तो इसीलिए मेरी इस साल की ये अंतिम ग़ज़ल निकली है लम्बे इंतज़ार के बाद ठीक उसी तरह जैसे हमारे कुछ महान नेता निकले थे अपने -अपने बिलों से 26/11 के आतंकवादी हमले के इतने दिनों बाद जब सब कुछ सामान्य हो चुका था और वक़्त था क्रेडिट लेने का कि हमारी वजह से .हमारे प्रांत ,हमारी ज़ात ,भाषा वाले सैनिकों ने ये किया...वो किया और सियासत शुरू हो गयी शहीदों की शहादत पर .इसीलिए ये ग़ज़ल उसी आतंकवादी हादसे की अगली कड़ी और उसके बाद होने वाली राजनीति की एक प्रतिक्रिया है .मैं पुनः तमाम हिन्दुस्तानी कमांडोज़ और शहीदों का आभार व्यक्त करते हुए नज्र कर रही हूँ हम भारतवासियों का दर्द ,रोष .अफ़सोस ,सवाल ...और आगामी नव-वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ अंतिम पेशकश .
'देश' ख़तरे में हो तो छुप जायेंगे ,डर जायेंगे
'कुर्सियां' ख़तरे में हों फिर मार दें ,मर जायेंगे
जब ख़बर आती है के हालात अब क़ाबू में हैं
पुरसिशे-हालात को ये तब निकलकर जायेंगे
रोटियाँ लाशो पे कितनी सेक कर ये खा चुके
इतने भूके हैं के अब तो देश भी चर जायेंगे
किस तरह ख़ुद को बचाएं जब कहें ख़ुद नाख़ुदा
हम तो डूबेंगे सनम तुम को भी लेकर जायेंगे
ये शेर उन मासूम परिंदों को समर्पित जो हमले में घायल हुए या मारे गए .पर आज भी सैंकड़ों की तादात में सुबह -शाम ताज होटल पर उनके हमकौम सफेद कबूतर नज़र आते हैं ,आतंक का जवाब बनकर ;
खौफ़ हो,पहरे हों पर ये "शाहजहाँ के हमवतन"
ताज के दीदार को अब भी कबूतर जायेंगे
बम फटा,सत्यम घटा ये तो अभी है जनवरी
हादसे कितने दिसम्बर तक यूँ चलकर जायेंगे
ये शेर मैंने साल की शुरुआत में जिस शंका के साथ कहा था वो गलत नहीं थी .ना जाने ये साल कितने हादसात झेल चुका है और जाते जाते अलग राज्यों ..तेलंगाना,विदर्भ से ज़ख्म दे रहा है,और अब ग़ज़ल का आखरी शेर ..कहावत यूँ है के "ज़र,ज़मीं,जेवर और जोरू कुछ ना साथ जाएगा" ये बात तो हम औरतें भी जानती हैं और हम पर भी लागू होती है तो मैंने इसमें एक छोटा सा संशोधन किया है और अपनी अदीब बहनों को नज्र करती हूँ
किसलिए हिर्सो-हवस मालूम है जब साथ में
ज़र,ज़मीं,दौलत के ज़ेवर और ना 'शौहर' जायेंगे
और मक़ता देखिये ;वैसे भी इन दिनों रोज़ देख ही रहे हैं कलर्स चैनल पर,
ये अदब की बज़्म है 'बिग बॉस का घर' तो नहीं
बाहया घर से चले थे बा'हया'घर जायेंगे
पुरसिशे -हालात = हाल चाल जानना .
हिर्सो-हवस = लालच
ज़र = सोना
नाख़ुदा = नाविक
हमवतन = एक ही देश के
जब ख़बर आती है के हालात अब क़ाबू में हैं
ReplyDeleteपुरसिशे-हालात को ये तब निकलकर जायेंगे
बहुत ही गहराई लिये हुये आपकी यह प्रस्तुति अनुपम ।
नववर्ष के लिये आपको भी अग्रिम बधाई एवं शुभकामनायें ।
बहुत ही गहराई लिये हुये आपकी यह प्रस्तुति अनुपम ।
ReplyDeleteनववर्ष के लिये आपको भी अग्रिम बधाई एवं शुभकामनायें .....
हम तो इतना ही कहेंगे, कि आपकी दुआ कुबूल हो, आमीन।
ReplyDeleteजिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
खौफ़ हो,पहरे हों पर ये "शाहजहाँ के हमवतन"
ReplyDeleteताज के दीदार को अब भी कबूतर जायेंगे
ये अदब की बज़्म है 'बिग बॉस का घर' तो नहीं
बाहया घर से चले थे बा'हया'घर जायेंगे
"एक नग्न सत्य जो नग्न हो कर भी दीखता नहीं
अपना ही माथा पीटने के सिवाय कुछ सूझता नहीं"
नव वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ
रचना
बेहद उम्दा , नववर्ष की बधाई ।
ReplyDeleteये अदब की बज़्म है 'बिग बॉस का घर' तो नहीं
ReplyDeleteबाहया घर से चले थे बा'हया'घर जायेंगे
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
आपको भी बहुत बहुत अग्रिम बधाई ....!!
ReplyDeleteकिसलिए हिर्सो-हवस मालूम है जब साथ में
ReplyDeleteज़र,ज़मीं,दौलत के जेवर और ना शौहर जायेंगे
& ये अदब की बज़्म है 'बिग बॉस का घर' तो नहीं
बाहया घर से चले थे बा'हया'घर जायेंगे This one is absolutely fantastic.......aap sach mein bahut acchi hai......Thanks to technology as altleast I'm able to communicate you.
Wishing you very happy coming year.
regards,
Priya
लता ' हया ' जी !
ReplyDeleteआपको भी नए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ ......
हमें विश्वास है कि अगर हम बा'हया' रहे तो बेहयाई से और ग्लैमराई से बचे रहेंगे ..
अदब की ताकत साथ रही तो ..
आपके ब्लॉग का नया पाठक हूँ पर सीखने को बहुत मिलता है , भाव और भाषा दोनों में ..
सच कह रहा हूँ कलम ले के कुछ अल्फाज लिख लेता हूँ ..
'देर से' में कोई दिक्कत नहीं , दुरुस्त आने पर मजा आ जाता है ..
आपकी गजल काबिले-तारीफ है .. मक़ता तो बहुत अच्छा बन गया है ..
................ आभार स्वीकारें !
इतने भूके हैं के अब तो देश भी चर जायेंगे
ReplyDeleteइतने भूखे हैं के अब तो देश भी चर जायेंगे
---शायद टंकण त्रुटि हो...ऐसा मुझे लगा.
एक बहुत ही उम्दा गज़ल!!
बम फटा,सत्यम घटा ये तो अभी है जनवरी
हादसे कितने दिसम्बर तक यूँ चलकर जायेंगे
-क्या बात है...
और मतले ने तो गजब कर डाला:
ये अदब की बज़्म है 'बिग बॉस का घर' तो नहीं
बाहया घर से चले थे बा'हया'घर जायेंगे
--’खाला का घर’ सा कुछ याद आया... :)
दाद कबूलें. वाह वाह!!
नये साल की मुबारकबाद!
रोटियाँ लाशो पे कितनी सेक कर ये खा चुके
ReplyDeleteइतने भूके हैं के अब तो देश भी चर जायेंगे
विद्रूप सत्य है
बहुत उम्दा।
ReplyDeleteलता 'हया' जी, आदाब
ReplyDeleteग़ज़ल के रंगों को जानने के ख्वाहिशमंद आपके ब्लाग से कभी मायूस नहीं हुए.
यही आपके कलाम की खूबी है,
अल्लाह इसमें और इजाफा अता फरमाये (आमीन)
और हां,
'उडन तश्तरी' जी ने 'भूक' और 'भूख' के अंतर का ध्यान दिलाया है
मेरे ख्याल से आपने ठीक ही लिखा है,
क्योंकि उर्दू शायरी में लफ्ज़ 'भूक' ही इस्तेमाल होता है.
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
Padhate,padhte aankh bhar aayee..
ReplyDeleteरचना बहुत सार्थक है, "शाहिद" की टिप्पणी पढने के बाद अब "भूख" शब्द के बारे में थोड़ी और जानकारी अपेक्षित है.
ReplyDeleteआप सभी ने मेरी ग़ज़ल को इतनी तवज्जो दी ,मैं शुक्रगुज़ार हूँ और आने वाले bloggers का अभी से शुक्रिया अदा करती हूँ .सबके ब्लॉग पर तो जाकर मैं आभार व्यक्त करुँगी ही लेकिन यहाँ मैं स्मार्ट इंडियन और उड़न तश्तरी की तरफ से पूछे गए एक सवाल का जवाब देना चाहती हूँ के लफ्ज़ भूक है या भूख तो दोनों ही सही है.हिंदी में भूख है तो उर्दू में भूक कहा जाता है .शाहिद मिर्ज़ा साहब ने मेरी तरफ से पहले ही जवाब दे कर इसकी पुष्टि करदी है .मैं उनकी आभारी हूँ .दरअस्ल हिंदी और उर्दू में मैं कभी भेद ही नहीं कर पाई .ठीक उसी तरह जैसे कि लता और हया एक ही है वैसे ही ये दोनों ज़बानें मुझमें बस एक हिन्दुस्तानी भाषा बनकर रहती हैं
ReplyDeleteअपनी तो बोली मोहब्बत की बोली
न हिंदी, न उर्दू, है हिन्दुस्तानी
मैंने जानबूझकर भूक लफ्ज़ का इस्तेमाल किया,जानती थी के शंका उठ सकती है,लेकिन यही ब्लॉग जगत की ख़ूबी है के हम तत्काल सवाल पूछ सकते है,जवाब दे सकते है,शंका ज़ाहिर कर सकते है,बहस कर सकते है,ख़यालात की अदला बदली कर सकते हैं यानि एक दूसरे से कुछ सीख सकते है और समझ सकते है और इन सब से बढ़कर तमाम तरह के भेदभाव को मिटा सकते हैं.
अफ़सोस तो बस इस बात का है कि लाख कोशिश करने के बावजूद कुछ अलफ़ाज़ के नीचे मैं nuqtoon का प्रयोग नहीं कर पाती .खोजने पर भी नुक्ते वाले लफ्ज़ नहीं मिलते और उन्हें बिना नुक्तो के लिखना पड़ता है .क्या आप में से कोई मुझे इसका हल बता पायेगा ? मैं .. ये technology जल्द advance हो और अपनी कमियों को दूर कर भाषा की त्रुटियाँ समाप्त करने में कामयाबी दिला सके,नए साल में आप तमाम बा अदब लोगो की तरफ से ये दुआ भी नए साल की दुआओं में शामिल करती हूँ....आमीन
मैंने फारसी लिपि में गूगल में दोनों शब्दों को खोजा तो भूख के पक्ष में सिर्फ दो कड़ियाँ ही मिलीं जबकि भूक शब्द के साथ उर्दू के लाखों पृष्ठ थे. मैं भी हिन्दी-उर्दू को बचपन से एक ही भाषा की तरह सुनता-बोलता आया हूँ मगर कई बार शब्दों के सूक्ष्म अंतर हम जैसे आम लोगों (आप कवियों/अदीबों के विपरीत) की नज़र में आने से रह जाते हैं. त्वरित स्पष्टीकरण के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteनहीं स्मार्ट इंडियन साहेब ; आम ....ख़ास इन अलफ़ाज़ से शर्मिंदा मत कीजिये ;
ReplyDeleteआप आम नहीं बल्कि बहुत बहुत ख़ास हैं ;मुहब्बत करने वाले .दुआ देने वाले आम हो ही नहीं सकते
मुझे दुआओं की सौग़ात सौंपने वाले
तेरा ज़मीर दरख्शां दिखाई देता है [ दरख्शां =रौशन ]
मैं तो ये सोच कर विस्मित हूँ कि आपने इतनी जल्द गूगल पर खोज -बीन भी कर ली .आपके इस प्रयास ,जोश ,जूनून ,अदब के लिए ऐसी जिज्ञासु प्रवृत्ति के समक्ष मैं
नत मस्तक हूँ ,आइन्दा भी आपकी बेश्कीमती दुआओं के तोहफे का मूझे इंतज़ार रहेगा . शुक्रिया
बहुत बहुत आभार लता जी एवं शाहिद साहब. ज्ञान में कुछ बढ़ोतरी हुई.
ReplyDeleteलिख देने के बाद काफी गुगल किया और जानकारी प्राप्त की किन्तु अब पूर्णतः स्पष्ट हुआ.
नुक्ता लगाने के लिए अक्षर के बाद x दबा कर देखें.
जैसे ख पर नुक्ता लगाना है तो ख़ -इसके लिए khx टंकित करके देखिये, शायद काम बन जाये. मैं बारहा इस्तेमाल करता हूँ और उसी हिसाब से सलाह दी है.
सादर
gehri baat kahi hai haya ji....
ReplyDeleteaeenaa dikhati rachna....
सबसे पहले लता जी, आपको आदाब !!
ReplyDeleteसभी शेर सत्य और संवेदनाओं की बानगी है.
ब्लोगिंग और रचना प्रस्तुतीकरण पर आपकी भूमिका ज़ायज है.
कुछ हिंदी पाठको को उर्दू लफ्ज़ के उच्चारण संबंधी जानकारी देकर आपने अच्छा काम किया है.
ReplyDeleteजहाँ बात उर्दू की होती है, मैं भी अपनी रचनाओं में झूठ को झूट ही लिखता हूँ. और भी बहुत कुछ सीखना बाकी है. यूँ सिखने सिखाने का दौर चलता रहे.
आप अपने कलाम पेश करते रहे. हम ढूंढते हुए आप तक पहुँच ही जायेंगे. नया साल सबके लिए बेहतर हो. आपको ढेरों खुशियाँ नसीब हो.
-सुलभ
यहाँ...
ReplyDeleteबम फटा,सत्यम घटा ये तो अभी है जनवरी
हादसे कितने दिसम्बर तक यूँ चलकर जायेंगे
बहुत खूब फरमाया है आपने...इसी बात पर मुझे अपनी पंक्तियाँ याद आ गयी... यहाँ पेश कर रहा हूँ. बस यूँ ही कह रहा हूँ...आपको पढ़ा तो याद आ गया...
समय का पहिया पल पल आगे बढ़ता जाय
यू ही देखते देखते जनवरी दिसम्बर हो जाय
जनवरी दिसम्बर हो जाय काम अच्छे करो सारे
कर्मफल मिलेगा यहीं बात समझ लो प्यारे
कह सुलभ कविराय'परिवर्तन'है एक अटल नियम
कभी 'ओबामा' चमके तो कभी गिरा 'सत्यम'
आपका
- सुलभ
बहुत शशक्त ग़ज़ल है आपकी ........ बाजुओं में जोश उभर आता है इतने लाजवाब शेर पढ़ कर .........
ReplyDeleteलता जी
ReplyDeleteआपकी इस ग़ज़ल का भी हरेक शे'र दिल को झकझोरता है। बहुत खूब शे'र कहे हैं आपने। 'भूख' को उर्दू में 'भूक' भी लिखा बोला जाता है, पहली बार पता चला। पर इससे पहले जब शे'र पढ़ा तो मैंने इसे भूख समझ कर ही पढ़ा। बहुत उम्दा ग़ज़ल है।
आपको क्रिसमस और नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं !
सुभाष नीरव
wah...behad khoobsurat gazal...wah
ReplyDeleteमौकापरस्त नेताओं की अच्छी खबर ली है आपने
ReplyDeleteMaaf karna Di, hamesha ki tarah late-lateef raha is baar bhi... aapki is khoobsoorat gazal ne zakhm fir kured diye.. aur sach bhi hai aage ke aise zakhmon ko rokne ke liye inhe hara hi rakhna chahiye...
ReplyDeleteblogjagat ke purodhaon ke sujhav aur comments se bhi bahut kuchh seekhne ko mila.. unka bhi aabhaar..
aajkal net par baith nhin pa rha isliye kai logon ko naraz kar rakha hai.. par pata hai ki wo sab mujhe dil se utna hi chahte hain jitna main unhen.. isliye maaf bhi kar denge, jald hi..
Di aapko apne no.(08127308760) se call kiya.. par shayad aap busy theen. receive nahin kiya.. kal fir koshish karoonga.
Jai Hind...
lafz-dar-lafz bazaa farmaya aapne didi.aapko bhi nav varsh ki shubhkamnayen.
ReplyDeleteखौफ़ हो,पहरे हों पर ये "शाहजहाँ के हमवतन"
ReplyDeleteताज के दीदार को अब भी कबूतर जायेंगे
बम फटा,सत्यम घटा ये तो अभी है जनवरी
हादसे कितने दिसम्बर तक यूँ चलकर जायेंगे
देश की वास्तविक स्थितियों को बखूबी बयां किया है आपने----
हेमन्त कुमार
क्या खूब ग़ज़ल कही है लता तुमने...वाह...फक्र होता है तुम सी बहन पा कर...दुआ करता हूँ की ग़ज़ल दर ग़ज़ल ये जोश यूँ ही बना रहे और तुम नित नईं बुलंदियों को छुओ...आमीन...
ReplyDeleteनीरज
Yun to har sher hi beshkeemti nageene hain....par
ReplyDeleteरोटियाँ लाशो पे कितनी सेक कर ये खा चुके
इतने भूके हैं के अब तो देश भी चर जायेंगे
is sher ne to nihshabd kar diya...
Kya baat kahi hai aapne..lajawaab....
Aapke kalam ko naman !!!
बम फटा,सत्यम घटा ये तो अभी है जनवरी
ReplyDeleteहादसे कितने दिसम्बर तक यूँ चलकर जायेंगे
BADHIYA SAWAL HAI
बहुत शशक्त ग़ज़ल है आपकी ........ बाजुओं में जोश उभर आता है इतने लाजवाब शेर पढ़ कर .........
ReplyDeleteबहुत खूब अच्छी अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
लाजवाब ग़ज़ल बुनी है, मैम...साल के इस आखिर में। ये शेर तो उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ "खौफ़ हो,पहरे हों पर ये "शाहजहाँ के हमवतन"
ReplyDeleteताज के दीदार को अब भी कबूतर जायेंगे"....
जितनी अच्छी ग़ज़ल बनी है, उतनी ही अच्छी टिप्पणियां भी। इस आपरेशन में मैंने अपना दोस्त {शहीद उन्नीकृष्णन} खोया था...आपकी ये श्रद्धांजलि आंखें नम कर गयी।
नये साल की खूब सारी शुभकामनायें। इसी तरह आपकी लेखनी का जादू हम सब को चमत्कृत करता रहे!
बहुत ही अच्छी रचना....मेरी शुभकामनायें...
ReplyDeletecongratulations
ReplyDeletepls visit my blog
http://hinditeachers.blogspot.com
thanks
wah, kai bar pad chuka fir bhi dil bharta hi nahi ...aapke shabdo me o jaan hai jo ek mahan kavitri me honi chahiye ...badhai..!
ReplyDeleteभूख कहें या भूक...
ReplyDeleteअंतड़ियां दोनों में छटपटाती हैं जी....
हिंदी वाले , उर्दू वाले , नुक्ताचीं में रह गए
पर ग़ज़ल वाला ग़ज़ल में खो गया पीने के बाद...
जब ख़बर आती है के हालात अब क़ाबू में हैं
ReplyDeleteपुरसिशे-हालात को ये तब निकलकर जायेंगे.....
bahut hi shaandaar..
aapko bhi nav varsh ki shubhkaamna...
" fir se deri se aaya hu lataji ...maaf karna ..magar aate hi mast gazal padhne ko mili ... DIDI ek baat puchu ? aap kalam kaunsi istemal karti hai ..jo itani khubsurati se alfaz ko kaid kar sakti hai ..."
ReplyDeleteकिस तरह ख़ुद को बचाएं जब कहें ख़ुद नाख़ुदा
हम तो डूबेंगे सनम तुम को भी लेकर जायेंगे
" bahut hi badhiya ...umda "
" AAPKO SALAM "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
वा बहुत ही बढियां
ReplyDelete