Thursday, October 15, 2009

ये तितली

एक तरफ दीपों के त्यौहार की सजावट तो दूसरी तरफ चुनावी माहौल की गिरावट ,गोया खूबसूरत मखमल पर पैवंद लग गया हो ;ख़ुदा करे सब शांति से संपन्न हो जाये ;कहीं मेरी ग़ज़ल फिर न सिहर के कह उट्ठे ;





अंधेरों मैं जो आज इक रौशनी मालूम होती है
ये बस्ती अम्न की जलती हुई मालूम होती है

सियासत कैसे गंदे मोड़ पे लायी है इंसां को
के अब इंसानियत दम तोड़ती मालूम होती है

ख़ुदा के नाम पे इंसान की हैवानियत देखो
अजां से जंग करती आरती मालूम होती है

हम उनकी दिल्लगी को भी समझते हैं लगी दिल की
उन्हें दिल की लगी भी दिल्लगी मालूम होती है

गुलों का छोड़ कर दामन ये क्यों बैठी है काँटों पे
ये तितली तो बहुत ही दिलजली मालूम होती है

हवादिस ने मेरे चेहरे पे ऐसे नक़्श छोड़े हैं
मुझे अपनी ही सूरत अजनबी मालूम होती है

इधर दिल है,उधर दुनिया नहीं मालूम क्या होगा
"हया"अब आज़माइश की घड़ी मालूम होती है.

अजां -अजान
हवादिस -हादसे

आप सभी को दीपावली की अग्रिम शुभकामनायें

40 comments:

  1. अन्दाज काबिलेतारीफ़ है.बधाई.

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  2. वाह बहुत सही कहा आपने भगवान् करे सब कुछ सही से संपन्न हो जाए

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  3. उम्दा ग़ज़ल.......

    दीपोत्सव की बधाइयाँ

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  4. रचना मुझे बहुत पसंद आयी !!
    आपको भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

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  5. बहुत खूबसूरत नज़्म है।
    धनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!

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  6. Dua kartee hun, aman kee bastiyaa nayee bane....aur naki jalen...balki aabaad rahen...

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  7. बेहद खुबसूरत रचना......दीपावली की शुभकामनाये!

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  8. वाह!! कितना सही..आज के हालातों पर...बहुत खूब!!

    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल ’समीर’

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  9. सियासत कैसे गंदे मोड़ पे लायी है इंसां को
    के अब इंसानियत दम तोड़ती मालूम होती है
    मौजू रचना और बेहद खूबसूरत रचना के लिये बधाईयाँ
    दिवाली की भी बधाईयाँ

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  10. इस ग़ज़ल में विचार, अभिव्यक्ति और दृष्टि की व्यापकता ता अनोखा मिश्रण है। बधाई।

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  11. लता जी ,इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मेरी की दाद कबूल करें...क्या शेर कहें हैं आपने...सुभान अल्लाह...मेरी नज़र में ये आपकी अब तक की बेहद कामयाब ग़ज़लों में से एक है जो आपको बुलंदियों पर ले जायेगी...मुझे आपकी सोच और लेखनी पर अभिमान है....दुआ करते हैं की आप हमें अपने ऐसे कमाल के और भी कलाम पढ़वाती रहें...

    नीरज

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  12. ख़ुदा के नाम पे इंसान की हैवानियत देखो
    अजां से जंग करती आरती मालूम होती है

    हम उनकी दिल्लगी को भी समझते हैं लगी दिल की
    उन्हें दिल की लगी भी दिल्लगी मालूम होती है
    waah gazab dha gayi gazal,behad lajawab

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  13. सुंदर व्यंजनाएं।
    दीपपर्व की अशेष शुभकामनाएँ।
    आप ब्लॉग जगत में महादेवी सा यश पाएं।

    -------------------------
    आइए हम पर्यावरण और ब्लॉगिंग को भी सुरक्षित बनाएं।

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  14. blkul yatharth ke karib ........man ko choo gayi hai.............

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  15. दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!

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  16. वाह-वाह वाह
    खूबसूरत ग़ज़ल


    सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
    जीवन प्रकाश से आलोकित हो !

    ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
    ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★


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  17. बहुत खूबसूरत नज़्म !!

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  18. यह दिया है ज्ञान का, जलता रहेगा।
    युग सदा विज्ञान का, चलता रहेगा।।
    रोशनी से इस धरा को जगमगाएँ!
    दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!

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  19. सियासत इंसान की ही इजाद है . दर असल हम सब फितरतन imperialist हैं . और फिर सियासत के बगैर कोई निजाम नहीं हो सकती सिर्फ anarchy रह जायेगी . तितली वाला शेर अच्छा लगा. लेकिन शायरी में 'गंदे' की जगह किसी और लफ्ज़ का इस्तेमाल शायद बेहतर होता . 'गंदे' लफ्ज़ में थोड़ी निकृष्टता है .

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  20. दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

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  21. Aap bahut khoob likhti hai ...aapki rachnaye padhkar gazal writing ki kafii bareekiya seekhne milenge...aabhar.

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  22. दीपों की सजावट एवं सियासती माहोल की गिरावट में कोइ सम्बन्ध नहीं है , दीपावली की रोशनी व आग लगाने का भी कोइ सम्बन्ध नहीं है , ग़ज़ल टेक्नीकली सही होगी पर भाव एक दम गलत व न कहने योग्य हैं| दीप पर्व पर ये ग़ज़ल बेमानी है |

    -----टिप्पणीकार भी बस यूँही टिप्पणी के लिए टिप्पणी किये जाते हैं, अर्थ-अनर्थ देखे बगैर |

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  23. सुंदर अभिव्यक्ति,अच्छी ग़ज़ल के साथ कुछ अच्छे शब्द भी दें तो कम से आपकी तारीफ़ में कुछ कहने लायक तो रहें
    आभार

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  24. गुलों का छोड़ कर दामन ये क्यों बैठी है काँटों पे
    ये तितली तो बहुत ही दिलजली मालूम होती है

    बढ़िया ग़ज़ल का उपरोक्त शेर पसंद आया.

    ख़ुदा के नाम पे इंसान की हैवानियत देखो
    अजां से जंग करती आरती मालूम होती है

    उपरोक्त शेर का आशय ठीक से समझ न पाया, यदि स्पष्ट करें तो अच्छा लगेगा......

    बधाई एक और मुकम्मल ग़ज़ल की.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  25. वाह बहूत खूब ..कृपया हमारी इस साईट www.simplypoet.com पर अवश्य तश्रीफ्फ़ लायीयें

    धन्यवाद

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  26. aadarniya chandra mohan ji iska matlab zaat aur mazhab ke ,mandir ,masjid ke jhagade se hai.azzan aur aarti pratik ke taur par istemaal kiye gaye hain .
    halanki main aapke blog par jawab de chuki hoon par yahaan bhi dekar apne tamaam adeeb bloggers ko bhi har sawal mein shamil karna chahti hoon,


    Adarniya shayam ji aur rachana ji ki tippaniyon ka bhi main tahe-dil se swagat karti hoon aur aalochanaon ko enjoy karne mein yaqeen rakhti hoon.mein saaf kar dena chahti hoon ki baat kahene ka sabaka apna ek andaaz hota hai aur apni soch hoti hai .aajkal har parv ,har mauqa dahashat ke andeshon se sahema rahata hai isiliye in mauqun par securities badha di jaati hain,isiliye ye gazal aap tak pahunchai thi ;mera kk sher jo aksar tamam kavi sammelanon aur mushairon mein jab jab bhi maine padha hai.logon ne itifaaq kiya hai;

    KHOON,CHIKHEIN,SANSANI,MAATAM,TABAHI,DAHASHTEIN
    MULK MEIN HATHIYAAR,BARUDON KA RASHAN AA GAYA
    MANDIRON MEIN,MASJIDON YA RAIL,PICTURE HALL MEIN
    PHAT RAHE HAIN BAM,SAMAJH LO KE ELECTION AA GAYA.
    to baat logon ke dilon tak pahunchani chahiye;zaruri nahin hai ki bhari bhari lafzon ka prayog kiya jaye Rachana ji ,mere liye aapke sujhav bhi kisi tareef se kamtar nahin hain

    AAP SABKI KYA RAI HAI MERE BAAADAB SAATHIYON?
    kyonki sawaal to meri is gazal par aapke dwara ki gayi tippaniyon par bhi uthaya gaya hai?

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  27. शर्म को 'औरत का जेवर' किसने बना दिया ? और क्या इसका अर्थ ये तो नहीं कि बेशर्मी को मर्दानगी का प्रतीक मान लिया जाये ? किसने ये सारे नियम बना दिए ? यकीनन किसी मर्द ने . अगर शर्म अच्छी शै है तो फिर ये सिर्फ औरतों का ही जेवर क्यों रहे ? जब कोई मर्द बिना रज़ा के किसी औरत के सीने की जानिब हाथ उठाता है तो उसे शर्म क्यों नहीं आती? मुझे लगता है औरतों को ये जेवर तर्क कर देना चाहिए. येही मुनासिब है. लेकिन सदियों से शर्म को औरतों का जेवर बता कर उनकी मानसिकता पर ये बात बहुत मजबूती से चिपका दी गयी है . इसको मनोविज्ञान में कंडिशनिंग कहते हैं . शर्म सिर्फ एक लिंग - विशेष के व्यक्तियों के लिए नहीं होना चाहिए. और अगर 'इस दौर' के पुरुषों में शर्म नहीं है तो औरतें क्यों रखें ? शर्म तज कर ही समानता आ सकती है शायद .

    ~ इस दौर का एक पुरुष

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  28. आपके ब्लॉग पे अश्वनी जी के माध्यम से आई .....अच्छा तो आप लिखतीं ही हैं अंदाज़ भी माशाल्लाह है ...!!

    अश्वनी जी की बात से सहमत हूँ ...आज के दौर में ये कहना के मैं औरत हूँ इसलिए शर्मोहया का गहना पहनना जरुरी है उचित नहीं लगता ...खैर ये तखल्लुस कोई बहस का मुद्दा नहीं होना चाहिए ....!!

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  29. बहस तखल्लुस पर नहीं है . बहस larger issues पर है. in fact I think women should be raising such questions on any & every such chauvinistic thoughts and customs... I may sound like feminist लेकिन मैं किसी 'ism' में बन्ध कर ज़िन्दगी नहीं जीता ..

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  30. aap ke blog par jharoka ke kandhe ka sahara le ker pahalee var aai najm dil ko choo gai bahut accha likhatee hai aap Badhai.mai bhee jeevan se jude apane ahsas ,anubhav likhane ka prayas ker rahee hoo . aapakee post bahut acchee lagee .

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  31. ख़ुदा के नाम पे इंसान की हैवानियत देखो
    अजां से जंग करती आरती मालूम होती है

    WAAH ! WAAH ! WAAH ! Kya baat kahi aapne....har sher seedhe dil me utar gaye.....lajawaab gazal...

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  32. प्रिय लता दीदी!
    आपसे ब्लॉग पर मुलाक़ात करके सुखद अनुभव हुआ.आपकी ग़ज़ल की खुशबू हर तरफ बिखरी पड़ी है.आप इसी तरह महकती रहें और वक़्त मिले तो कभी अपनी इस छोटी बहन के ब्लॉग पर भी तशरीफ़ लायेंगी ये उम्मीद करती हूँ.शुक्रिया.
    कविता;किरण'

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  33. आप के ब्लाग पर देर से आया,पर आकर पुनः एक अच्छी ग़ज़ल पढ़कर बहुत अच्छा लगा...तारीफ के लिए अभी शब्द कम पड़ रहे है....इसलिये आज इतना ही.......बहुत बधाई....

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  34. E-Mail received from Janab Muflis Sahab:-

    "खुदा के नाम पे इंसान की हैवानियत देखो
    अज़ाँ से जंग करती आरती मालूम होती है"

    मोहतरमा हया साहिबा ,
    नमस्कार

    ऐसा नायाब शेर कहने पर दिली मुबारकबाद
    कुबूल करें .....
    और वो ...."मुझे अपनी ही सूरत....."
    लाजवाब ....
    दाद के लिए फिलहाल बेलफ़्ज़ हूँ

    खैर ख्वाह

    मुफ़लिस

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  35. लता दीदी, ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी देख कर जो ख़ुशी हुई मुश्किल है उसे चंद शब्दों में बयां कर सकूं, ये मेरी बदतमीज़ी ही कहिये जो कि आपकी हर दिल अज़ीज़ कलम से निकली इतनी सुन्दर ग़ज़ल(तरही में) के लिए मैं आपको बधाई देने न आया. शर्मिंदा हूँ की आप उल्टा मुझे बधाई देने पहुंची वो भी एक ऐसी रचना के लिए जो आपकी ग़ज़ल के आगे दोयम से भी निचले दर्जे की है. हो सके तो छोटा समझ के माफ़ कर दीजियेगा.
    हाँ और मुझे पता है की आपकी अपनी तमाम व्यस्तताओं में से जब भी थोडा सा समय मिलेगा इस अनुज के ब्लॉग पर आकर न सिर्फ टूटे फूटे लेखन को पढ़ेंगी बल्कि दिशा निर्देशित भी करेंगीं.
    जय हिंद...
    www.swarnimpal.blogspot.com

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  36. I loved your comment .saree poemsko ek hee sentence me piro diya .with best wishes.

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  37. lata tum jo kahti ho dil se kahti ho iseeliye hmaare dil tak pahunchti ho ek baar phir badhai ......... archana

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