Tuesday, February 16, 2010

पस्ती -ऐ -इंसां

शर्मिंदा हूँ ,ग़मज़दा भी हूँ ,अफ़सोस और पछतावा भी है की इतने लम्बे अरसे के बाद ब्लॉग को छुआ है .कभी कभी इंसान चाहकर भी अपना मन पसंद काम नहीं कर पाता .क्या कहूं ,वक्त नहीं था ?किसी के पास नहीं है आज के दौर में, पर हकीकत येही है .प्रोग्राम्स और शूटिंग ने कुछ इस कदर घेर लिया कि जब भी ब्लॉग खोलना चाहा ,ज़हन, जिस्म और आँखों ने साथ देने से मना कर दिया, पर मैंने आप सब की लेखनी, राय और दुआओं की कमी को बहुत महसूस किया. कोशिश करुँगी के आइन्दा कभी इतना लम्बा अंतराल न आये.

कुछ मेल मेरे लिए आपकी मोहब्बतों का सबूत दे गए .शुक्रिया

26 जनवरी गयी ,30 जनवरी गयी ,14 और 15 फ़रवरी गयी ,हर मौके पर चाहा की कोई ग़ज़ल पोस्ट करूँ लेकिन चूक गयी और अब जब आप सब के मुखातिब हो रही हूँ तो अफ़सोस की फिर बम ब्लास्ट कि सिहरन से मेरी ग़ज़ल कांप रही है.

यहाँ बम है ,वहां बम है ,इधर बम है ,उधर बम है
यही पूछे है हर कोई ,फटा इस पल किधर बम है
घरों में बम ,दुकां में बम ,गली में बम ,कहाँ न बम?
लहू के रंग का अख़बार है हर इक खबर बम है


यही तो होता आ रहा है ,कुछ दिनों कि ख़ामोशी के बाद फिर कहीं बम फट पड़ता है
न जाने कब तक ये सिलसिला चलता रहेगा .इतने दिनों के अंतराल में भी हर पल, हर जगह, हर शहर, हर मौका, हर अवसर, हर मंच पर, हर शख्स के बीच मैंने यही महसूस किया :-

जहां जहां मुझे इन्सां दिखाई देता है
न जाने क्यूँ वो परिशां दिखाई देता है

उरूज पर है बहुत अब तो पस्ती -ऐ -इंसां
गुनाह करके भी नाज़ां दिखाई देता है

ये कैसा गुलशन -ऐ -दुनिया में इन्कलाब आया
के जो चमन है वो वीरां दिखाई देता है

कभी जफ़ाओं का शिकवा नहीं किया मैंने
वो बेसबब ही पशेमां दिखाई देता है

मुझे दुआओं की सौगात सौपने वाले
तेरा ज़मीर दरख्शां दिखाई देता है

ये इन्तहा -ऐ-जुनूं है की राहे मंजिल में
खुद अपना साया निगेहबां दिखाई देता है

उड़ा रहा था यही तो 'हया ' मजाक -ऐ -वफ़ा
जो आज सर-ब-गरीबां दिखाई देता है

उरूज = उन्नति
पस्ती -ऐ -इंसां = इंसां का पतन
नाज़ां = घमंडी
जफा = बेवफाई
पशेमां = शर्मिंदा
दरख्शां = रौशन
सर -ब -गरीबां = घुटनों तक झुका हुआ सर


क्या कहूं वेलनटाइन डे पर ?आप के बहुत मेल मिले लेकिन मैं जवाब में इसके सिवा क्या कहूं ?

खून,चीखें ,सनसनी ,मातम ,तबाही दहशतें ,
मुल्क में हथियार ,बारूदों का राशन आ गया
मंदिरों में ,रेल में ,मस्जिद में ,होटल ,मॉल में
फट रहे हैं बम ,समझ लो के इलेक्शन आ गया

सब कुर्सी के खेल हैं ,सियासत का चक्कर है ,नेताओं की आपसी रंजिश है ,जिसने मासूम जनता को मोहब्बत के दिन ये खूनी तोहफा दिया है ,काश सरहदें और सियासत मोहब्बत के मानी समझ पाती !!! !

कैसे कहूँ बी-लेटेड हैप्पी वेलनटाईन डे ?



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