Monday, September 7, 2009

जुर्म अब ईमान.....



आदमी शैतान होता जा रहा है
क्या उसे भगवान होता जा रहा है

ये निठारी काण्ड तौबा देख कर हा!
ख़ुद ख़ुदा हैरान होता जा रहा है

हैं मेरे हालत तो ईराक़ जैसे
हौसला ईरान होता जा रहा है

धर्म तो नेताओं के हत्थे चढ़ा है
जुर्म अब ईमान होता जा रहा है

मैच फिक्सर या पुलिस की जेब में अब
नोट ही मेहमान होता जा रहा है

देन है उसकी हुनर के शोहरतें फिर
क्यों उसे अभिमान होता जा रहा है

वो जो मुझ पर तंज़ करता है 'हया' जी
ख़ुद ही बेईमान होता जा रहा है

35 comments:

  1. "Nari ka wyapak apmaan aur bhartiy napunsakta"... Read my article based on women position in our society.

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  2. maine aapki kavita padhi...

    धर्म तो नेताओं के हत्थे चढ़ा है
    जुर्म अब ईमान होता जा रहा है

    kafi achchhi pankti hai...

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  3. जुल्म का अम्बार ढोता जा रहा है,
    आदमी हैवान होता जा रहा है ।।

    आजकल के हालात का आपने बेहतरीन ख़ाका खींचा है।
    बधाई!

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  4. Jo eemaan daaree ka dhindhara peettee hain...sab se adhik be-eemaan to wahee hote hain!

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  5. आपको एटीवी उर्दु पर सुना। बडा मज़ा आया।
    आपकी ईस बात के हमारा कायल हैं कि...मैं कि औरत हूँ मेरी शर्म है मेरा ज़ेवर, बस तख्ख़लुस इसी बाईस तो'हया'रखा है.कि...

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  6. बहुत ही सुन्दर रचना

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  7. सच को बया करती सुन्दर रचना

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  8. धर्म तो नेताओं के हत्थे चढ़ा है
    जुर्म अब ईमान होता जा रहा है

    देन है उसकी हुनर के शोहरतें फिर
    क्यों उसे अभिमान होता जा रहा है

    सत्य ही कहा आपने. रावण और उनके राक्षस सरीखे जांबाजों को इंतजार तो सिर्फ राम का है, ताकि उद्धार हो सके, इसीलिए बेखौफ हो कर दरिंदगी के गर्त में गिरते ही जा रहे हैं, इसीलिए मैं यह शेर आपके ग़ज़ल के शेर से प्रभावित हो कर ही कह रहा हूँ........

    गोया इंतजार है उन्हें तो बस उद्धार का
    प्रभु- संहार का सामान होता जा रहा है

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  9. वो जो मुझ पर तंज़ करता है 'हया' जी
    ख़ुद ही बेईमान होता जा रहा है

    BAHUT SUNDAR !

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  10. कविता के बहाने..तीर बुराइयों पर खूब साधे

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  11. बहुत खूब। सच्चाई को उकेरती शानदार रचना

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  12. मैच फिक्सर या पुलिस की जेब में अब
    नोट ही मेहमान होता जा रहा है


    Ultimate

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  13. jurm ab imaan ho raha hey.aaj kal ke haalat ka SATIK CHITRAN BAHUT BAHUT AABHAAR ASHOK.KHATRI 56@GMAIL.COM

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  14. अति सार्थक और यथार्थपरक रचना.......

    बहुत ही सुन्दर ढंग से आपने इन्हें शब्दों में बाँधा है...जो सीधे मन में उतनी ही गहनता से उतर जाते हैं.. बहुत ही सुन्दर रचना..बधाई..

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  15. wow... ! आज मै पहली बार आपके ब्लोग पर आयी और लाजवाब हो गयी… ब्लोग देखकर ज़ोर से चीखी थी… "मम्मी मयन्क की नानी मां का ब्लोग मिला !!!" हाहा !
    well, बेहद ही अच्छा लगा यहां आकर्… बेहतरीन रचनायें… पढ्ती रहूंगी… और सीखती रहूंगी…
    मेरे ब्लोग पर आप सादर आमन्त्रित हैं…

    धन्यवाद्।
    रश्मि।

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  16. waise to sabhi sher achche hai .....desh aur pardesh dono ke haalato ko bayan karte but I liked most "देन है उसकी हुनर के शोहरतें फिर
    क्यों उसे अभिमान होता जा रहा है " have a nice time ahead

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  17. धर्म तो नेताओं के हत्थे चढ़ा है
    जुर्म अब ईमान होता जा रहा है
    अति सुन्दर अभिव्यक्ति

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  18. लता जी ,
    अपकी इस गजल का जवाब नहींअमारे देश की हालत को पूरी तरह से
    ब्यान करती गजल्।खास बात यह कि हर शेर अपने आप में मुकम्मल---एक यथार्थ परक और सुन्दर रचना के लिये बधाई स्वीकरें।
    हेमन्त कुमार

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  19. यह ज़रूरी है कि समाज के सच पर लिखा जाए उसके लिये हौसला चाहिये और वो आप मे है बधाई ।

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  20. सच को बखूबी बयां किया है आपने। मुबारकबाद कुबूल फरमाएं।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  21. lata ji ,
    aap bahut achha likhti hai .yah jaroori hai ki samaj ke sachaiyo pe likha jaye...

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  22. मैच फिक्सर या पुलिस की जेब में अब
    नोट ही मेहमान होता जा रहा है बहुत उम्दा !
    बेहतरीन !

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  23. इस सामयिक एवं सार्थक गजल केलिए बधाई स्वीकारें।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  24. हर लफ्ज सीधे दिल में उतरता है... हर शब्द में सच्चाई है

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  25. मैं देर, बल्कि काफी देर से आप तक आ सका हूँ. फिर भी देर आयद.... आपने हमेशा और अपनी पहचान के मुताबिक गजल पेश की है. इराक और ईरान वाले शेर के लिए आप ख़ास तारीफ की हकदार हैं. यह शेर आपके इल्म, जहानत, सोच को तो पारिभाषित करता ही है नये कंटेंट्स और दुनियावी मसाइल पर आप की नजरें हैं, इस बात का सबूत भी है. मुबारकबाद, यह सफर जारी रहे.

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  26. हर शेर लाजवाब...उम्दा ग़ज़ल....सार्थक गजल ने मन मोह लिया...वाह...

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  27. लताजी
    नमस्कार ,
    आपकी ग़ज़ल बार बार मुझे आपके ब्लॉग पर आने को मजबूर करती है| आपकी सभी गज़ले बेहतरीन है .
    और ये पंक्तियाँ ---
    देन है उसकी हुनर की शोहरतें फिर
    भी क्यों उसे अभिमान होता जा रहा है -----
    तो बहुत ही खूबसूरत हैं .
    पूनम

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  28. कुछ देर से पढ पाया इतनी सुन्दर रचना को
    ये निठारी काण्ड तौबा देख कर हा!
    ख़ुद ख़ुदा हैरान होता जा रहा है
    वीभत्स स्वरूप होता जा रहा है इंसान का
    बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  29. हैं मेरे हालत तो ईराक़ जैसे
    हौसला ईरान होता जा रहा है

    धर्म तो नेताओं के हत्थे चढ़ा है
    जुर्म अब ईमान होता जा रहा है

    Achchhe sher

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  30. लता जी आप की सबी रचनाये एक से बढ़कर एक है,जिनमे इंसानियत की कडवी सच्चाई छुपी है,आप की रचनाओ में वो जस्बा है जो लगो को आपस में जोड़ कर रखने की ताकत रखता है,प्रेम और भी चारे का ये सिलसिला हमेशा कायम रकियेगा

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