहीं जिनका कोई अपना वो अपनों को तरसते हैं
मगर ऐसे भी हैं कुछ पाक और बेग़रज़ से रिश्ते
जिन्हें तुमसे समझते हैं जिन्हें हमसे समझते हैं "
हाँ तो मैं कह रही थी कि मुझे ख़ुशी हो रही है और इस ख़ुशी के पीछे कई वजूहात हैं जैसे :-
१. अब मैं महफ़ूज़ हूँ
२. अब मुझे कोई नहीं चुरा सकता
३. अब मैं खो भी नहीं सकती
४. अब मैं जाविदाँ रहूंगी
५. जहाँ जाइएगा हमें पाइयेगा
६. अब तन्हाई भी मातम नहीं मनाती है , और
७. घर बैठे बैठे ही गोया नशस्त सी हो जाती है
अब ग़ज़ल के सात अशआर की तरह ये सातों कारण आपको ऊपरी तौर पर तो समझ आ गए होंगे लेकिन जनाब इसके पीछे छुपी है एक बहुत ही " ग़मग़ीन दास्तान" जो तमाम सबूतों के साथ मैं आपके सामने पेश करने वाली हूँ. जितना वक़्त लगा है मुझे वो सदमा भुलाने में , उस से ज्यादा वक़्त लगेगा आपको वो रुदाद सुनाने में ...लेकिन इस से क़ब्ल मैं अपनी पहली पोस्ट के पहले कमेन्ट करने वाले से लेकर मेरी अब तक की आख्रिरी पोस्ट के आखरी कमेन्ट करने वाले की तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ और उनकी भी जो :-
१. नियमित रूप से आते हैं
२. जो कभी कभी आते हैं
३. जो अब बिलकुल नहीं आते
४. जो मेल भेज कर ग़ायब हो जाते हैं , और
५. जो सोचते हैं कि वो नहीं आते तो हम भी नहीं जाते
फिर भी आप सभी ब्लॉगर मुझे बहुत बहुत हैं भाते
क्यूंकि मैं भी सबको जवाब नहीं दे पाती - किसी को शायद एक बार भी न दिया हो लेकिन ये सब मसरूफ़ियत, ग़फ़लत , लापरवाही, सुस्ती या भूल की वजह से हुआ होगा वर्ना मेरी हरचंद कोशिश रहती है कि मैं आप सबसे जुड़ी रहूँ क्यूंकि:
जिस जगह लोग हों घर तो वही घर होता है
वर्ना दिल तो किसी जंगल सा नगर होता है
सिर्फ मेहनत नहीं काफ़ी यहाँ शोहरत के लिए
अपने लोगों की दुआ का भी असर होता है
तो बस इस साल सबसे पहले येही काम होगा ; आप सबको कहाँ से ढूंढ - ढूंढ कर मिलूंगी- कुछ सवालात, आपत्तियों, शंकाओं...जिनका जवाब उधार रह गया था ; वो क़र्ज़ उतारूंगी और-और-और उन सबको आप सबकी तरफ से कड़ा जवाब भी दूँगी जो अक्सर पूछते हैं :-
१. अरे आपने ब्लॉग क्यूँ खोला ?
२. क्या ज़रुरत है, मंच है ना?
३. कैसे मेंटेन करती हैं ये सब?
४. वक्त मिल जाता है सबको पढने पढ़ाने का ?
तो भाई इन सबका एक ही जवाब है :-
"बन्दर क्या जानें अदरक का स्वाद"
सही है ना? अपनों के बीच रहने, उनसे मिलने- गुफ़्तगू करने, जुड़ने का अपना ही मज़ा है और अब तो हम सब एक परिवार हो गए हैं , आप सबके नाम और कलाम मेरे दिलो-दिमाग़ पर नक़्श हो गए हैं; आप सबके जज़्बात, रचनात्मक मेहनत, मुहब्बत, दुआएं, सुझाव मुझे अचंभित और हर्षित कर जाते हैं ;-
दीपक 'मशाल' सा प्यारा भाई, इस्मत ज़ैदी साहिबा सी आपा, प्रिया सी दोस्त, तुलसी भाई के बच्चों के प्यारे प्यारे मेल, शाहिद मिर्ज़ा साहब जैसे खैरख्वाह, सुभाष नीरव जैसे अदबी, उड़न तश्तरी जैसे मार्गदर्शक और स्मार्ट इंडियन जैसे स्मार्ट भाई,सुलभ भाई जैसे तकनिकी सलाहकार , रंजना, रचना, शमा, सदा,संगीता जैसी बहिने, आप सबके ब्लॉग गुरु पंकज सुबीर जी....उफ्फफ्फ्फ़...किस किसका नाम लूं - किसे छोडूँ - किसे?? और इस परिवार में मुझे शामिल करने का श्रेय जाता है मेरे भाई " नीरज गोस्वामी ' जी को, जो हाथ धो कर और लठ्ठ लेकर मेरे पीछे पड़ गए थे कि - ब्लॉग खोलो -ब्लॉग खोलो- ब्लॉग खोलो- और आखिर 12 जुलाई २००९ को ये नेक काम उनकी मदद से कर ही डाला; बस पहुँच गयी खोपोली तब से जो आने जाने और उनको परेशान करने का सिलसिला चालू है - मैं उनसे कहती हूँ कि "आपने शेरनी के मुंह खून लगा ही दिया है तो भुगतो" और वो भी हंस कर कहते हैं कि "सर ऊखली में दिया तो मूसली से क्या डरना?"
अरे हाँ वो रुदाद जो मैं पीछे छोड़ आई थी वो भी तो आपको सुनानी है- जिसने मुझे ये ब्लॉग खोलने पर मजबूर किया , लेकिन आज नहीं अगली पोस्ट में - क्रमशः ....
तब तक आप सबकी एक वर्षीय मुहब्बत के नाम एक ग़ज़ल :-
ये मुहब्बत तो मौला की सौग़ात है
वर्ना मै क्या हूँ क्या मेरी औक़ात है
गर है जन्नत ज़मीं पे तो बस है यहीं
आप हम है,ग़ज़ल है,हसीं रात है
मेरे आंगन जो बरसे फ़क़त आब है
तेरे आंगन जो बरसे वो बरसात है
(इसी क़ाफ़िए का एक और शेर)
मेरी आँखों में छाए घटा शर्म की
तेरी आँखों में रिमझिम है बरसात है
मैंने देखे है लाखो सुख़नवर मगर
आपकी बात बस आपकी बात है
हम अदीबो का मज़हब फ़क़त प्यार है
हम सभी की फ़क़त एक ही ज़ात है
तुम से मिलते हुए अब भी आये "हया"
ऐसा लगता है पहली मुलाक़ात है -
बेलौस -बिना किसी लालच के
आब-पानी
दास्ताने-मुख़्तसर -छोटी कहानी
सुख़नवर-अदब नवाज़
रूदाद-दुःख भरी कहानी
हया जी ,
ReplyDeleteआपको आपके ब्लॉग के जन्मदिन की बधाई और शुभकामनायें ...
खूबसूरत गज़ल के साथ आगाज़ किया है जन्मदिन का....
आप वाक़ई बहुत सुन्दर लिखती हैं!
ReplyDeleteblog ke ek saal pure hone ki bahut bahut shubhkamnayen !
ReplyDeleteWah! Maza aa gaya aaj kee post padhte padhte!
ReplyDeleteBlog kee saalgiraah bahut,bahut mubarak ho!
bahut bahut badhaai
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनायें इस उपलब्धि के लिये।
ReplyDelete"आपने शेरनी के मुंह खून लगा ही दिया है तो भुगतो" और वो भी हंस कर कहते हैं कि "सर ऊखली में दिया तो मूसली से क्या डरना?"
ReplyDeleteब्लॉग की वर्षगाँठ पर बधाई - लेखनी के नए रूप से रूबरू कराने के लिए आभार
शुभकामनायें!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ
ReplyDeleteये मुहब्बत तो मौला की सौग़ात है
ReplyDeleteवर्ना मै क्या हूँ क्या मेरी औक़ात है
गर है जन्नत ज़मीं पे तो बस है यहीं
आप हम है,ग़ज़ल है,हसीं रात है
हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
निश्चय ही कम्प्लीट-पोस्ट की ओर बढ़ती पोस्ट ! आभार !
ReplyDeleteलता जी....
ReplyDeleteहमेशा कि तरह फिर लाजवाब ग़ज़ल........मुद्दत से आपको सुनता चला आ रहा हूँ. हर बार बेहतरीन तरीके से ग़ज़ल पेश करती हैं.....गज़ब का अंदाज़ है आपका . अब इसी ग़ज़ल को लें....मतला ही जान लेवा है
ये मुहब्बत तो मौला की सौग़ात है
वर्ना मै क्या हूँ क्या मेरी औक़ात है
जो कुछ रहा बचा था तो ये तीन शेर लूट ले गए....
मेरे आंगन जो बरसे फ़क़त आब है
तेरे आंगन जो बरसे वो बरसात है
हम अदीबो का मज़हब फ़क़त प्यार है
हम सभी की फ़क़त एक ही ज़ात है
तुम से मिलते हुए अब भी आये "हया"
और यूँ लगता है पहली मुलाक़ात है -
हमारी दिली दाद क़ुबूल करें
मैं आप सभी का आपके ब्लॉग पर जाकर शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ मगर मेरा लैपटॉप और key pad ठीक से काम नहीं कर रहा , इसी वजह से मैं पिछली मर्तबा भी किसीको जवाब नहीं दे पायी थी , आशा करती हूँ आप सभी मेरी मजबूरी समझते हुए मुझे मुआफ़ करेंगे ,ये पोस्ट भी नीरज भय्या की मदद से आप तक पहुंचा पायी हूँ .आप सबको पढ़ने के लिए मैं भी बहुत बेक़रार हूँ मगर अभी तो मजबूरी का नाम .................लता 'हया' .
ReplyDeleteसब से पहले तो मुबारकबाद क़ुबूल फ़र्रमाएं
ReplyDeleteमैंने देखे है लाखो सुख़नवर मगर
आपकी बात बस आपकी बात है
यही बात हम आप के लिये कहते हैं कि -आप की बात बस आप की बात है एक अलग ही अंदाज़ है आप का जो क़ारी को अपनी तरफ़ खींच ही लेता है
हम अदीबो का मज़हब फ़क़त प्यार है
हम सभी की फ़क़त एक ही ज़ात है
बिल्कुल सही कहा आप ने हम लोगों के लिये समाज का दुख दर्द अपना दर्द बन जाता है इसीलिए ऐसी तख़लीक़ात मंज़र ए आम पर आ पाती हैं
आप ने अपने क़रीबी लोगों में मेरा नाम लिया ,बहुत बहुत शुक्रिया
बड़ा फ़ख़्र सा महसूस हुआ ,ख़ुदा हम सब पर हमारे रिश्तों पर अपनी रहमत बनाए रखे बस यही दुआ है
badhiyaa hai!
ReplyDeleteb'ful gazal.
ReplyDeleteमैंने देखे है लाखो सुख़नवर मगर
ReplyDeleteआपकी बात बस आपकी बात है
हम अदीबो का मज़हब फ़क़त प्यार है
---
!! लता 'हया' जिंदाबाद !!
आपके ब्लॉग के एक साल पूरे होने पर बहुत बहुत शुभकामनाये.... बहुत ही खूबसूरती से आपने लब्जो को सजाया है..! शुक्रिया
ReplyDeletebahot achchi lagi apki baaten.
ReplyDeleteमुबारकबाद और अच्छे मुस्तक़्बिल के लिये अल्लाह से दुआ.
ReplyDeleteग़ज़ल हमेशा की तरह .... लाजवाब !
ReplyDeleteबधाईयाँ!
ReplyDeleteआग्रह है कि नियमितता बढ़ाएँ और अपना समस्त रचना संसार यहाँ प्रकाशित करें.
लता जी आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...आपको पढ़ा...आपको जाना अच्छा लगा. आपकी गज़ल तो उम्दा है ही आपकी शमशीर में भी काफी तेज धार है.
ReplyDeleteआना होता रहेगा.
शुक्रिया.
Lata ji aap bahut sweat hain...kai baar jab ham bahut kuch kahna chahte hain to bole nahi paate....Nahi kar paayenge khud ko express...lekin aapke shabd seedhe dil tak jaate hain....yahi dua hai ki lekhi aur apka naam yugo-yugo tak roshan rahe.
ReplyDeleteAameen
दी सबसे पहले तो देरी से आ पाने के लिए कान खिंचवाने के लिए तैयार हूँ... पर आजकल कुछ व्यस्तता ज्यादा होने की वजह से ब्लॉगदुनिया से थोड़ी सी दूरी बना रखी है, दिल तो नहीं चाहता पर क्या करें मजबूरी है... आपकी ग़ज़ल ने वो सब बातें चंद शेरों में कह दीं जो-जो आप कहना चाहती थीं. पढ़ते-पढ़ते एक जगह नज़र धुंधला भी गई जब देखा कि मेरी दी इतनी व्यस्तता के बाद भी इस भाई को याद रखती हैं. अब शुक्रगुज़ार करके इस रिश्ते को हल्का करने की कोशिश नहीं करूंगा.. मेरी दी की खूबसूरत सोच और गजलों को मंचित करने वाले इस ब्लॉग की सालगिरह पर लख-लख बधाइयां.. ईश्वर करे इस ब्लॉग की गिरहें इसी तरह बंधती जाएँ, बढ़ती जाएँ और साथ-साथ जीवन से मुश्किलों, तकलीफों की गिरहें खुलती जाएँ..
ReplyDelete"हैं जिनके पास अपने तो वो अपनों से झगड़ते हैं
ReplyDeleteनहीं जिनका कोई अपना वो अपनों को तरसते हैं
सच है बहुत इस शेर में ....
आपको एक वर्ष पूरा होने पर बधाई ....
बधाई...........
ReplyDeleteयहाँ आकर "अपने" बनाने का भी अपना अलग मजा है .....
मैंने देखे है लाखो सुख़नवर मगर
ReplyDeleteआपकी बात बस आपकी बात है...
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
हम तो ये शेर यूं पढ़ेंगे.......
हमने देखे है लाखों सुख़नवर ’हया’
आपकी बात बस आपकी बात है...
आपकी इज़ाजत तो है न...
हम अदीबो का मज़हब फ़क़त प्यार है
हम सभी की फ़क़त एक ही ज़ात है...
ब्लॉगिंग की पहली सालगिरह पर आपने
इस शेर की शक़्ल में....
अदबी दुनिया को नायाब तोहफ़ा इनायत फ़रमाया है.....
ये सिलसिला सालो-साल चलता रहे.....आमीन
लता जी एक वर्ष की सफलता पर आपको बहुत बहुत बधाई। आपको मैंने ई टीवी पर सुना है और अक्सर सुनता रहता हूं। उर्दू को लेकर पढ़ी गई गजल को तो मंैने मोबाइल तक में डाल रखा हैं। आपके शेर को मैं अक्सर फेसबुक पर आपके नाम के साथ दूसरों से शेयर करता रहता हूं। यही दुआ है आपकी आवाज यू ही गूंजती रहे और हमें अच्छे शेर पढने को मिलते रहैं।
ReplyDeleteमैंनें आपके बारे मैं कुछ अपने ब्लाग पर लिखने की कोशिश की हैं। इसको आप मेरे लिंक पर देख सकती हैं।
ReplyDeletehttp://sanjayjhabua.blogspot.com/
इतने जोरदार रिटर्न गिफ्ट के सामने हम क्या गिफ्ट दें समझ नहीं आ रहा...
ReplyDeleteचलिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आपकी ये यात्रा निर्विघ्न अबाध चलती रहे..सार्थक लिखती रहें ,साहित्य को समृद्धि देती रहें...
बहुत बहुत शुभकामनाएं...
" lajawab prastuti,der se aane ke liye maafi chahta hu dher saari khusiyaan de gayi aapki post mere baccho ko ..bade lambe arse ke baad maine dekhi muskurahat apne baccho ke chahere per ."
ReplyDeletethanx didi, mere pariwar ki aur se aapka tahe dil se sukriya "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
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ReplyDeleteमोहतरमा...दोहरी खुशियाँ मिली हैं हमें...एक तो ब्लॉग के पहले जन्म दिन की और दूसरी इस मौके पर इतनी खूबसूरत ग़ज़ल की...मैंने तो सिर्फ पटरियां डालीं हैं उसपर धडधडाती रेल तो आप अपने हुनर से ही चला रहीं हैं...दुआ करता हूँ के आपका ये सफ़र यूँ ही दिलकश अंदाज़ में चलता रहे...आमीन.
ReplyDeleteनीरज
lata ji idhar kuchh niji vystataon ke karan aapke aur poste nahi padh saki iske liye dil se maafi chahati hun.
ReplyDeletesarve pratham aapko aapki blog ke varshgaanth par hardik badhai.
hamesha ki tarah aapki yah gazal behatreen lagin
khaskar ye panktiyan-----
ये मुहब्बत तो मौला की सौग़ात है
वर्ना मै क्या हूँ क्या मेरी औक़ात है
गर है जन्नत ज़मीं पे तो बस है यहीं
आप हम है,ग़ज़ल है,हसीं रात है
हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
poonam
mazaa aa gaya apka lekh pad kar to.....
ReplyDeleteshukriya share karne k liye..
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Naani ki sunaai wo kahani..
Banned Area News : Dimpy Mahajan To Appear In A Special Episode Of 'Meethi Choori No1'
हया जी, आपकी इस ताज़ा पोस्ट पर देर से आया। वाकई आपने तो 'शुक्रिया' के बहाने बहुत सुन्दर पोस्ट लगा दी। आपने भले ही पहले ही शुक्रिया कर दिया है पर मैं तो फिर भी आपको बधाई दूंगा और दिल से दूंगा कि आपके ब्लॉग को एक वर्ष हो गया है। और मैं भी आपका तहे-दिल से शुक्रिया करना चाहता हूँ कि आपने चंद नामों में मुझ नाचीज को भी याद किया। हम तो अच्छी शायरी और अच्छे लेखन के आशिक हैं और इसमें यकीनन दो राय नहीं कि आप शायरा भी बहुत अच्छी हैं और लिखती भी बहुत खूब हैं…
ReplyDeleteखुदा से यही इल्तज़ा है कि आप उम्र-दराज हों और इसी तरह बेहतरीन शायरी के परचम फहराती रहें।
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