
आदाब ,आप सब को नया साल बहुत बहुत मुबारक हो .
नए साल में कई मुशायरे पढ़े .वक़्त की पाबन्दी ने इन महफिलों की रौनक़ छीन ली है , १२ बजे से पहले मुशायरे ख़त्म हो जाते हैं जबकि पहले १२ बजे मुशायरे शुरू हुआ करते थे , उस पर सितम ये के organisers (मुन्तज़मिन) को दिन दिन भर permission लेने के लिए भटकना पड़ता है . ये सवाल हर अदब नवाज़ को परेशां करता है कि ऐसा क्यूँ ?
जहां से मुहब्बत , यकजहती का पैग़ाम जाता है , उन महफिलों पर ये पाबंदी क्यूँ? पाबन्दी ही लगानी है तो बहुत से बुरे शोह्बे हैं . बहरहाल अर्ज़ किया है :-
कैलेंडर ही बदलते हो ,कभी किरदार भी बदलो
गुज़िश्ता साल के ख्वाजासरा सालार भी बदलो
जो मेहेंगाई नहीं रोके , हिफाज़त भी ना कर पाए
किसी दल की भी हो ,ऐसी लचर सरकार को बदलो
ख्वाजासरा सालार : नपुंसक सैनिक
बदलने से कभी तारीख़ क्या तक़दीर बदली है
गुज़रते वक़्त ने बस उम्र की तनवीर बदली है
ना जाने जश्न साले नौ का ये क्यों कर मनाते हैं
ये मग़रिब के असर ने हिंद की तस्वीर बदली है
तनवीर: रौनक , मगरिब: पश्चिम
इधर उर्दू की महफ़िल पर तो ये बंदिश लगाते हैं
उधर मुन्नी को सारी रात होटल में नचाते हैं
अदब को भी मुसलमाँ जान महफ़िल में पुलिस आये
उधर खुद बेहयाई से ये पीते और पिलाते हैं
मेरी उर्दू जलेबी बाई तो हो ही नहीं सकती
ओ' शीला की जवानी में कभी खो ही नहीं सकती
लगाती हूँ मै तुमसे शर्त के तुम लाख सर पीटो
क़यामत तक रहेगी, ये फ़ना हो ही नहीं सकती
तो जब हर मोड़ पर , हर जा करप्शन ही करप्शन है
तो फिर बेकार हैं नारे , अजी बेकार अनशन है
फ़क़त बिल पास होने से बुराई रुक नहीं सकती
मगर अल्हमदुल्लिल्लाह , याँ " हया" होना भी इक फ़न है
जो मेहेंगाई नहीं रोके , हिफाज़त भी ना कर पाए
किसी दल की भी हो ,ऐसी लचर सरकार को बदलो
ख्वाजासरा सालार : नपुंसक सैनिक
बदलने से कभी तारीख़ क्या तक़दीर बदली है
गुज़रते वक़्त ने बस उम्र की तनवीर बदली है
ना जाने जश्न साले नौ का ये क्यों कर मनाते हैं
ये मग़रिब के असर ने हिंद की तस्वीर बदली है
तनवीर: रौनक , मगरिब: पश्चिम
इधर उर्दू की महफ़िल पर तो ये बंदिश लगाते हैं
उधर मुन्नी को सारी रात होटल में नचाते हैं
अदब को भी मुसलमाँ जान महफ़िल में पुलिस आये
उधर खुद बेहयाई से ये पीते और पिलाते हैं
मेरी उर्दू जलेबी बाई तो हो ही नहीं सकती
ओ' शीला की जवानी में कभी खो ही नहीं सकती
लगाती हूँ मै तुमसे शर्त के तुम लाख सर पीटो
क़यामत तक रहेगी, ये फ़ना हो ही नहीं सकती
तो जब हर मोड़ पर , हर जा करप्शन ही करप्शन है
तो फिर बेकार हैं नारे , अजी बेकार अनशन है
फ़क़त बिल पास होने से बुराई रुक नहीं सकती
मगर अल्हमदुल्लिल्लाह , याँ " हया" होना भी इक फ़न है
अल्हमदुल्लिल्लाह : खुदा का शुक्र है
बदलाव जीवन का एक सच है।
ReplyDeletekya khoobsurat abhivyaktee hai!
ReplyDeleteक्या साफ़गोई है...लिल्लाह!!!
ReplyDeleteलगाती हूँ मै तुमसे शर्त के तुम लाख सर पीटो
ReplyDeleteक़यामत तक रहेगी, ये फ़ना हो ही नहीं सकती
बहुत खूब कहा है आपने ।
तो जब हर मोड़ पर , हर जा करपशन ही करपशन है
ReplyDeleteतो फिर बेकार हैं नारे , अजी बेकार अनशन है
फ़क़त बिल पास होने से बुराई रुक नहीं सकती
Bahut dinon baad aap nazar aayeen hain blog pe!
ReplyDeleteNaya saal aapko bhee bahut,bahut mubarak ho!
बहुत ही बेहतरीन पोस्ट.......
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट !!!
सुन्दर रचना.....
ReplyDeleteमेरी उर्दू जलेबी बाई तो हो ही नहीं सकती
ReplyDeleteऔर शीला की जवानी में कभी खो ही नहीं सकती
लगाती हूँ मै तुमसे शर्त के तुम लाख सर पीटो
क़यामत तक रहेगी, ये फ़ना हो ही नहीं सकती
wah.....itne dinon baad badi khoobsurti lekar aayeen......
बहुत ही अच्छा लग रहा है आपको पुन: ब्लॉग पर देखकर… बहुत लम्बा इंतज़ार करवाकर आप हाज़िर हुई हैं और बहुत ही अच्छी पोस्ट के साथ… नए साल की बहुत बहुत शुभकामनाएं…
ReplyDeleteनया साल मुबारक
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद ही सही पर नववर्ष के शुभ अवसर पर आपका अपने ब्लॉग पे आना साल की अच्छी शुरुआत है / आपके ब्लॉग ने मेरे नजरिये को बदला और नयी उर्जा दी है / कुछ सीखने के लिए भी मिलता है, इसलिए आपके नए पोस्ट का हमें हमेशा इंतजार रहता है / नए पोस्ट के कुछ कठिन शब्दों को मैं समझ नहीं पाया हो सके तो शब्दार्थ लिख दिया करें / आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामना /
ReplyDeleteकल 11/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, उम्र भर इस सोच में थे हम ... !
ReplyDeleteधन्यवाद!
यह रचना बहुत सटीक और भावपूर्ण है |
ReplyDeleteबधाई
आशा
बेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
sndar post hae, man ki gahrai tak phunch gai.
ReplyDeleteक्या बेहतरीन गज़ल है....
ReplyDeleteसादर बधाई......
गुज़िश्ता साल के ख्वाजासरा सालार भी बदलो.........
ReplyDeleteज़ानदार और शानदार...........अख़बार में छप जाए तो ख़ून खौला देने वाली ग़ज़ल
तो जब हर मोड़ पर , हर जा करपशन ही करपशन है
ReplyDeleteतो फिर बेकार हैं नारे , अजी बेकार अनशन है
फ़क़त बिल पास होने से बुराई रुक नहीं सकती
मगर अल्हमदुल्लिल्लाह , याँ " हया" होना भी इक फ़न है
कमाल की प्रस्तुति है आपकी.
आपने बिलकुल सही फ़रमाया है,हया जी.
सदा जी की हलचल से पहली दफा आपके ब्लॉग पर आना हुआ.
आपको पढकर बहुत प्रसन्नता मिली जी.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
मकर सक्रांति और लोहड़ी की बधाई और शुभकामनाएँ.
बहुत ही सटीक और भावपूर्ण रचना। धन्यवाद।
ReplyDeleteकैलेंडर ही बदलते हो ,कभी किरदार भी बदलो
ReplyDeleteगुज़िश्ता साल के ख्वाजासरा सालार भी बदलो
जो मेहेंगाई नहीं रोके , हिफाज़त भी ना कर पाए
किसी दल की भी हो ,ऐसी लचर सरकार को बदलो ..
अब यह शब्द तो सचमुच तारीफ के काबिल है...बधाई..
बहुत बेहतरीन,सादर बधाई......
ReplyDeletebahut achchi prastuti.
ReplyDeleteवाह...वाह...वाह...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...
bhtreen bdhi ho
ReplyDeleteAAPKE BLOG PAR PEHLI DAFA TASHRIF LAYA. BLOG PASAND AAYA AUR AAPKI NAZM TOH MASHA ALLAH BAS HAQ HI HAQ. KHASKAR MUJHE YE BAND BAHUT HI DILAFZA LAGA....
ReplyDeleteइधर उर्दू की महफ़िल पर तो ये बंदिश लगाते हैं
उधर मुन्नी को सारी रात होटल में नचाते हैं
अदब को भी मुसलमाँ जान महफ़िल में पुलिस आये
उधर खुद बेहयाई से ये पीते और पिलाते हैं..
KHUDA HAFIZ..
निःशब्द कर दिया आपने .
ReplyDeleteकृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारें , अपनी प्रतिक्रिया दें , आभारी होऊंगा .
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!
शुभकामनायें.
ReplyDeleteकैलेंडर ही बदलते हो ,कभी किरदार भी बदलो
गुज़िश्ता साल के ख्वाजासरा सालार भी बदलो
जो मेहेंगाई नहीं रोके , हिफाज़त भी ना कर पाए
किसी दल की भी हो ,ऐसी लचर सरकार को बदलो
बहुत खूब,....... वाह
वाह वाह लता वाह ,बहुत खूब ...
ReplyDeleteमेरी उर्दू जलेबी बाई तो हो ही नहीं सकती
ReplyDeleteओ' शीला की जवानी में कभी खो ही नहीं सकती
लगाती हूँ मै तुमसे शर्त के तुम लाख सर पीटो
क़यामत तक रहेगी, ये फ़ना हो ही नहीं सकती
उम्दा, रचना व खयालात के लिए बाधाई
बहुत समय बीत चुका....आपने कोई नई पोस्ट नहीं डाली......
ReplyDeletebahut khoob !
ReplyDeleteनववर्ष 2013 की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।
ReplyDeleteब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...
importance of Urdu
ReplyDeleteवाह! आनंद आ गया....आपके जैसे लिखने वाले कम ही मिलते हैं। माँ सरस्वती आप पर और कृपा करें। आसान उर्दू लफ्ज़ रहने से आपके कलाम जन-जन तक पहुँच सकते है। गुलज़ार चचा जैसे हर वर्ग के लोगों तक अपनी जगह बना ली थी। प्रणाम।
ReplyDeleteलता जी आपकी समस्त अभिव्यक्ति का वर्णन इस प्रकार करते हैं कि अभिव्यक्तियों को पढ़ते-पढ़ते मस्तिष्क में एक द्रश्य-सा बन जाता है......आप इन अभिव्यक्तियों में उर्दू शब्दों का उपयोग बहुत ही सुन्दरता से करती हैं.....ऐसी अभिव्यक्तियों का इंतज़ार शब्दनगरी के पाठकों को हमेशा रहता है...आपसे निवेदन है कि आप शब्दनगरी पर भी अपनी रचनाये,अभिव्यक्तियां और कवितायेँ लिखे...
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग जगत को ,आपके ब्लॉग को और आपके पाठकों को आपकी नई पोस्ट की प्रतीक्षा है | आइये न लौट के फिर से कभी ,जब मन करे जब समय मिलते जितना मन करे जितना ही समय मिले | आपके पुराने साथी और नए नए दोस्त भी बड़े मन से बड़ी आस से इंतज़ार कर रहे हैं |
ReplyDeleteमाना की फेसबुक ,व्हाट्सप की दुनिया बहुत तेज़ और बहुत बड़ी हो गयी है तो क्या घर के एक कमरे में जाना बंद तो नहीं कर देंगे न |
मुझे पता है आपने हमने बहुत बार ये कोशिस की है बार बार की है , तो जब बाक़ी सब कुछ नहीं छोड़ सकते तो फिर अपने इस अंतर्जालीय डायरी के पन्ने इतने सालों तक न पलटें ,ऐसा होता है क्या ,ऐसा होना चाहिए क्या |
पोस्ट लिख नहीं सकते तो पढ़िए न ,लम्बी न सही एक फोटो ही सही फोटो न सही एक टिप्पणी ही सही | अपने लिए ,अंतरजाल पर हिंदी के लिए ,हमारे लिए ब्लॉगिंग के लिए ,लौटिए लौटिए कृपया करके लौट आइये
यही आग्रह मैं सबसे कर रहा हूँ उनसे भी जो पांच छह साल और उससे भी अधिक से पोस्टें नहीं लिख रहे हैं कारण का पता नहीं मगर मैं आवाज़ देता रहूंगा और आपसे भी यही आग्रह करूंगा कि आप भी मेरे साथ उनके साथ हो लीजिये |
बहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteवाह वाह, शानदार, बेहतरीन रचना , सादर नमन हया जी , शब्द शब्द लाजवाब
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ReplyDeleteइंटरनेट का आविष्कार किसने किया ?