मेरी जबीं पे वो ज़ख्म देगा तो खून से तर ग़ज़ल कहूँगी
अगर लगाएगा सुर्ख़ बिंदी मैं सज संवर कर ग़ज़ल कहूँगी
खमोशियों के समन्दरों का ज़रा कनारा तो ढूँढने दो
मैं एक तन्हा जज़ीरा पा लूं वहीँ पहुंचकर ग़ज़ल कहूँगी
ए मीरे -मजलिस तेरी सदारत क़ुबूल करके कहा है सबने
मगर पसे -अंजुमन है कोई मैं आज जिस पर ग़ज़ल कहूँगी
तबस्सुमों के निक़ाब में तुम छुपा तो लेने दो मुझ को चेहरा
उदासियों को छुपा लिया अब कहो मुक़र्रर ग़ज़ल कहूँगी
उसे मकानों की आरज़ू थी मेरी तमन्ना थी एक घर की
तेरी ज़मीं पे, तेरे मकां पर मैं आज बेघर ग़ज़ल कहूँगी
क़फ़स में अत्तार कब तलक तू रखेगा ख़ुशबू छुपा के मेरी
चटख गयीं जो ये शीशियाँ फिर बिखर बिखर कर ग़ज़ल कहूँगी
तेरी रिफाक़त, तेरी सदाक़त का है तअस्सुर भी हर ग़ज़ल में
अगर तुझे नज्र हों ये ग़ज़लें ज़हे-मुक़द्दर ग़ज़ल कहूँगी
अगरचे महफ़िल की शान भी हूँ वक़ार अपना रखूंगी क़ायम
उसे यकीं है के मैं 'हया' हूँ ,समझ-सँभल कर ग़ज़ल कहूँगी
जबीं = माथा
जज़ीरा = द्वीप
मीरे-मजलिस = मजलिस के मुखिया
सदारत = अध्यक्षता
पसे - अंजुमन = महफिल के पीछे
अत्तार = इत्र बेचने वाला
रिफाक़त = दोस्ती
सदाक़त = सच्चाई
तअस्सुर = असर
वक़ार = इज़्ज़त
waah bahut khoob lajawaab...
ReplyDeleteउफ़ ........क्या ग़ज़ल लिखी है.....क्या रदीफ़ और क्या काफिये हैं .......मतला ता मक्ता ग़ज़ल एक सांस में पढने का हुस्न रखती है.........
ReplyDeleteपिछले दस सालों से आपके फैन हैं........!
मेरी ज़बीं पे वो ज़ख्म देगा तो खून से तर ग़ज़ल कहूँगी
अगर लगाएगा सुर्ख़ बिंदी मैं सज संवर कर ग़ज़ल कहूँगी
खमोशियों के समन्दरों का ज़रा कनारा तो ढूँढने दो
मैं एक तन्हा जज़ीरा पा लूं वहीँ पहुंचकर ग़ज़ल कहूँगी
शेर का कहन.....बहुत उम्दा...!
ए मीरे -मजलिस तेरी सदारत क़ुबूल करके कहा है सबने
मगर पसे -अंजुमन है कोई मैं आज जिस पर ग़ज़ल कहूँगी
तबस्सुमों के निक़ाब में तुम छुपा तो लेने दो मुझ को चेहरा
उदासियों को छुपा लिया अब कहो मुक़र्र ग़ज़ल कहूँगी
कुछ टाईपिंग मिस्टेक है...मुक़र्रर होना चाहिए था वहां...!
उसे मकानों की आरज़ू थी मेरी तम्मना थी एक घर की
तेरी ज़मीं पे, तेरे मकां पर मैं आज बेघर ग़ज़ल कहूँगी
क़फ़स में अत्तार कब तलक तू रखेगा ख़ुशबू छुपा के मेरी
चटख गयीं जो ये शीशियाँ फिर बिखर बिखर कर ग़ज़ल कहूँगी
यह शेर तो क्या कहने......!
ग़ज़ल के प्रति समर्पित जज़्बे को सलाम.
ReplyDeletekhoosurat....lazabaw
ReplyDeleteउसे मकानों की आरज़ू थी मेरी तम्मना थी एक घर की
ReplyDeleteतेरी ज़मीं पे, तेरे मकां पर मैं आज बेघर ग़ज़ल कहूँगी
लाजवाब गजल
बहुत खूब
Bahut khoob
ReplyDeleteअगरचे महफ़िल की शान भी हूँ वक़ार अपना रखूंगी क़ायम
ReplyDeleteउसे यकीं है के मैं 'हया' हूँ ,समझ सँभल कर ग़ज़ल कहूँगी
बहुत खूब
उसे मकानों की आरज़ू थी मेरी तम्मना थी एक घर की
ReplyDeleteतेरी ज़मीं पे, तेरे मकां पर मैं आज बेघर ग़ज़ल कहूँगी
-क्या बात है! पूरी गज़ल छा गई..बहुत खूब!
मेरे पास तो शब्द ही कम पड़ गये हैं इस रचना की प्रशंसा के लिए!
ReplyDeleteलाजवाब ग़ज़ल है!
बेमिसाल अशआर
ReplyDeletebahut sundar rachna
ReplyDeleteगजल कहने का यह उत्साह सराहनीय है !
ReplyDeleteतेरी रिफाक़त, तेरी सदाक़त का है तअस्सुब भी हर ग़ज़ल में
ReplyDeleteअगर तुझे नज्र हों ये ग़ज़लें ज़हे-मुक़द्दर ग़ज़ल कहूँगी
अति सुन्दर!
"उसे मकानों की आरज़ू थी मेरी तम्मना थी एक घर की
ReplyDeleteतेरी ज़मीं पे, तेरे मकां पर मैं आज बेघर ग़ज़ल कहूँगी
..
अगरचे महफ़िल की शान भी हूँ वक़ार अपना रखूंगी क़ायम
उसे यकीं है के मैं 'हया' हूँ ,समझ सँभल कर ग़ज़ल कहूँगी"
आभार
ओह ये ग़ज़ल है की गज़ब ...बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteउसे मकानों की आरज़ू थी मेरी तम्मना थी एक घर की
तेरी ज़मीं पे, तेरे मकां पर मैं आज बेघर ग़ज़ल कहूँगी
वाह....
Bahut khoob Gazal kahi hai aapne.....
ReplyDeleteumda..
singhsdm ji ka kaha mera bhi maaniye.. सुना है आज आप फुर्सत में हैं दी.. :)
ReplyDeleteक़फ़स में अत्तार कब तलक तू रखेगा ख़ुशबू छुपा के मेरी
ReplyDeleteचटख गयीं जो ये शीशियाँ फिर बिखर बिखर कर ग़ज़ल कहूँगी
जितना बेहतरीन ये शेर है उतनी ही बेहतरीन ग़ज़ल कही है...वाह...जब से पढ़ी है गुनगुनाये जा रहा हूँ....मेरी दिली दाद और दुआ दोनों कबूल हों..
नीरज
ए मीरे -मजलिस तेरी सदारत क़ुबूल करके कहा है सबने
ReplyDeleteमगर पसे -अंजुमन है कोई मैं आज जिस पर ग़ज़ल कहूँगी
लाजवाब....
उसे मकानों की आरज़ू थी मेरी तम्मना थी एक घर की
तेरी ज़मीं पर, तेरे मकां पर, मैं आज बेघर ग़ज़ल कहूँगी
तंगदस्ती में खुद्दारी की खूबसूरत अक्काशी करता शेर....
अगरचे महफ़िल की शान भी हूँ वक़ार अपना रखूंगी क़ायम
उसे यकीं है के मैं 'हया' हूँ ,समझ-सँभल कर ग़ज़ल कहूँगी
यही आपकी कलाम की शान और खूबी है....
ग़ज़ल के हर शेर में....
मोहतरमा लता ’हया’ साहिबा आपका खास अंदाज़
और क़लम का जादू साफ़ झलक रहा है.
dil mey utar gai yah ja kar
ReplyDeletesukoon milaa hai yahaan pe aa kar,
vaise to hai shayar kafee,
par mai khush yah shayar pa kar.
bahut dino ke baad idhar aaya. achchhi ghazal.
''dil mey utar gai yah jaa kar'' matalab mera ghazal se hai.
ReplyDeleteक़फ़स में अत्तार कब तलक तू रखेगा ख़ुशबू छुपा के मेरी
ReplyDeleteचटख गयीं जो ये शीशियाँ फिर बिखर बिखर कर ग़ज़ल कहूँगी
बहुत ख़ूब!
अगरचे महफ़िल की शान भी हूँ वक़ार अपना रखूंगी क़ायम
उसे यकीं है के मैं 'हया' हूँ ,समझ-सँभल कर ग़ज़ल कहूँगी
वाक़ई आप हर मुशायरे की शान होती हैं और औरतों का वक़ार क़ायम रखते हुए ही कलाम पढ़ती हैं,
मतला भी बहुत खूबसूरत है
मुबारक हो
one of ur best
ReplyDeleteइसी बहाने आपने बहुत शानदार गजल कह दी है, बधाई।
ReplyDelete--------
रूपसियों सजना संवरना छोड़ दो?
मंत्रो के द्वारा क्या-क्या चीज़ नहीं पैदा की जा सकती?
सचमुच गजल अगर हो तो ऐसा हो, वाकई गजल की जुबान पहली बार पढने को मिला है
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गज़ल, खूबसूरत शायरा और गज़ल अदायगी का अंदाज़ भी बेहद मनमोहक ...तारीफ़ के लिए शब्द कहाँ से लाएं??
ReplyDeleteकल मंगलवार को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
बढ़िया ग़ज़ल, महकती हुई भी, ज़िन्दा भी और अना-ओ-ख़ुलूस से तर भी। वाह!
ReplyDeleteमेरी जबीं पे वो ज़ख्म देगा तो खून से तर ग़ज़ल कहूँगी
ReplyDeleteअगर लगाएगा सुर्ख़ बिंदी मैं सज संवर कर ग़ज़ल कहूँगी
आपकी ग़ज़ल .. आपके शेर ... आपका जज़्बा ... सलाम है मेरा ...
ग़ज़ब के शेर हैं ... खनकते हुवे ... लाजवाब ...
किस शेर को सरताज कहूँ ????? सभी तो एक से बढ़कर एक हैं....
ReplyDeleteदिल को छूती लाजवाब ग़ज़ल....
बेहद खूबसूरत गज़ल......
ReplyDeleteमेरे पास अल्फाज़ नही है, बेह्द खूब्सुरत गज़ल है आप की .....
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल,हर एक शेर खुद में कमाल है.....
ReplyDeleteमुबारक हो !
उसे मकानों की आरज़ू थी मेरी तम्मना थी एक घर की
ReplyDeleteतेरी ज़मीं पे, तेरे मकां पर मैं आज बेघर ग़ज़ल कहूँगी
हर शेर एक से बढ़ कर किसकी तारीफ करूँ बस बेमिसाल... लाजवाब....
लता हया जी ,
ReplyDeleteआप तो बस आप ही हैं !
क्य अंदाज़े-सुख़न है… वाह वाह !
जी करता है हर शे'र बार बार पढ़ते ही रहें ।
…और यह जान कर और भी ख़ुशी हुई कि आप भी मेरी तरह एक मारवाड़ी हैं ।
मारवाड़ी को मारवाड़ी की ओर से घणी खम्मा !
पधारिए मेरे घर शस्वरं पर भी इस लिंक द्वारा http://shabdswarrang.blogspot.com
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
उसे मकानों की आरज़ू थी मेरी तमन्ना थी एक घर की
ReplyDeleteतेरी ज़मीं पे, तेरे मकां पर मैं आज बेघर ग़ज़ल कहूँगी
Dandwat pranaam!!!!!
Lata Ji,
ReplyDeleteNamaste,
Bahut Hi Begtareen Ghazal Likhi Hai Aapne, Maza Aa Gaya.
अगरचे महफ़िल की शान भी हूँ वक़ार अपना रखूंगी क़ायम
उसे यकीं है के मैं 'हया' हूँ ,समझ-सँभल कर ग़ज़ल कहूँगी
Surinder Ratti
लता जी,
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल लिखी है आपने धन्यवाद
सुरिन्दर रत्ती
आपका ब्लॉग देखा बहुत ही अच्छा लगा।
ReplyDeleteबहुत खूब ग़ज़ल है आपकी। आपके कई अश आर तो भीतर तक असर करते हैं। आपको "मदर टरेसा' आवार्ड से नवाज़ा गया, बहुत बहुत बधाई आपको।
ReplyDeleteअगरचे महफ़िल की शान भी हूँ वक़ार अपना रखूंगी क़ायम
ReplyDeleteउसे यकीं है के मैं 'हया' हूँ ,समझ-सँभल कर ग़ज़ल कहूँगी
लाजवाब ग़ज़ल.............
सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक आभार
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
...बहुत खूब !!!
ReplyDeleteaap ki ghazal dil ko chhu leti hai
ReplyDeleteमेरी जबीं पे वो ज़ख्म देगा तो खून से तर ग़ज़ल कहूँगी
ReplyDeleteअगर लगाएगा सुर्ख़ बिंदी मैं सज संवर कर ग़ज़ल कहूँगी
खमोशियों के समन्दरों का ज़रा कनारा तो ढूँढने दो
मैं एक तन्हा जज़ीरा पा लूं वहीँ पहुंचकर ग़ज़ल कहूँगी
उसे मकानों की आरज़ू थी मेरी तमन्ना थी एक घर की
तेरी ज़मीं पे, तेरे मकां पर मैं आज बेघर ग़ज़ल कहूँगी
क़फ़स में अत्तार कब तलक तू रखेगा ख़ुशबू छुपा के मेरी
चटख गयीं जो ये शीशियाँ फिर बिखर बिखर कर ग़ज़ल कहूँगी
हर शेर खुदमुख्तार और खुदबीं से भरा..हर शेर के अंदाज में इंक़लाब की आहट मुक़र्रर...
और इस सादगी पर कौन न मर जाए ....
अगरचे महफ़िल की शान भी हूँ वक़ार अपना रखूंगी क़ायम
उसे यकीं है के मैं 'हया' हूँ ,समझ-सँभल कर ग़ज़ल कहूँगी
याखुदा ..
मेरी जबीं पे वो ज़ख्म देगा तो खून से तर ग़ज़ल कहूँगी
ReplyDeleteअगर लगाएगा सुर्ख़ बिंदी मैं सज संवर कर ग़ज़ल कहूँगी
खमोशियों के समन्दरों का ज़रा कनारा तो ढूँढने दो
मैं एक तन्हा जज़ीरा पा लूं वहीँ पहुंचकर ग़ज़ल कहूँगी
उसे मकानों की आरज़ू थी मेरी तमन्ना थी एक घर की
तेरी ज़मीं पे, तेरे मकां पर मैं आज बेघर ग़ज़ल कहूँगी
waah kya baat hai ?dil khush ho gaya yahan aakar ,gazab likhti hai aap bas jee kar raha hai daad hi dete rahe ,har tarif jayaz hai .....
wah .behad khoobsurat.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteखूबसूरत गजल का बेहतरीन शेर जो मुझे लगा...
ReplyDeleteखमोशियों के समन्दरों का ज़रा कनारा तो ढूँढने दो
मैं एक तन्हा जज़ीरा पा लूं वहीँ पहुंचकर ग़ज़ल कहूँगी
...बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा ..अच्छा लगा.
तबस्सुमों के निक़ाब में तुम छुपा तो लेने दो मुझ को चेहरा
ReplyDeleteउदासियों को छुपा लिया अब कहो मुक़र्रर ग़ज़ल कहूँगी.
अंदाज़ , आवाज़ , कलाम या फ़िक्र किस की तारीफ करूं. में खुद नहीं समझ पा रहा शायद इतना कहना ही काफी होगा आप बेमिसाल हैं.
बहुत खूब। मज़ा आ गया पढ़ कर।
ReplyDeletewwwkufraraja.blogspot.com
wah .lajawab .padhker maza aa gaya.
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteसाथियो, आभार !!
ReplyDeleteआप अब लोक के स्वर हमज़बान[http://hamzabaan.feedcluster.com/] के /की सदस्य हो चुके/चुकी हैं.आप अपने ब्लॉग में इसका लिंक जोड़ कर सहयोग करें और ताज़े पोस्ट की झलक भी पायें.आप एम्बेड इन माय साईट आप्शन में जाकर ऐसा कर सकते/सकती हैं.हमें ख़ुशी होगी.
स्नेहिल
आपका
शहरोज़
अगरचे महफ़िल की शान भी हूँ वक़ार अपना रखूंगी क़ायम .....
ReplyDelete..................प्रशंसा के लिए शब्द नहीं.......
wah wah wah!
ReplyDeletekya baat hai
http://liberalflorence.blogspot.com/
http://sparkledaroma.blogspot.com/
एक बेहतरीन पोस्ट . उम्मीद है ऐसी पोस्ट और भी आती रहेगी. एक अनुरोध है, जो लोग अमन का शांति का पिघम देना चाहते हैं, उसके हक मैं हैं अपना चिठा यहाँ जोड़ सकते हैं.जो किसी करणवश शांति पसंद नहीं करते , वोह कृपया अपना चिठा ना जोडें. http://blogjaget.feedcluster.com
ReplyDeleteबस एक शब्द कहूँगी-- निशब्द । शुभकामनायें
ReplyDeleteह्र......द.....य.......स्पर्शी ........
ReplyDeleteएक बात बोलें..?
ReplyDeleteकिलस गए हम पढ़कर...
काश ऐसा हमने लिखा होता....
उसे मकानों की आरज़ू थी मेरी तमन्ना थी एक घर की
ReplyDeleteतेरी ज़मीं पे, तेरे मकां पर मैं आज बेघर ग़ज़ल कहूँगी
kabil-e-tariif .......daad kubool karen
ap tasvir mein abhinetri rekha ji jaisi lagti hai
nice post...
ReplyDeletewah lata ji kya bat he allah ap ko khub nawaze . bahut khubsurat ghazal likhi shukriya.
ReplyDelete